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सकारात्मक सोच के कुछ और नमूने!

jls
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हमारे इलेक्ट्रोनिक दृश्य मीडिया (टी. वी. चैनेल्स) का आजकल कुछ काम नहीं रह गया है! हर जगह कैमरा फोकस कर देते हैं.
आज एक राष्ट्रीय चैनेल ने यह दिखा दिया कि एक बच्चा मध्य प्रदेश के मंत्री गौरी शंकर बिशेन जी (छिन्द्वारा में एक कार्यक्रम के दौरान) के जूते का फीता बांध रहा है.— अरे भाई इस बात को इतना तूल देने की क्या जरूरत है? — एक बच्चा बड़ों से आशीर्वाद लेने के लिए उनका पैर छूता है कि नहीं! वही तो वह बेचारा बच्चा कर रहा था. कितना गर्व से वह फोटो दिखाकर कभी भविष्य में गौरी शंकर जी से अनुदान के लिए विनती कर सकता है!
अब NRHM (राष्ट्रिय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन) के बारे में सोंचिये – CAG की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश को इस मद में २००५ से लेकर २०११ तक केंद्र से ८६५७ करोड़ रुपये मिले. दिग्विजय सिंह तुरंत बोल पड़े यह राशि सामान्यत: दी जाने वाली रकम से पंचगुना ज्यादा है. और तभी उमा भारती को भी मौका मिल गया राहुल गांधी की बात को सच साबित करने का-“कांग्रेस खिला रही है माया के हाथी को रूपए”…… चलो भाई हमारे जंगल के पत्ते तो बच रहे हैं और पर्यावरण को फायदा हो रहा है.वैसे भी पत्थर के हाथी कुछ खाते भी हैं यह मेरी समझ से पड़े है!
कुछ लोग और तिल का तार करते हैं.
अम्बुलेंस खरीदे गए पर उनका उपयोग न हुआ- कितनी अच्छी बात है कि अम्बुलेंस के उपयोग की जरूरत न पड़ी. आदमी बीमार पड़े ही नहीं… और जहाँ बीमार पड़े वहाँ तक जाने के लिए सड़के नहीं थी… वैसे पेट्रोल की खपत बचाकर कितनी राष्ट्रीय मुद्रा की बचत की गयी इस बात को कोई भी रेखांकित नहीं करता है. वही पैसे बचाकर रखे गए थे चुनाव खर्च के लिए! पर चुनाव आयोग के डर से कभी कभी पुलिस भी ज्यादा सतर्क हो जाती है और नगद रुपयों को ढूढ़ निकालती है…… यह पैसा अपने ही प्रदेश में तो था न विदेश तो नहीं गया था, जिसके लिए बाबा रामदेव को और ज्यादा जोर लगाना पड़ता वापस लाने के लिए!
कभी तो सीबीआई कहती है २१०० करोड़ का घपला हुआ है तो कभी CAG बताने लगती है कि ५००० करोड़ का हेर फेर हुआ है. यह कोई बड़ी राशि भी नहीं है जिसके लिए इतनी हाय तौबा की जाय. जहाँ लाखों करोड़ ( 2G spectrum ) का चूना लगता है और एकाध केन्द्रीय मंत्री जेल चले जाते हैं वहां इस तुच्छ राशि के लिए इतना शोर मचाना, वह भी चुनाव के समय में ठीक नहीं है. जहाँ बुआ-भतीजा में जुबानी जंग चल रही हो, मम्मी जी (सोनियाजी) उत्तराखंड की बर्तमान सरकार पर बरस रही हों और प्रधान मंत्री अपनी मात्रीभाषा (पंजाबी) को देखकर पढ़ते हों वहां इन सब छोटी छोटी बातों पर इतना शोर करना कितना उचित है?
ये संतोष भाई भी दिल्ली में आत्मा ढूढ़ते रहते हैं. आत्मा तो लुधियाना में होगी. दिल्ली तो दिल वालों की है. यहाँ आत्मा नहीं दिल ढूढ़ना चाहिए, जैसे शीला जी (शीला दीक्षित) का दिल, सोनिया जी का दिल (जो कि विदेश में है), चिदंबरम जी का दिल (रहमदिल!)…….वो तो कभी कभी बाबा जी के लिए पत्थर (दिल) करना पड़ता है.
मेरा दिल हमेशा सकारात्मक सोचता है. आपलोगों के विचार कुछ अलग हट के हो सकते हैं. उसमे भला मुझे क्यों आपत्ति होगी. यही तो एक स्वतंत्रता मिली है हमसबको. हमलोग अपनी अपनी बात कह सकते हैं लिख सकते हैं. हाँ किसी धर्म सम्प्रदाय पर चोट करना उचित नहीं! नहीं तो सलमान रश्दी और तसलीमा नसरीन जैसे देश छोड़कर बाहर रहना पड़ेगा…….
आज इतना ही ……. जवाहर.

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