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दुर्गा पूजा, लौह नगरी की!

jls
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                                                                                                                                                             आज जब शाम को मैं कुछ फल और सब्जियां खरीद रहा था, दुकानदार, अपनी अपनी दुकानें समेट रहे थे. अभी साढ़े सात बजे थे, दुसरे दिन रात १० बजे तक या फिर साढ़े दस बजे तक दूकान खुला रखने वाले दुकानदार आज साढ़े सात बजे दुकाने समेट रहे थे, साथ ही आपस में बातें कर रहे थे, कितना बजे तक निकलेगा?—- यही कोई दस बजे तक-!
मुझे समझते देर न लगी की ये लोग आज दुर्गा जी की प्रतिमाएं और सुसज्जित पंडाल देखने जायेंगे. आज सप्तमी का दिन था. कल की अपेक्षा आज कम भीड़ होगी इसलिए आज ही भ्रमण – दर्शन के लिए निकलना उचित होगा.
लौह नगरी की यह खासियत है कि यहाँ हर धर्म-संप्रदाय के लोग रहते है और सभी अपने पर्व त्यौहार को अपने अपने ढंग से मनाते हैं. पर दुर्गा पूजा की अपनी अलग पहचान और खासियत है. यह लौह नगरी वस्तुत: औद्योगिक नगरी है यहाँ के अधिकांश लोग छोटे बड़े कारखाने में काम करते है. कारखाने के प्रबंधक दुर्गा पूजा के समय ही अपने कर्मचारियों को बोनस (डबल पगार) देते हैं. यकीनन सभी कर्मचारी उस बोनस के एक अंश को उन लोगों में, जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से बोनस नहीं मिलता है, वितरित कर देते हैं. वितरित करने का तरीका अनूठा कह सकते हैं. — एक तरीका तो सरल है जिसे चंदा, या बक्शीश कह सकते हैं. दूसरा तरीका है ब्यापारी वर्ग का — वे सभी, अपने सामानों का दाम अनूठे तरीके से बढ़ाकर, फिर उसमे छूट देने की घोषणा कर देते हैं; —- लुभावने विज्ञापन देकर, आकर्षक उपहार का झांसा देकर मुनाफा में बृद्धि कर लेते हैं और कर्मचारी वर्ग ‘डबल पगार’ की खुशी में जमकर खरीददारी करते हैं और इस तरह अपने मिले लाभांस का कुछ अंश ब्यापारियों और दुकानदारों को दे डालते हैं. इस प्रकार पूरा शहर, लाभांस पाकर;— दुर्गा पूजा की खुशियाँ, श्रद्धा, पूजा, मिलजुलकर सद्भावनापूर्ण मनाते हैं.
इस का सबसे महत्वपूर्ण विधि है शहर के विभिन्न भागों में जाकर दुर्गा माँ की प्रतिमा एवं भब्य पंडालों का दर्शन व अवलोकन.
सबसे खास बात जो मैं बतलाने जा रहा हूँ वह है पूजा पंडालों का नामकरण यथा, मलखान सिंह का पंडाल, ठाकुर प्यारा सिंह का पंडाल, दुलाल भुइयां का पंडाल, आदि आदि. अब तक आप समझ गए होंगे कि इन पंडालों का नामकरण उस इलाके के बाहुबली के नाम से सुशोभित होता है और इनकी छठा निराली! अत्यंत ही मनोहारी और अपनी आप में विशेष आकर्षण लिए होती है.
मैंने इस साल जितने पंडालों और प्रतिमाओं के दर्शन किये उसमे इस बार एक खासियत नजर आयी, वह यह कि इस बार थर्मोकोल, प्लास्टिक, सिंथेटिक पेंट की जगह, बांस, लकड़ी, जूट, पुआल और मिट्टी की मदद से विशेष हस्तशिल्प की कला का प्रदर्शन किया गया था.
कहीं, ग्रामीण परिवेश का भरपूर चित्रण था. हमारे बच्चे जो गाँव को या तो फिल्मों, या टी. वी. में देखा करते हैं अब उसे प्रत्यक्ष देखकर ज्यादा हर्षित हो रहे थे और कैमरे से तस्वीरें भी खींच रहे थे.
कुछ तस्वीरें मैंने यहाँ लगाई हैं जिसका आनंद आप लोग भी ले सकें.
हर वर्ग के लोग अपनी अपनी हैसियत के अनुसार नए परिधान में सज धज कर निकलते हैं और चार से पाँच दिन त्यौहार का आनंद उठाते हैं. सडकें भीड़ को सम्हालने में अपने आप को अक्षम समझने लगती है. प्रशासन भीड़ को नियंत्रित करने की लगातार कोशिश करता है. दशमी के दिन जब दुर्गा माँ की प्रतिमा का विसर्जन हो जाता है तो शांति का वातावरण लौट आता है. अब लोग खासकर बंगाली समुदाय के लोग विजया मिलन करते हैं. इसका तरीका होता है एक दूसरे के घर जाकर मिलना और मिष्टान्न का सेवन करना या कही एक जगह सभी इकट्ठे होकर भी विजया मिलन का कार्यक्रम करते है, जिसमे सबको सुविधा होती है.
गरबा और डंडिया तथा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम, जैसे रामलीला, और रावण-दहन का भी आयोजन कुछ प्रमुख स्थानों पर होता है.
मिलाजुला कर सांस्कृतिक एवं धार्मिक परम्परा का यह आयोजन बरसात के अंत और शरद ऋतु के प्रारम्भ में जब रमणीक वातावरण रहता है —- हम सब नई सुबह की कामना से अभिभूत हो जाते हैं.
या देवी सर्वभुतेशु शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:

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