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सकारात्मक सोच!

jls
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सकारात्मक सोच से धनात्मक उर्जा (positive energy) मिलती है, ऐसा मैंने किसी महापुरुष या संत के मुख से सुना था. तब से मेरी सोच सकारात्मक होने लगी है! और हर चीज के सकारात्मक पहलू के बारे में सोचने लगा हूँ.
मान लीजिये सचिन तेंदुलकर अपना सौंवां शतक नहीं लगा पा रहे हैं – सकारात्मक सोंच — सचिन इसलिए शतक नहीं बना रहे हैं क्योंकि टीम इंडिया जीत नहीं रही है! जिस मैच में टीम इंडिया जीतेगी उसी में बनेगा सचिन का सौंवां शतक. वैसे भी सचिन अगर शतक बना भी लेंगे तो क्या आप उनसे एक सौ एक की मांग नहीं करेंगे. बेचारे अगर सौ बना भी लेंगे तो आप कहने लगेंगे कि अब सचिन को अन्तराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लेना चाहिए. इसलिए जब तक आश है तभी तक तो साथ है!
अब आप कहेंगे कि टीम इंडिया जीत क्यों नहीं रही है – सकारात्मक सोच – तभी तो धोनी अब retirement की सोच रहे हैं और अब दूसरे प्लेयर को मौका मिलेगा टीम इंडिया की बागडोर सम्हालने को,…. और टीम में बदलाव भी तभी होगा …… ताकि नए नए प्लेयर्स को मौका मिलेगा!
अब खेल से दूसरी तरफ आते हैं.
मायावती आजकल अन्दर ही अन्दर बहुत खुश है क्यों कि चुनाव आयोग और विरोधी पार्टियों ने उनकी अनजाने में मदद कर दी है. जो लोग नहीं जानते होंगे कि बसपा का चुनाव चिह्न ‘हाथी’ है वे भी जान गए और सतीश चन्द्र मिश्र जी को मौका मिल गया अपनी भड़ास निकालने का (या कहें कि अपनी माया मेम साब को खुश करने का!). अब अगर उनकी सरकार नहीं भी बनती है तो भी उन्हें विपक्ष में बैठकर नयी सरकार और केंद्र की सरकार को कोसने का मौका खूब मिलेगा.
अब जरा राहुल बाबा की तरफ भी सोच लीजिये – लोग कहते हैं यह कुंवारा है और गरीबों दलितों के घर भोजन करता है.- वास्तविकता तो यह है कि वह अपना चुनावी खर्च बचा रहे हैं, नहीं तो सोंचिये उनके लिए खाना अगर दिल्ली से मंगाया जाता तो वह खर्चा भी चुनाव खर्च में जुट जाता. अब पंडित जवाहर लाल नेहरु का जमाना तो है नहीं कि वे पेरिस में कपड़े धुलवाएँ और मीडिया से बच जाएँ. दूसरी तरफ हो सकता है वे उ. प्र. की गाँव में अपने लिए कुंवारी कन्या तलाश रहे हों जो उनके लायक पत्नी और उनकी माँ के लायक बहु मिल जाय जिससे उनपर विदेशी होने का ठप्पा पूरी तरह से निकल जाय.
हमारे ‘संतोष भाई’ बहुत ही चिंतित हैं कि मनमोहन सिंह अपने दोनों हाथ जेब में डाल कर क्यों रखते हैं – अरे भाई! वे नहीं चाहते कि कोंग्रेस का चुनाव चिह्न दिखाकर उसका प्रचार करें (क्योंकि उन्हें तो चुनाव लड़ना भी नहीं है.)
अब बाबु सिंह कुशवाहा पर आते हैं – देखिये यह है भाजपा का विभीषण! विभीषण को भी रावण ने लात मार कर अपनी सभा और देश से बाहर किया था, और राम ने अपनाया था क्योंकि राम शरणागत वत्सल थे और भाजपा राम की पार्टी.
अब लीजिये पार्टियों का चाल और चरित्र पर – भाजपा में टिकट नहीं मिलने पर लोग जमीन पर लोटकर अपने प्रदेश अध्यक्ष का मत्था टेकते हैं और समाजवादी पार्टी में कुर्सी के लिए कुर्सियां चलाते हैं. यह आपको पार्टी के चरित्र को भी उजागर करता है. पर मीडिया वाले इसी को मसाला बना डालते हैं, पता नहीं वे कब सकारात्मक सोंच विकसित करेंगे.
अब थोडा पड़ोस पर भी नजरें डाल लीजिये – हमारे पड़ोसी देश के राष्ट्रपति दुबई जाते हैं तो तुरंत खबर आ जाती है कि वे देश छोड़ कर भाग गए! अरे वे कोई अमेरिका या इंग्लैंड गए थे?
अब गिलानी साहब को लीजिये – उनकी मधुर भाषा को सुनिए – “दुःख में तो कौवे भी इकठ्ठा हो जाते हैं आप लोग तो इंसान हो!”
हमलोग अभी ठंढ से परेशान हो रहे हैं. जरा सोंचिये विदेशों में जहाँ हमेशा ठंढ रहती है और वे लोग बर्फ से खेलते हैं, उसपर स्केटिंग करते हैं.
कभी हम सड़कों पर गाय-भैंसे देखकर डर जाते हैं – पर काफी समय पहले हिंदी के महान लेखक और पटना विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य देवेन्द्र प्रसाद शर्मा ने लिखा था-हमारे यहाँ गाय भैंसे ट्रैफिक कंट्रोल का काम करती हैं – सोचिये! ये लोग ट्रैफिक पुलिश का काम कितना आसान कर देती हैं. वे आराम से कही खैनी लगा सकते हैं या पान दूकान पर अड्डा मार सकते हैं!
इसी तरह सड़क पर गन्दगी फेंकनेवाले को कोसते रहते हैं – पर सोचिये अगर सडक गन्दा न होता तो मुनिस्पलिटी का क्या काम रह जाता. यही तो एक काम वे करवाते है या फिर इसी की धमकी देकर हड़ताल पर भी चले जाते हैं.
इसी तरह की सकारात्मक सोच हमलोगों को ‘बाबा’ या ‘अन्ना’ के बारे में भी रखनी चाहिए. आज नहीं तो कल या फिर २०१४ तक परिवर्तन तो आयेगा ही जिसका श्रेय भले ही जिस किसी को मिले.
आपलोग भी तो बहाने ढूढ़ते रहते हैं, कुछ लिखने के बहाने अगर सबकुछ ठीक ठाक रहेगा तो आप लिखेंगे किसपर? या फिर गुणगान ही करते रहेंगे……
बस आज इतना ही. बाकी आपलोग भी अपना अपना योगदान तो दे ही सकते हैं (प्रतिक्रिया के रूप में.)

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