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ऐ मुछ्छर दारोगा, ऐ मेरे भाई!
हाथ में छड़ी, बगल में तमंचा भी है भाई!
तुम्हारे पीछे वह बुड्ढा कौन है?
गांधी टोपी पहने चुपचाप मौन है!
तुमने आदेश कहाँ से है पाई,
मैंने नहीं पहनी हथकड़ी आजतक मेरे भाई!
हे मेरी लाठी की अनुजा,
क्या इसीलिये मैंने इतनी तेल पिलाई!
पहले भी यमदूत मेरे सपने में आ चुके हैं,
मुझे बार-बार डरा चुके हैं,
अब तुम्हारा यह वर्दी अवतार,
भागो,भागो,मेरे यार!
भागो, हे मुलायम भाई!
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मूंछों पर ताव देते हुए, दारोगा बोला-
उसने भी राज अपना खोला,
याद है तुम्हे, तुमने मुझ पर ही थूका था,
दूकान से पान मंगवाने से न चूका था,
तुमने मुझसे ही खैनी बनवाई थी,
तुझे जरा भी तब शर्म नहीं आई थी?
अब क्यों झुंझलाते हो?
अपनी करनी का फल ही तो पाते हो!
रोपे पेड़ बबूल का, आम कहीं पाते हो?
गुस्सा तो उसी दिन आया था मुझे,
जब तूने थप्पड़ लगाया था मुझे!
तब मेरे हाथ बंधे थे,
तुम जैसे नेताओं को, सलाम ठोकने को ही सधे थे.
अब है मेरी बारी,
क्योंकि लोकपाल ने कर ली है तैयारी,
करनी है मुझे तेरी गिरफ्तारी,
यह आदेश मैंने उसी से है पाई,
अब आ जरा झुको मेरे बड़े भाई!
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झुकते ही, नेताजी ने अजब सी झटका पाई!
अरे! यह तो सपना था, अरी, ओ बिटिया की माई!
जरा अदरख वाली चाय तो बनाना
और वहां जो रक्खी है, उस फाइल को लाना!
कल के भाषण की करनी है तैयारी,
यही तो है …… मगजमारी.
यह बुड्ढा भी पगला गया है,
कुछ नौजवानों को बरगला गया है,
देश उसके पीछे निकल पड़ा है,
कहता है, अनशन करेगा,
नौजवानों से जेल भरेगा.
कोई जुगत तो भिड़ाना होगा,
धर्म का मसाला सबसे आसान है,
यही तो हमारे देश की जान है.
हम कहेंगे मुसलमानों को आरक्षण दो,
दुसरे कहेंगे यह गलत है,
हम सरकार को भी ललकारेंगे,
विदेशों में क्या मुंह दिखाओगे,
अपना काला मुंह लेकर जाओगे?
फिर उससे ऋण कैसे पाओगे!
एक दिन तो लोग दहशत में गुजार देंगे,
फिर चार दिन छुट्टी में कुछ और ललकार देंगे,
मीडिया बड़ा चटकारा ले रहा है हम उसे भी सुधार देंगे.
जनता तो तमाशबीन है, उसे अनाज से तोल देंगे,
पेट जब भड़ा होगा, सब भूल जायेंगे,
खुशी खुशी वोट देने, स्कूल आएंगे.
बूढ़ा बेचारा, ठंढ से मर जायेगा,
खूंखार बूढ़ा, धीरे से मुस्कुराएगा!
एक जंगल में, एक ही शेर काफी है,
अभी भी इस जंगल में बचे भेड़ काफी हैं!
अभी भी इस जंगल में बचे भेड़ काफी हैं!
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