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“ईश्वर अंश जीव अविनाशी!”– अर्थात यह ‘जीव’ ईश्वर का अंश और अनश्वर है.
यही ईश्वर अंश जब शरीर धारण कर पृथ्वी पर अवतरित होता है, वही से रिश्ते की शुरुआत हो जाती है —
सबसे पहले माता पिता और उनके द्वारा बताये गए अन्य रिश्तेदार. बच्चा धीरे धीरे बड़ा होता है और अन्य रिश्तों में बंधता जाता है. मित्र, मित्र के मित्र, प्रेमिका, पत्नी और उनसे सम्बन्धित लोग. रिश्तों की लम्बाई चौड़ाई सुरसा के मुख की भांति बढ़ती जाती है और नए रिश्तों के बनने से पुराने या यों कहें की सबसे पुराने रिश्ते जो माँ-बाप के थे, धीरे धीरे क्षीण होती जाती है और एक समय तो ऐसा आता है कि यह सब से पुराना रिश्ता ‘भार’ सा लगने लगता है. अगर कही से अचानक दबाव पड़ा नहीं कि — टूट गया!
यह सब किसी एक परिवार या घर की कहानी नहीं है प्राय: अधिकांश घरों की यही हालत है. (कुछ अपवाद ‘आदर्श परिवार’ को छोड़कर)
अभी हाल की सच्ची घटना को देखकर मेरे मन में इस तरह के ख्याल आने शुरू हुए हैं.
मेरे एक मित्र के माता-पिता अवकाश प्राप्ति के बाद काफी दिनों तक अपने परिवार से अलग रह रहे थे. उनके तीन पुत्र और चार बेटियां सभी अपने अपने क्षेत्र में मिहनत करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे. तेज रफ़्तार जिन्दगी में किसी को यह परवाह न रही कि उनके माता पिता किन दिक्कतों का सामना करते हुए अकेले रहने को मजबूर है. ऊपर से इन्ही बुजुर्ग का पोता उनके पी. एफ. के रुपये को यह कहकर ले गया कि ‘मंथली इनकम स्कीम’ से ज्यादा लाभ देगा और शेयर में लगाकर खूब कमाया, जो लाभ हुआ वह उसका हुआ और जब नुकसान हुआ तो दादा का!
अब तो इस बुजुर्ग दंपत्ति के पास ज्यादा पैसे भी न रहे — तो भला कोई क्यों झंझट मोल ले. —- सबने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया. हालत यह हो गयी कि ये दोनों बुजुर्ग दंपत्ति अपने हाल पर एक दुसरे के आंसू पोंछते हुए दिन गुजार रहे थे. फिर एक दिन ऐसा आया कि बेचारे ‘बाबूजी’ बीमार पड़े और कई दिन तक अपने हाल पर पड़े रहे. एक दिन एक पड़ोसी ने इनकी दयनीय अवस्था देखकर उनके घर पर फ़ोन किया. इस हालत में भी उनका सबसे नालायक बेटा (पढ़ा लिखा बेरोजगार) बेटा ही ‘कपूत पोते’ और एक चचेरे भाई के साथ उनको देखने और लेने आया. मुझे भी खबर मिली तो मैं भी उन्हें देखने के लिए मोसम्मी(फल) लेकर पहुंचा. मुझे देखकर सभी खुश हुए और उसी मोसम्मी को चूसने के लिए ‘बाबूजी’ को दिया गया. —–
आज मांजी को लेकर उनका पोता और चाचा का लड़का गाँव जानेवाला था. बाबूजी आज नहीं जा रहे थे क्योंकि उनके पैथोलोजिकल टेस्ट का कुछ रिपोर्ट आने बाकी थे. रिपोर्ट नोर्मल होने के बाद दुसरे दिन वे अपने नालायक बेटे के साथ जानेवाले थे. आज दोनों बुजुर्ग दंपत्ति के लिए वियोग का दिन था! पूरा का पूरा बागवां की कहानी दृष्टिगोचर हो रही थी! — बाबूजी ने अपने पोते से कहा – देखना रस्ते में बाथरूम वगैरह के लिए पूछते रहना और सुविधानुसार करा देना. पानी भी साथ रख लो और ग्लास भी — वह बोतल से पानी नहीं पी सकेगी. यह लो कुछ मोसम्मी दादी के लिए भी रख लो रास्ते में खिला देना.
मेरा मन मसोस रहा था उस करुण दृश्य को देख कर! — (पता नहीं हमलोगों के साथ इस तरह की घटना कब घटेगी.)
गाड़ी में दादी के साथ पोता बैठने को तैयार नहीं हुआ — “रास्ते भर ‘फजूल’ की बातों से परेशान करती रहेगी!” अंत में चाचा जी का लड़का अपनी बड़ी माँ के साथ बैठा. जहाँ तक मुझे पता था उसी लड़के और उसके बाप को मांजी जिन्दगी भर कोसते हुए नहीं थकती थी……. और अपना पोता तो सबसे प्यारा था, आज वह भले ही कपूत हो गया था.
दुसरे दिन नालायक बेटे के साथ बाबूजी भी गाँव चले गए और भरे पूरे परिवार में जा मिले.
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लगभग महीने भर बाद मेरे मित्र से मेरी बात हुई और मैंने माँ – पिताजी का हाल पूछा — पता चला शारीरिक तकलीफ तो कम हो गयी है पर मानसिक तकलीफ बढ़ गयी है. कोई भी पास में बैठकर दो मीठी बात भी नहीं करता. दोनों माँ-बाबूजी आपस में ही अपने हाल पर रोते रहते हैं. देखिये कब तक जीवित रहते हैं………………?
इस घटना को हूबहू लिखने का मेरा मकसद यही है कि आज हमलोगों को क्या हो गया है; जो माँ बाप अपने बेटे पोते को पालने पोसने और लायक बनाने में अपनी सभी सुविधाओं का गला घोंट देता है वही संतान अपनी माता पिता के साथ दो मीठे बोल भी नहीं बोल पाता है. भले ही अपने बॉस के साथ सत्संग करते हुए या उनका प्रवचन सुनने में जरा भी कष्ट नहीं होता है. क्योंकि वहां पर तरक्की रूपी स्वार्थ दीखता है. जहाँ से सारा स्वार्थ सिद्ध हो चुका है, वहां प्रवचन सुनने से क्या लाभ!
यही सब लगभग आनेवाली पीढी के साथ होने वाला है.
अंत में फिर गोस्वामी जी की उक्ति याद आती है, — “सुर नर मुनि सबकी यह रीति, स्वारथ लागी करहीं सब प्रीती.”
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