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पिछले दिनों हमने बहुत कुछ देखा — उपवासों की श्रृंखला, बढ़ती महंगाई का दौर, मंदी की मार, दूध और पेट्रोल में उबाल, भ्रष्टाचार के समुद्र में गोते लगाती, हिच्खोले खाती,टायटेनिक जैसी सरकार! फिर प्रकृति की मार – भूकंप और बाढ़ की त्रासदी! — सबकुछ देखता और चटखारे लेकर मंसूबे बनाता विपक्ष! —
सबकुछ ऐसा जैसे विश्वामित्र रूपी जनता के यग्य को विध्वंस करनेवाली ताकतें —
विश्वामित्र से याद आई – मेनका!
कहते हैं — ब्रह्मा जी ने सृष्टि करते समय सबसे पहले अग्नि, और जल का निर्माण किया, हवा बनाई, अंतरिक्ष बनाया, फिर वनस्पतियाँ बनाई. फिर हुई मानवों की श्रृष्टि.
यह भी विद्वत्जन ही कहते हैं – ब्रह्मा जी ने ली गुलाब की सुन्दरता, कमल की कोमलता, हवा की लोचकता, लहर की ललक, किरण की आभा, चन्द्रमा की शीतलता, आम्र-मंजरी की मादकता, और न जाने क्या – क्या अम्ल-भस्म और लवण को मिलाकर रासायनिक समायोजन कर एक अनमोल और सुन्दर सी जीव की रचना की और उसे नाम दिया – ‘लड़की’ जो की बाद में स्त्री बनी. फिर उसे अन्य प्राणियों की भांति अन्तरिक्ष में विचरण करने को छोड़ दिया.
यही स्त्री ने, कभी मोहिनी रूप धारण कर दानवों को अमृतपान से वंचित रखा, तो कभी योगमाया बनकर कृष्ण की रक्षा की. यशोदा का रूप धारण कर उन्हें दूध पिलाया,( पूतना का स्मरण यहाँ उचित नहीं) – राधा और रुक्मिणी को श्री कृष्ण के अगल बगल रखा, इसके अलावा और भी अनगिनत गोपियाँ —– पर एक मीरा कहीं से आ गयी राधा से प्रतियोगिता करने और जीवन भर प्रतियोगिता करती रही —-
इतना सारा लिख कर ब्यर्थ ही आप सबको बोर करता रहा — असली मुद्दा छूटता जा रहा है —
आप सबने सुना होगा – खंड-खंड प्रदेश के मुख्यमंत्री अभी अभी विदेश यात्रा पर गए थे. खंड प्रदेश में उन्होंने वन्य बालाओं के प्राकृतिक सौन्दर्य को देखा था, पर विदेश में कुछ ख़ास सुंदरियों का अवलोकन किया और आँखों के रास्ते दिल को सिंचित करने का प्रयास भर किया – कहते हैं न कि सूखे रेत पर कुछ बूंदे जल के गिरने से क्या होता है?– पिपासा और बढ़ जाती है.
अभी अभी अपनी राजधानी में– Consumer Expo उत्सव २०११ के प्रांगन में बतौर मुख्य अतिथि पहुँच गए. प्रांगन काफी सुसज्जित था — प्रांगन के मुख्य द्वार पर दो सुंदरियाँ जो शक्ल-सूरत से से तो विदेशी (शायद जर्मन) लग रही थी, भारतीय वेश-भूषा में बड़ी आकर्षक लग रही थी, हमारे मुख्य मंत्री को लगा की जर्मन बाला उनके स्वागत में खड़ी है.
फिर क्या था, — लम्बे लम्बे डग भरते हुए, अंगरक्षक और अपनी धर्मपत्नी को पीछे छोड़ते हुए पहुँच गए दोनों के पास, फोटोग्राफरों ने फोटो भी खींच लिए – उन्हें लगा अब सूखे रेत की प्यास बुझाने का वक्त आ गया है. पर हाय री किस्मत! यह सुन्दर बाला सजीव नहीं थी, बल्कि पुतले को इस कदर सजाया गया था कि वह सजीव आमंत्रण देती प्रतीत हो रही थीं.
खैर, मुख्य मंत्री ने अपनी झेंप को मुस्कराहट के अन्दर कैद कर लिया –पर ये मुए पत्रकार हर जगह नजरें क्यों गराए रहते है और ‘तिल का तार’ करने में उन्हें मजा आता है शायद — इस बात को इतना तूल देने की क्या जरूरत थी वह भी धर्मपत्नी के सामने! — मीरा को बहकाकर भला उन्हें क्या मिलनेवाला है?— किसी शादी शुदा मर्द की इज्जत अपनी पत्नी के नजर में हमेशा पाक-शाक होनी चाहिए. मर्द चाहे कितना ही ताकतवर, प्रतापी, चक्रवर्ती ही क्यों न हो – ‘राजा दसरथ’ की भांति ही ‘दीन’ हो जाता है.
अब पत्रकार लोगों की तो आदत होती है — तिल का तार करने की — सो पहुच गए मीरा के पास — आपके पास से ‘अर्जुन’ नामका ‘तोता’ उड़ चुका है.
— भला यह सब आज के राजनेता के साथ ही क्यों–? क्या राजनेता इन्सान नहीं होता?– अब उमर अब्दुल्ला को ही लीजिये बेचारे का दिल आ गया किसी महिला पत्रकार के ऊपर तो इतनी हाय तौबा क्यों?
नारायण दत्त तिवारी — बेचारे बुजुर्ग आदमी!(मैं यह नहीं कह रहा हूँ बुजुर्ग आदमी के सीने में दिल नहीं होता!) के पीछे ये लोग ऐसे ही लगे हुए हैं. बेचारे का खून ऐसे ही सूखा हुआ है और ये लोग और भी उनका खून निकालने में लगे हुए — DNA टेस्ट करवाएंगे– वो तो भला हो न्यायालय का जिन्हें दया आ गयी और सुना डाला फैसला — किसी के मर्जी के बिना आप उसका खून नहीं निकाल सकते, (खून बहाना अलग बात है.)
भला इन पत्रकारों से कोई यह क्यों नहीं पूछता — वे उस समय कहाँ थे – जब राजा शांतनु का दिल निषाद कन्या ‘सत्यवती’ पर आ गया था. बेचारे गुमसुम उदासीन रहने लगे थे, प्रजा भी राजा को देख दुखी हो रही थी. उस समय पिता प्रेम की बानगी देखिये – देवव्रत ने निषादराज को मनाने के लिए भीष्म प्रतिज्ञा कर डाली! (पराशर मुनि की बात अलग है!)
ये खबरी लोग वहां से भी गायब थे, जब भीष्म काशी नरेश की तीनो कन्यायों का अपहरण कर ले गए थे.( भले ही उनमे से एक को अपने प्यार की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी)
फिर वे पांडवों को भी तो एक द्रौपदी (अपूर्व सुन्दरी) तक सीमित रखने में कामयाब नहीं हो सके थे.
इस प्रकार अनेकों उदाहरण हमारे धर्म ग्रन्थ में मौजूद है. इन्द्र सभा, इन्द्र देव और कुंती, इन्द्रदेव और अहल्या, सूर्य देव और कुंती.
छोड़िये वे लोग तो धर्म की खातिर —-
आज के युग के बिग बी, धर्मेन्द्र, आमिर, संजय दत्त, राहुल महाजन, माल्या, क्रिकेट प्लेयर्स, बिग ‘डी’ (कंपनी) को कोई कुछ नहीं कहता. तो फिर राजनेता ही एकपत्नी व्रत का ठेका लेकर रक्खे हैं?. अरे भाई ये तो अपनी पुरातन महान परम्परा का ही पालन कर रहे हैं. हमारे राजा लोग हमेशा कई पत्नियों को एक साथ खुश रखने का माद्दा रखते थे. (भले ही आज के युग में आम आदमी एक पत्नी को भी खुश रखने में अपनी सारी खुशियों का गला घोंट देता है.) पर ‘खास’ लोग तो ‘दीवाने ख़ास’ होते हैं. उनकी बहुआयामी ‘सोंच’ और बहुआयामी ‘आय’ भी होती है.
हमारे गुरुदेव कागज पर ही सही या इन्टरनेट पर नित नयी शादियाँ कर डालते हैं, गजोधर भैया भी सपने में ही विदेशी बाला के हाथों चाय की चुस्कियां ले डालते है, भ्रमर महोदय अपना दर्द बांटते रहते हैं. फिर हमारे मुख्य मंत्री पर यह पाबंदी क्यों—-?
मैं तो कहूँगा मुख्य मंत्री जी आप क्षमतावान और वीर्यवान हैं आप हमलोगों के सामने उदाहरण पेश करिए और बताईये कि हम बन-वासियों में कितनी उर्जा होती है. मंत्री जी आपको शत शत नमन. आप हमारे आदर्श हैं हमलोग यथासम्भव आपका अनुगमन करने का प्रयास करेंगे, आपके ‘विधायक’ महोदय भी अपनी पार्टी के संस्थापक की जयन्ती पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में आयोजक के आग्रह पर (जिसे वे जनता का आग्रह बताते हैं) बार बालाओं के साथ ठुमके लगाने में नहीं हिचकते हैं क्योंकि यह भी जनता का ही काम है–! ऐसा वे खुद ही स्वीकार करते हैं. दिवंगत नेता की श्रद्धांजलि देने का यह भी अनूठा प्रयास है. क्यों न हो भला, बापू की जयन्ती पर भजन गए जाते हैं क्योंकि उन्हें भजन प्रिय थे. पर अन्य पार्टियों के नेता को जो प्रिय होगा वही तो आयोजन में पेश किया जायेगा. हमलोग भी आपके अनुगामी होने का प्रयास करेंगे,– हाँ जरा गरीबी रेखा की सीमा बढ़ा दीजियेगा. — पर महिला महाविद्यालयों के आगे ‘सादी पोशाक’ में ‘पुलिस’ का पहरा अवश्य बिठाइए क्योंकि ये बच्चे और बच्चियां पढ़ते पढ़ते—कब फेस बुक पर “डम्प्ड माई न्यू एक्स-गर्लफ्रैंड”– लिखकर ‘आत्महत्या’ पर मजबूर कर देंगे कहना मुश्किल है.
इतिश्री राधे! राधे!
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