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नव वर्ष का उपहार!

jls
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बिन पंकज सब सून!
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून!
पानी बिना न उबरे मोटी मानुष चून!
यह दोहा रहीम कवि ने काफी समय पहले लिखा था पर आज भी उतना ही सत्य है. बल्कि आज ज्यादा सत्य है क्योंकि आज स्वच्छ पेय जल की अत्यंत ही कमी है. पर हम काहे सुधरेंगे, आज भी हम न तो जल की बर्बादी को रोक पाए है न ही जल संरक्षण की कोई परियोजना ज्यादा कारगर सिद्ध नजर आती है.

मैंने ऊपर की पंक्तियाँ केवल भूमिका भर के लिए लिखी है – दरअसल हमारा मकसद कुछ दूसरा ही है. जहाँ हम कार्यरत हैं वहां एक ‘पंकज’ नामका लड़का काम करता था, सबसे निचले दर्जे का कर्नाचारी वही था, पर सबसे ज्यादा उत्तरदायी भी वही था. सबेरे साढ़े सात बजे मधुर मुस्कान लिए वह आ जाता था जबकि उसकी ड्यूटी आठ बजे से शुरू होती थी. आठ बजे से पहले वह पानी की सारी बोतलें धोकर ताजे पानी से भर देता था और आठ बजते बजते फर्स्ट क्लास A grade की चाय ट्रे में लेकर सबके सामने उपस्थित हो जाता था. फिर वह biscuit का packet खोलता था और सबको दो बिस्कुट ही देता था, खुद भी वह दो ही बिस्कुट लेता था और दो घूँट ही चाय पीता था. फिर वह सफाई सुथराई में लग जाता था हमलोगों का टेबुल से लेकर फर्श की पूरी सफाई कुछ ही समय में कर देता था.. Pantry तो उसका अपना Drawing हॉल था उसे वह उसी ढंग से सुसज्जित रखता था. हर सामान अपने जगह पर रहता था और आसानी से मिल भी जाता था. सभी सामान उसकी जानकारी में रहते थे. यहाँ तक की किसी की गाड़ी की चाभी नहीं मिल रही हो तो भी उसी से पूछता था और वह खोजकर निकाल भी देता था. वैसे वह कम पढ़ा लिखा था पर उसकी बुद्धि इतनी तेज थी की बड़े-बड़े उसके सामने मात खा जाते थे. हर छोटे-बड़े, महंगे-सस्ते सामानों की जानकारी उसे थी और हर तरह के काम में माहिर था.
कोई व्यक्ति अगर घर से नास्ता करके नहीं आया तो वह उसका दो रोटी खा सकता था या बाहर से उसी के द्वारा कुछ मँगा सकता था. किसी को हेड ऑफिस से कुछ पेपर मंगवाना या भिजवाना हो वह हमेशा तत्पर रहता था. किसी को ट्रेन का टिकट चाहिए या टेलिफोन बिल जमा करना हो.- हाजिर हैं जनाब! यह सब काम वह मुस्कुराते हुए कर लेता था और आने के बाद समय पर सबको चाय भी पिला देता था. अगर साहब लोगों की मीटिंग हो, कोई विशेष आयोजन हो हमेशा बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से करता था और हमेशा स्मार्ट दीखता था. विचारों से स्वच्छ और इमानदार इतना की आज के ज़माने में ऐसा व्यक्ति दुर्लभ ही कहा जा सकता है. ड्यूटी से जाते वक्त किसी कारण बस अगर विलंब भी हो गया तो उसे परवाह ना होती थी.

मैं कई दिन की छुट्टियों के बाद ड्यूटी ज्वाइन किया था अपने कार्यस्थल की स्थिति देखकर मुझे ऐसा लगा कहीं मैं दूसरी जगह तो नहीं आ गया!
मुख्य द्वार के पास ही गन्दगी का ढेर!, सीढियां गंदी! जगह जगह टेबल पर चाय के प्यालों का ढेर, टेबल काफी गंदे! वेस्ट बिन अपनी औकात से ज्यादा गंदगी को नहीं पचा पाने के कारण उल्टी करता सा नजर आ रहा था. pantry की हालत सबसे ज्यादा ख़राब थी. मुझे तो विद्यापति के गीत ‘ऊदना(पंकज) रे, तू किथ गयो!’ याद आने लगे!
कबीरदास की पॅक्ति भीनी भीनी चुन्दरिया ना जानी!
जब पंकज हमलोगों के बीच था हमने उसकी कदर ना जानी!
बेचारे की शादी हो गयी थी और इस मंहगाई में उसका गुज़ारा नही चलता था; तभी तो वह अपने घर जैसे दफ़्तर को छोड़कर भागा! हमलोग उसे रोक नही पाए! तो अब परेशान होने की क्या ज़रूरत है! अगर हम उसकी अमूल्य सेवा के लिए उसकी थोड़ी सी तनख़्वाह नही बढ़ा सकते थे तो फिर आँसू बहाने से क्या फ़ायदा…..

अब तो यही लगता है की अगर आज रहीम कवि जिन्दा होते तो यही लिखते –
रहिमन पंकज राखिये बिन पंकज सब सून, पंकज बिना न कुछ मिले, चाय बिस्कुट नून..
बेचारा पंकज यहाँ से काम छोड़कर चला गया तो ऐसा लगता है, स्वर्ग नरक में बदल गया है! पर किसी ने ठीक ही तो कहा है!
बॉस ईज औलवेज राइट! मत करो बॉस से फाइट!
हम बस इतनी ही कामना कर सकते हैं कि पंकज जहाँ भी रहे खुश रहे और अपने आस पास के लोगों को भी खुश रखे जो कि उसके स्वभाव में है………!
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ऊपर लिखी गयी सत्यकथा हम पहले लिखकर पोस्ट कर चुके हैं और हमारे पाठक-बन्धु अपनी-अपनी प्रतिक्रिया भी दे चुके हैं…….
अब आज पुन: इस प्रसंग को याद करने का मकसद क्या है? तो मेरे मित्रों, भाइयों, बहनों, गुरुओं, गुरुभाइयों, आपसबको मैं बताना चाहता हूँ कि दुआओं का असर होता है!
हम सब अंतर्मन से चाहते थे कि पंकज पुन: इसी जगह पर लौट आए! सभी अपनी अपनी राय भी जाहिर कर चुके थे जो विभिन्न माध्यमों से होकर बॉस के कानों तक भी जाने लगा था और और अन्ततः बॉस को यह बात समझ में आ गयी कि पंकज का स्थान दूसरा नहीं ले सकता. बीच में कितने लोग आए और चले गए किसी को भी उतने पैसे में इतना सारा काम करना या तो मंजूर नहीं था या यहाँ का काम पसंद नहीं था. लगभग एक साल से भी ज्यादा हमलोगों ने घोर असुविधा का सामना किया……
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तभी एक दिन बॉस की आवाज सूनी,- “पंकज जरा देखना तो मेरी कार की चाभी और मेरा मोबाइल कहाँ है?” और पंकज हाजिर था कार की चाभी और मोबाइल के साथ…. ” सर, जब आप अपने कक्ष से निकल रहे थे, मैंने देख लिया था आपका मोबाइल और चाभी टेबुल पर ही पड़ी थी!”- मुस्कुराते हुए वह बोला. बॉस ने उसे शाबाश कहा और मेरी और देखते हुए अपनी कार में बैठ गए. मेरा रोम रोम खिल गया और मैंने अपनी खुशी जाहिर करने के लिए पंकज को कुछ रुपये दिए और कहा – “कुछ मीठा और नमकीन ले आओ हम सब सेलिब्रेट करते हैं.”
बस कहने भर की देर थी, सबकुछ कुछ मिनटों में ही हाजिर हो गया. सारी सामग्री प्लेट में सजाकर सभी सहकर्मियों के सामने रख दी गयी, सबने मुंह मीठा किया और चाय पी.
अभी कुछ ही दिन हुए थे उसे पुन: योगदान किये और सारा कुछ ब्यवस्थित हो गया था! वह भी अपनी बढ़ी हुई तनख्वाह से खुश था और हम सभी उसकी ब्यवस्था से खुश थे. उसका मुस्कुराता चेहरा और सहयोगात्मक क्रियाकलाप सबके तनाव को दूर भी कर देता था. एक दिन हमारे सहकर्मी किसी फाइल को नहीं ढूंढ़ पा रहे थे, और बड़े परेशान दिख रहे थे-‘बॉस को क्या जवाब देंगे?’ तभी पंकज पास आकर पूछता है,-” क्या बात है सर, आप बहुत परेशान दिख रहे हैं!” ” अरे हाँ, पंकज तुम्हे शायद पता हो ‘अमुक’ फाइल जिसे मैं कल देख रहा था पता है, कहा है?” थोड़ी देर बाद ही पंकज वही फाइल लेकर हाजिर था, ” सर आपके टेबुल की नीचे वाली दराज में था, शायद आपने ही रखा था उसके ऊपर और भी फाइलें रखा गयी थी, इसीलिए शायद नहीं मिल रहा था”,
मेरे सहकर्मी झेंपते हुए बोले – “अरे मैंने ही उसे सुरक्षित जगह सोंचकर रक्खा था और आज भूल गया. थैंक्स पंकज! तुमने मुझे बचा लिया, नहीं तो आज बॉस की झाड़ सुननी पड़ती!”
इसी तरह बहुत कुछ छोटी-मोटी बातें जो किसी को भी परेशान कर देती थी; वह ‘अलादीन के चिराग के जिन्न’ की भांति हाजिर हो जाता था. अगर आप ज्यादा परेशान है और कुछ समझ में नहीं आ रहा है तो वह चाय या कॉफ़ी भी आपको दे जाता है, ताकि आप थोड़ी देर के लिए अपनी परेशानी भूल जाएँ! या फिर कुछ ऐसे सवाल कर देगा जिसे सुनकर आप मुस्कुराएँ बिना नहीं रह सकते.
मसलन- “सर एक बात बताएँगे?” “क्या बात है भाई, बोलो.” “सर, अन्ना जी कौन हैं और वे किस ‘बिल’ की बात कर रहे हैं?
अपने देश का प्रधान मंत्री कौन हैं ‘मनमोहन सिंह’ या ‘सोनिया गांधी’?
“बाबा रामदेव किस काले धन की बात कर रहे हैं? धन काला कैसे हो सकता है?” आदि आदि.
और अब हम यह कह रहे हैं, पंकज बिना न कुछ मिले, चाय बिस्कुट नून!
पंकज पुनि आए गयो, खुशी हो गयी दून!

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