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नेता कहलाने के लिए ……. किश्त -3

jls
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गतांक से आगे —-
घर आने के बाद गजोधर सीधे अपने शयन कक्ष में चले गए और तेजी से चलते हुए पंखे की ओर देखने लगे- यह पंखा भी दिन रात अनवरत गति से चलता रहता है, तनिक विश्राम नहीं लेता, खुद पसीना बहाते हुए दूसरों के पसीने सुखाता रहता है. हमारे गाँव हमारे देश के किसान क्या इस पंखे की तरह नहीं है, वे भी तो दिन रात मिहनत करते हैं अपना पसीना बहा कर दूसरों का पेट भरते हैं उन्हें क्या मिलता है? न तो तन ढंकने के लिए ढंग का कपड़ा मिलता है, न ही सर छिपाने के लिए अच्छा घर. आज भी इनके घरों की औरतें शौच के लिए अँधेरा होने का इंतज़ार करती है …. बच्चे अधूरी शिक्षा के बाद फिर से खेतों में अपने माँ बाप के साथ लग जाते हैं, फसल उगाने में….
चीनी आज कितना महंगा हो गया है पर किसानों को अपने गन्ने की कीमत क्या मिलती है और कब मिलती है? वही हाल अन्य फसलों का है ……. ये मुनाफाखोर बीच में अपनी घुसपैठ कर किसानो से सस्ते मूल्य पर उनका उत्पाद खरीदकर गोदामों में सडा देते है, कृत्रिम अभाव पैदा कर दाम बढ़ा देते हैं और आम आदमी… बेबस, लाचार, सभी तरह के जुल्मों का शिकार!
फिर वे महात्मा गांधी की जीवनी याद करने लगे, रामायण की शरण में गए … इसी उधेर-बुन में कब नींद आ गयी , पता न चला … शुबह उठकर नियमित रूप से टहलने निकले .. फिर अंकुरित चना और मूंग खाकर दूध पी और अपनी मोटर सायकिल पर सवार होकर निकल पड़े, कहाँ जायेंगे अभी कुछ तय नहीं किया था ..
अपने गाँव को छोड़ आगे निकल गए थे …. एक जगह मोड़ पर चाय की दुकान पर रुकना चाहा — तभी महामाया बाबु अपनी नयी कार से बाहर निकले और … ” नमस्कार गजोधर बाबु! कहाँ जा रहे हैं” – सामने आकर खड़े हो गए, ……… “चलिए चाय पीते हैं” … चाय की दुकान पर महामाया बाबु गजोधर और महामाया बाबु के साथ उनके कुछ विश्वास पात्र एक टेबल के पास बैठ गए, पहले मिठाई आयी फिर कुछ नमकीन …..
“गजोधर बाबु आपकी सादगी और स्पष्टवादिता के हम कायल हैं, हमारे देश को आपके जैसे नौजवानों की जरूरत है, आप हमारे साथ आइये, आपकी हिन्दी भी बड़ी अच्छी है, आप हमारे भाषण लिख दिया करें और मेरे साथ अपना समय बिताइए .. फिर देखिये जनता का भला कैसे नहीं होगा. हम कुछ प्रदर्शन करेंगे, भ्रष्ट नेताओं के चेहरे से नकाब उठाएंगे, ……… यह जो नगीना हैं न — महा घुसखोर है! विधायक फंड का आधा हिस्सा मार लेता है और डकार भी नहीं लेता है. हम यह सब बातें जाकर आलाकमान को बताएँगे …..”
गजोधर चुपचाप सुनते जा रहे थे तब तक स्पेशल चाय आ चुकी थी महामाया बाबु ने चाय का गिलास उठाया और गजोधर को भी पकड़ाया….. “जानते है गजोधर बाबु हमारे देश की शक्ति क्या है? ……… आम आदमी, मिहनत कश मजदूर और किसान, कारखाने के मजदूर, आप जैसे बेरोजगार युवक, ये सभी अगर चाहें तो पूरी व्यवस्था को बदल सकते हैं…… हमें इनलोगों के दिलों में जगह बनानी होगी, और यह सब होगा आप जैसे युवकों के अथक प्रयास से………. जनजागरण जरूरी है…….. इस आम आदमी को पता नहीं है कि इसकी ताकत क्या है. ……….. हम जानते हैं आपके अन्दर क्या चल रहा है. आज आप घर जाइये और अच्छी तरह से मनन चिंतन कर हमें सूचित करिए.”
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गजोधर घर लौट चुके थे, फिर से अपने कक्ष में चले गए, रामायण की कुछ पंक्तियाँ याद की गीता के श्लोक का पाठ किया……..
कर्मण्ये वा अधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन.
………..
महामाया बाबु जो कि काफी मंजे हुए नेता हैं, (हैं तो सत्तारूढ़ पार्टी के ही, नगीना के प्रतिद्वन्दी,….. पिछली बार नगीना के चालाकी या कहें धूर्तता के चलते विधान सभा चुनाव में टिकेट पाने में असफल रहे थे,) गजोधर के दिल में जगह बना चुके थे और गजोधर उनकी शरण में आ चुके थे.
महामाया बाबु अपनी इस दूरदर्शिता पर मन ही मन मुस्कुरा रहे थे. गजोधर जैसा मिहनती, बेरोजगार, कुंवारा, प्रतिबद्ध इन्सान उनके कब्जे में आ चुका था.
गजोधर ने एक बार फिर गीता और भगवान कृष्ण को याद किया, भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं ” तुम तो बस निमित्त मात्र हो! कर्म करना ही तुम्हारा काम है, बाकी तुम मुझपर छोड़ दो.”
गजोधर के ह्रदय रूपी दर्पण पर से धूल छंट चुकी थी और दूसरे दिन वे पहुँच गए महामाया बाबु के पास. फिर क्या था महामाया बाबु की मन की मुराद पूरी होती नजर आ रही थी,……….
अब कार्यक्रम तैयार हुआ, इलाके में जितनी भी सभाएं होती, सामाजिक या धार्मिक अनुष्ठान होते, महामाया बाबु और गजोधर निमंत्रण के बिना भी पहुँच जाते और लोगों के दिलों में जगह बनाते. अगर जरूरी हुआ तो मीडिया वाले को भी बुलाते या प्रेस नोट देकर उसे छपवाते….. धीरे धीरे महामाया और गजोधर लगभग हर दिन अखबार की सुर्खिया बनते. सरकारी योजनाओं का भरपूर लाभ आम जनता तक पहुँचने लगा और लोग इनके भक्त हो गए.
भोली जनता बहुत ही जल्द किसी भी ‘शुभचिंतक’ की शरण में आ जाने में ही अपनी भलाई समझती है.
जैसा की हम बता चुके हैं पिछली साल लोग प्रकृति की मार, वर्षा के अभाव का फल देख चुके थे,…………………. सरकारी अनुदान और गजोधर-महामाया के प्रयास से कई नलकूप स्थापित किये गए और खरीफ फसल की भरपाई रब्बी फसल से हो गयी.
लोग खुशहाल थे. इस बार गर्मियों में जगह जगह ‘चैता'(लोकसंगीत) का प्रोग्राम हुआ, गजोधर और महामाया हर कार्यक्रम में अतिथि बनते रहे.
इधर खेतों में नई फसल तैयार हो रही थी और उधर महामाया बाबु की राजनीतिक जमीन.
क्रमश: (शेष अगले अंक में)

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