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नेता कहलाने के लिए ….. किश्त – 5

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गजोधर जी विधायक बन गए हैं, उन्हें कुछ दिन कुर्सी का सुख लेने दीजिये, अब हम महामाया बाबु की जिन्दगी, भूत वर्तमान और भविष्य की आकांक्षा पर थोड़ा प्रकाश डालेंगे.
महामाया बाबु, खानदानी रईश है. इनके पिताश्री विश्वनाथ बाबु, जमींदार थे और अंग्रेजोंके समय भी इनकी तूती बोलती थी पर जमींदारों में इनकी दयालुता तब भी प्रजा में लोकप्रिय थी. सुखाड़ या बाढ़ के वक्त उस समय भी ये अपनी रियाया की मालगुजारी माफ़ कर दिया करते थे. विश्वनाथ बाबु के दो पुत्र महामाया और कामख्या, दोनों ही प्रतिभावान थे. कामख्या शराब और शबाब के आगोश में पड़कर असमय काल कवलित हो गए. अब महामाया बाबु के सिर पर अपने पिताजी की संपत्ति और इज्जत की रक्षा करने की जिम्मेवारी थी.
कई चीनी के मिल और चावल के मिलों के संचालन और देख रेख करने के साथ थोड़ी राजनीती में भी रूचि थी. बड़े बड़े नेता इनके यहाँ हाजिरी देने में अपनी शान समझते थे पर, ये कुशाग्र बुद्धि के साथ साथ दूर दृष्टि भी रखते थे. उनकी संपत्ति और मर्यादा की रक्षा के लिए भी राजनीतिक संरक्षण की जरूरत थी. हमेशा ये तेज तर्रार नेता को अपने कब्जे में रखने की भरपूर कोशिश करते थे. कभी कभी सक्रिय राजनीती में भाग भी लिए तो किसी पार्टी का पदभार सम्हाल लिया. सामाजिक गतिविधियों में वे खुलकर भाग लेते थे और दान भी करते थे. शायद इसीलिये उनके यहाँ आजतक इनकम टैक्स का छापा तो दूर इनकम टैक्स अधिकारी भी उनके यहाँ हाजिरी लगाने में संकोच नही करते थे. बदले में कोई अवसर पर चीनी या चावल आदि की भेंट स्वीकार कर लिया करते थे.
नगीना बाबु, महामाया बाबु के ही शागिर्द थे पर वे अपना घर भरने में और आलाकमान की चाटुकारिता करने में ही अपना भविष्य देखते थे. अब महामाया बाबु को गजोधर के रूप में एक अच्छे नेता की सम्भावना नजर आने लगी थी. वरना आजकल की नेताओं की वोट बैंक और स्वार्थ की राजनीती से वे भी दुखी थे.
सबकुछ अनुकूल पाकर उनके मन में देश की राजनीति में उभर कर सामने आने की इच्छा अंगराई लेने लगी थी.
गजोधर में उन्हें कुछ तो ऐसी चीज दिखलाई पड़ी थी जिसे वे उभरने देना चाहते थे. उसके लिए उन्होंने मंच, आसन और एक क्षेत्र सौंप दिया था और पनपती फसल में यथासंभव खाद और पानी डालते रहते थे.
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इधर गजोधर जनता से किये गए वायदे पर पूरी तरह से खड़ी उतरना चाहते थे. पर अच्छे लोगों के प्रतिद्वंद्वी भी तो पैदा हो जाते हैं.
दूसरे नेता खासकर नगीना बाबु के तन बदन में आग लगी हुई थी. उसने एक दिन भवानी को जमकर शराब पिलाई और हाथ में मशाल पकड़ा दी, कहा- “खलिहानों में आग लगा दो तो हम तुम्हे खुश कर देंगे.”
……. और खेत खलिहान धू धू कर जलने लगी, आग की लपट में किसानों की मिहनत की कमाई स्वाहा हो रही थी, अभी फसल घर आने वाली थी कि …………
गाँव वालों ने आग बुझाने का भरपूर प्रयास किया पर आग तब बुझी जब सारी तैयार फसल जल चुकी थी. फायर ब्रिगेड को सूचना देने और और दमकल गाड़ी पहुँचने भर का समय काफी था …..
किसान और उनकी पत्नियाँ छाती पीटकर कर अपनी ब्यथा का बखान कर रहे थे.
गजोधर भाई को भी खबर हुई और उन्हें भी रोना आ गया पर कर क्या सकते थे, सरकारी मुआवजा का आश्वासन देकर लौट गए. बाद में उन्हें किसी ने बताया कि यह नगीना बाबु की चाल थी और उन्होंने भवानी को मोहरा बनाया था.
गजोधर चूकनेवाले में से न थे. उन्होंने थाने में रिपोर्ट लिखवाई और भवानी को गिरफ्तार करवा दिया थाने में भवानी का सारा नशा काफूर हो गया था और उसने नगीना बाबु का नाम उगल दिया. अब नगीना बाबु भी गिरफ्तार हो गए थे, पर राजनीतिक ताकत के सहारे बेल पर रिहा हो गए……….
इस तरह गजोधर अपने दुश्मन के प्रतिशोध की ज्वाला में आहुति डाल रहे थे.
हर जगह अच्छे बुरे लोग होते हैं और काना-फूसी भी स्वाभाविक चीज होती है. भोला अकेला पर गया था. नगीना बाबु के शागिर्दों ने भोला पर आरोप लगवा दिए कि वह गाँव की बहु बेटियों पर बुरी नजर रखता है. जवान लड़का है इसमें अविश्वास जैसा कुछ नहीं लगता है…… यह सब सुनकर गजोधर परेशान रहने लगे ….
वैसे जब से वे विधायक बने थे इलाके के लोग उनके पास निजी या सामूहिक समस्या लेकर आते रहते थे और वह यथासम्भव समाधान करने की कोशिश करते थे… इधर चूंकि वे परेशान थे इसलिए गाँव वालों को भला-बुरा सुना दिया…
दरअसल बनवारी और मुरारी दोनों भाई काफी दिनों से एकसाथ रहते थे अपनी पत्नियों और बच्चों की लड़ाई में दोनों भी आपस में भिड़ गए और पहुँच गए गजोधर के पास. गजोधर परेशान तो थे ही कह दिया – “अब आपके घरेलू झगड़े को भी हम ही सुलझाएं? कल होकर पति पत्नी झगड़ा कर के भी हमारे पास पहुँच जायेंगे? …… पंचायत के सरपंच और मुखिया जी क्या करते हैं…….
वर्तमान मुखिया और सरपंच भी नगीना के आदमी थे वे दोनों (मानिक और बुझावन) झगड़ा सुलझाने में कम, बल्कि विवाद बढ़ाने में ही ज्यादा रूचि लेते थे. इससे उनकी पूछ बराबर होती रहे और दो बिल्लियों की लड़ाई में बन्दर की हिस्सेदारी वे लेते रहें .. यही मानना था उन दोनों का.
महामाया और गजोधर एक दिन आपस में मिले और सोंच विचार कर फैसला लिया की महाभारत की संक्षिप्त कथा का आयोजन किया जाय- जिससे लोगों में आपसी वैभनस्य को मिटाकर मिलकर साथ रहने में ही भलाई है- इसकी प्रेरणा मिल सके.
महाभारत कथा की समाप्ति के दिन गजोधर ने लोगों के समक्ष उपसंहार रक्खा — “क्या देखा आपलोगोने- दो भाई का झगड़ा कितना बड़ा महाभारत खड़ा कर दिया और अंत में कोई भी राज्य का सुख नहीं भोग सके. इसलिए बेहतर है कि आपसब आपस में मिलकर रहें तो आपकी शक्ति कई गुना होगी और दूसरे आपकी तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत भी न करेंगे.”
इस तरह शांति स्थापन हुई और फिर लोग आपस में मिलजुलकर प्रेम पूर्वक रहने लगे.
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गजोधर जो कि एकदम पिछड़े गाँव का लड़का था आज लोगों के दिल पर राज करने लगा.
कई बार ऐसा होता है, लाल बहादुर शास्त्री गरीब परिवार में ही पैदा हुए थे पर वे भारत के सर्वोत्तम प्रधान मंत्री साबित हुए.
यह कथा काफी लम्बी होती जा रही है और यह अनवरत जारी रहने वाली है.
महामाया बाबु, अब सक्रिय राजनीति में कूद पड़ते हैं, सांसद चुन लिए जाते है पर देश की राजनीति उनके समझ से बाहर निकल जाती है. भूमंडलीकरण के दौर में हम जितना आगे बढ़ते हैं हमारी सोंच और विचारधारा उतनी ही संकीर्ण होती जाती है. हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और विदेशी संस्कृति को अपनाने में ही स्वयं को विकसित होने का अहसास करते हैं. अपने इलाके के लोगों को हम भली भांति समझते हैं और उन्हें नियंत्रित कर मन के मुताबिक ढालना आसान होता है.पर केन्द्रीय स्तर पर जहाँ पूरे देश के लोग जमा होते हैं, सभी अपने अपने इलाके (राज्य) के बारे में केंद्र से विशेष पॅकेज की कोशिश में लगे रहते हैं. यहाँ भी जबरदस्त खेमेबंदी होती है और तालमेल बिठाना उतना आसान नहीं होता. फिर भी जब ऊखल में सर दिया है तो मूसल का क्या डर! …….
महामाया बाबु संसद में अपने विचार रखनेवाले हैं, इनको पार्टी की तरफ से जन-समस्यायों पर बोलने का मौका मिला है…..
महामाया बाबु अपनी सीट पर खड़े हुए और बोलना शुरू किया, आदरणीय अध्यक्ष महोदय, सर्वप्रथम मैं आपलोगों को आभार व्यक्त करना चाहता हूँ कि आपने मुझे जन समस्यायों पर बोलने का मौका दिया है, अध्यक्ष महोदय मैं आपके माध्यम से मैं अपनी राय रखने जा रहा हूँ. जहाँ तक आम आदमी और जनता का सवाल है वह अब काफी समझदार हो गयी है. हमारा यह संबोधन और संसद की सारी कार्रवाही लाइव टेलीकास्ट होता है, इसलिए जनता यह सब देख रही है और सुन भी रही है, हम जो आचरण संसद या विधान सभा में करते हैं वह किस हद तक जायज है! हम यहाँ कानून बनाते हैं और खुद ही उसे तोड़ते हैं, अनुशासन नामकी कोई चीज आज जनप्रतिनिधियों में देखने को नहीं मिल रही है, आखिर हम चुनाव मैदान में अगलीबार क्या मुंह लेकर जायेंगे, अगर हमारा आचरण ही ठीक नहीं है. जनता से हम बहुत सारे वादे कर के आते हैं और यहाँ आकर भूल जाते हैं, जन समस्यायों पर चर्चा होनी है तो हम अपनी पार्टी और अपनी समस्या लेकर बैठ जाते है. दूसरों के दोष दिखाने में अपना दोष छिप नहीं जाता है.
हम विश्व बंधुत्व की उम्मीद रखते हैं, पर अपने छोटे छोटे निजी स्वार्थ को राष्ट्रिय मुद्दा बनाकर आम जनता को बेवकूफ बनाते रहते हैं. जनता आज धरती माँ की तरह सहनशील हो गयी है. धरती जो कि सोना उगलने वाली है, आज दूषित पानी पिलाने लगी है. नदियाँ प्रदूषण का भण्डार बन गयी है. जितने ज्यादा विकसित शहर उतना ही अधिक प्रदूषण. यह प्रदूषण सिर्फ जलवायु में ही नहीं, जन भावना में फैल गयी है. सरकारें निरंकुश हो गयी है और जनप्रतिनिधि भ्रष्ट और लोलुप.
हम सबको मिल बैठकर शांति से विचार कर एक सर्वमान्य हल निकालने की जरूरत है ताकि आम आदमी के साथ सबका भला हो और हमारा देश फिर से एक बार विश्वगुरु बन सके…
इसी देश में विश्व का अमीर आदमी रहता है और इसी देश में एक ऐसी माँ भी रहती है, …. जो अपने दुधमुहे बच्चे को अपने खून से सिंचित कर पाती है क्योंकि उसके पास खुद की क्षुधापूर्ति के लिए दो रोटी का जुगाड़ नही हो पाता है. इस गरीब और अमीर के बीच के गहरी खाई को पाटने की जरूरत है.
धरती की धधकती ज्वाला अब इंसानों के दिलों में आने लगी है, तभी हम आग उगाने की बात करने लगे हैं. गठबंधन की सरकार भ्रष्ट हथकंडे अपनाकर अपनी गद्दी बचाने के लिए शाम,दाम,दंड और भेद की विद्या अपना रही है. हम बोलते कुछ हैं और करते कुछ और हैं. इसलिए हमारा विश्वास घटा है, तभी तो जूतों के प्रहार के बाद अब लोग लात घूंसों पर आ गए हैं. क्या सभ्य और विकसित समाज, देश की यही पहचान है. आज की इस घड़ी में हम सब संकल्प लें और मिलजुल कर देश, समाज और मानवता की सेवा करें. जनता की दी गयी सुविधा का लाभ उन्हें ही मिलना चाहिए जिनके लिए इन्हें बनाया गया है. हम देखते है बहुत सारे बी. पी. एल. कार्ड अमीरों या सामंतों के पास है और सही मामले में जो गरीब हैं उन्हें दर दर की ठोकरें खानी पड़ती है. हमारी गरीब जनता अपनी रोजी रोटी के लिए महानगरों में पलायन कर रही है, और वहां के तथाकथित स्थानीय नेता अपने गुंडे भिड़ा कर उन्हें परेशान करते हैं. यह हम क्या सन्देश दे रहे हैं. अपने देश में रहकर उन्हें दुत्कार और अत्याचार झेलनी पड़ती है. हम जाति, भाषा, धर्म और समुदाय के नाम पर विभाजित हो रहे हैं, फिर हम कैसे अखंड भारत की तस्वीर दुनियां को दिखा पाएंगे. विदेशी ताकतें तो इसी ताक में हैं कि कब हमारी शक्ति कमजोर हो और वे अपना साम्राज्य स्थापित कर सकें.
अध्यक्ष महोदय ऐसा नहीं कि मैं कोई नई बात कह रहा हूँ. हमारे सभी जनप्रतिनिधि विद्वान नेता इन बातों को भली भांति समझते हैं, जरूरत है तो एक सकारात्मक सोंच की और उसे सर्वप्रथम अपने ब्यवहार में लाने की. कोई भी आदमी शत प्रतिशत सही नहीं हो सकता. पर एक इमानदार प्रयास हम अवश्य कर सकते हैं ताकि जनता समझ सके कि उनके हित में काम हो रहा है. अगर सड़कें बनेगी तो उसपर किसी ख़ास वर्ग का आधिपत्य नहीं होगा वरन उसपर सभी चलेंगे. उसी तरह अगर वातावरण स्वच्छ होगा तो सभी के लिए होगा. नदियाँ अगर निर्मल जल प्रवाहित करेंगी तो वह सब के लिए उपलब्ध होगा. आदरणीय अध्यक्ष महोदय मैं आपके माध्यम से सभी सम्मानित सदस्य से अनुरोध करना चाहूँगा की वे जनता के सामने आदर्श बने तभी हम सही मायने में जन प्रतिनिधि कहे जायेंगे. आप सबों का बहुत – बहुत धन्यवाद, इसलिए कि अपने हमारी बात को ध्यान पूर्वक सुना…. उम्मीद है कि आज नहीं तो कल हम जरूर अपनी मंजिल को प्राप्त करेंगे और हमारा देश एक खुशहाल देश होगा! पुन: धन्यवाद!”
आज संसद में सन्नाटा छा गया था, सभी सदस्य, नगीना बाबु की बातों को ध्यान पूर्वक सुन रहे थे और शायद मनन भी कर रहे थे. अंत में तालियों की गर्गराहट हुई और सभी सदस्य एक दुसरे को देखने लगे, भले ही वे कुछ कह सकने की स्थिति में खुद को नहीं पा रहे थे. मीडिया में महामाया बाबु छा गए और अगले दिन वे सुर्ख़ियों में थे.
(सभी पाठकों से मेरा यह नम्र निवेदन है कि उपर्युक्त आख्यान कोरी कल्पना है. इसे किसी यथार्थ क्रियाकलापों से जोड़ना उचित न होगा. नहीं मेरा अभिप्राय किसी भी नियम की अवहेलना या अवमानना करना है. मैंने सिर्फ अपना विचार रक्खा है!)

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आओ मिलकर दीप जलाएं,
मन के उजियारे से हम सब,
नई शुबह की ज्योति जगाएं,
आओ मिलकर दीप जलाएं
दूर करें अब अधियारे को,
हर भ्रान्ति को दूर भगाएं.
आओ मिलकर दीप जलाएं
पंछी बन आकाश में उभरें,
सुख शांति के गीत ही गायें.
आओ मिलकर दीप जलाएं.
तेरा मेरा क्या है भाया,
आओ अब बाहें फैलाएं.
आओ मिलकर दीप जलाएं.
कलियाँ खिल अब फूल बनी है,
मस्त हवा में वे लहराएँ.
फूलों की बस्ती है प्यारी,
‘भँवरे’ क्यों न गुनगुनाये.
‘राजकमल’ से दीप्त सरोवर,
‘सूर्या बाली’ कमल खिलाये.
‘विनीत’-‘निशा’ के आंगन में
‘शशि भूषण’ जी क्यों शर्माए.
मन अब भी ‘संतोष’ करो जी,
नृप ‘अशोक’ को बुद्ध ही भाए
‘सचिन’ शतक हो गया अगर भी
यों ही कारवां चलती जाए.
दीप अगर ‘संदीप’ बने तो
‘शाही जी’ भी मुस्कुराएँ.
भर कर दीप, स्नेह से सिंचित
‘भरो दिया’ जो जगमगाए,
आओ मिलकर दीप जलाये.
खेतों में फसलें लहराए
दिल में उजियाला ले आये.
आओ मिलकर दीप जलाएं!
आओ मिलकर दीप जलाएं!
साभार – जवाहर लाल सिंह.

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