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मोहन यादव एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करते थे. वे अपने काम के प्रति काफ़ी निष्ठावान थे. समय पर ड्यूटी जाना और अपना काम मन लगाकर करना उनके स्वाभाव मे था. उनकी निष्ठा और सफलता के लिए उन्हे अनेकों बार सम्मानित किया गया था.
कुछ साल पहले की बात है उन्होने कंपनी से स्वैच्छिक अवकाश ले कर अपना पुस्तैनी काम की शुरुआत की.
उन्होने पहले कुछ गाएं ख़रीदकर उनके दूध निकाल कर बेचने का काम शुरू किया.
शहर के वातावरण मे दूध का ब्यवसाय अच्छा चलने लगा. उन्होंने कुछ और गाएं खरीदी और ज़्यादा से ज़्यादा ग्राहकों की आपूर्ति करने लगे.
फिर उन्होने अपने डेयरी फर्म का नाम रक्खा ‘गोमाता डेयरी’. ‘गोमाता डेयरी’ का नाम अच्छा चला और आमदनी भी अच्छी होने लगी. मोहन यादव के ‘फर्म’ का नाम अब ‘मोहन बाबू ऐंड सन्स’ के नाम से प्रख्यात हो गया क्योंकि उन्होंने अपने दोनो बेटों को भी इसी ब्यवसाय से लगा रक्खा था. गोमाता डेयरी नाम से पॅकेट बंद दूध की सप्लाइ अब दूसरे शहरों में भी होने लगी. दूध की गुणवत्ता से सभी प्रभावित होकर इसी दूध को पसंद करने लगे. और अपने मित्रों और सगे संबन्धियों से भी यही दूध लेने की सिपारिश करने लगे. दिन प्रतिदिन माँग बढॄने लगी और गायों की संख्या भी.
जीवन में अच्छे समय के बाद बुरे दिन भी आते हैं. अचानक कुछ गाएं बीमार हुई और भगवान को प्यारी हो गयी. स्थिति यह हुई कि अपने सभी ग्राहकों की माँग को पूरा करने में मोहन बाबु अपने आप को अक्षम पाने लगे.
उनके बेटों ने एक राय रक्खी – “पिताजी, क्यों ना हम भी दूध मे कुछ पानी मिलाकर सभी ग्राहकों की माँग को पूरा करते रहें. इससे हमारे सभी ग्राहक भी बने रहेंगे और हमे फ़ायदा भी ज़्यादा होगा. गायों के मरने के नुकसान की भरपाई भी हो जाएगी.”
मोहन यादव ने धिक्कारती हुई निगाहों से देखते हुए कहा- “हरगिज नहीं. हम ऐसा कभी नहीं कर सकते. हमारी डेयरी की एक साख है, हमारी एक विश्वसनीयता है, उस पर आंच नहीं आने देंगे. हम ऐसा कभी ना करेंगें. चलो हम अच्छी नस्ल की और गाएं खरीद लेते हैं. इस तरह हम माँग की आपूर्ति करते रहेंगें…. बिश्वास बनाने मे वर्षों लग जाते है और टूटने में एक पल नही लगता. भगवान ने चाहा तो हम अपनी भरपाई ईमानदारी से ही कर लेंगे. पर ग़लत कदम ना उठाएँगे.” बेटों ने अपनी पिता की बात मान वही किया जो मोहन यादव चाहते थे. आज भी मोहन यादव का “गोमता डेयरी” नाम के साथ दाम भी कमा रहा है. पूरा परिवार खुशहाल है.
मोहन यादव के नाती पोते सभी अच्छे विद्यालय में पढ़ कर अव्वल आते हैं और अपने दादा के बताए रास्ते पर चलते हैं और अपने साथियों को भी यही आचरण सिखाते हैं.
गुरु नानक देव ने कहा था —
” ईमानदारी और मिहनत की कमाई रोटी में ईमानदारी का दूध होता है. बेईमानी से कमाए गए पकवान में ग़रीबों का खून रहता है.”
प्रस्तुति- जवाहर लाल सिंह
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