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ट्रेन से यात्रा के दौरान बगल वाले सज्जन से बात चीत शुरू करने के इरादे से बोला- ठंढ फिर से लौटकर आ गयी!
बगल वाले सज्जन की प्रतिक्रिया ठंढी सी थी. उनके मुंह से निकला – हूँ.
आप कहाँ तक जायेंगे – मैंने बात आगे बढ़ाने के लिए पूछ लिया.
कानपुर.- सपाट सा जवाब.
-उधर कैसी हवा चल रही है?
-बहुत ही ठंढी.
-मेरा मतलब चुनाव से है.
-पता नहीं.
-क्यों? आप राजनीति में रूचि नहीं रखते?
-नहीं.
मैं बड़ा मायूस हो गया. बातचीत आगे बढ़ ही नहीं रही थी.
फिर चाय वाला आया हम दोनों ने चाय की चुस्की ली. पर पैसे बगल वाले सज्जन ने दे दी.
-“कोई बात नहीं आगे भी हमलोग चाय पीयेंगे, तब पैसे आप दे दीजियेगा.” उन्होंने कहा.
मेरी हिम्मत बढ़ी. मैंने पूछ लिया – “आप क्या करते हैं?”
-“बिजनेस.”
-शायद उसी सिलसिले में यहाँ आना हुआ था!
-हाँ, मेरी यात्रा चलती रहती है.
–आपके हिशाब से कौन सी पार्टी बेहतर है? बसपा, सपा या भाजपा?
-“कोई नहीं. सभी एक ही थैली के चट्टे- बट्टे हैं.
……आपने सुना नहीं बसपा से भगाए गए बाबु सिंह कुशवाहा कैसे भाजपा में स्वीकार कर लिए गए. यहाँ भी दबी जुबान से विरोध करने वाले बहुत से लोग थे. पर पैसा सबसे बड़ा है. आपको पता है मैंने यह बर्थ कितने में खरीदी है?”
-मैं कैसे जान सकता हूँ. मैंने तो बहुत पहले अपनी बुकिंग इंटरनेट से करा रक्खी थी.
-मैं ऐसा नहीं करता हूँ. मेरा कोई दिन तारीख निश्चित नहीं रहता इसलिए जब कभी भी जाना होता है, ट्रेन में ही इंतजाम हो जाता है. इस बर्थ का स्वामी किसी कारण वश नहीं आया और यह बर्थ मुझे मिल गया तीन सौ रुपये में.
मैंने अपना सर ठोक लिया.
-घबराइए नहीं, अभी चूंकि सीजन नहीं चल रहा है इसलिए तीन सौ में इंतजाम हो गया नहीं तो पांच छे सौ भी देने पड़ते हैं.- उन्ही सज्जन ने जोड़ा
-पर नियमत: तो वेटिंग लिस्ट वाले को मिलनी चाहिए थी!
-अरे छोड़िये भी! आपने क्या कभी ट्रैफिक नियम नहीं तोड़ा. आप जहाँ भी काम करते हैं पूरे मनोयोग से काम करते हैं, या अपने बॉस को खुश रखने के लिए दिखावा करते हैं.
-आपको पता है कांट्रेक्ट लेने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं? सबलोग सरकार की भ्रष्टाचार की बात करते हैं पर प्राइवेट कंपनियों में भी कुछ कम भ्रष्टाचार नहीं है.सभी अपनी अपनी जगह पर देश को या कहें आम जनता को लूट रहे हैं.
मैंने उन्हें मुख्य विषय पर खींचना चाहा- “पर भाजपा बाकी सभी पार्टियों से बेहतर और कम भ्रष्ट है”.
-अगर ऐसा होता तो मध्य प्रदेश में आम कर्मचारी (क्लर्क) के घर से कुबेर का खजाना नहीं निकलता. कर्नाटका के बारे में आप सभी जानते ही हैं. गुजरात अपवाद हो सकता है.
-पर कांग्रेस तो सबसे ज्यादा भ्रष्ट है. इन्ही लोगों के पैसे स्विस बैंकों में सबसे ज्यादा है. इनके शासन काल में महंगाई और बेरोजगारी ज्यादा बढ़ी है.
-वह इसलिए कि सबसे ज्यादा समय इन्ही का राज रहा है.
मेरा माथा ठनक रहा था. मैंने फिर कहा – “अच्छा यह बताईये माया और मुलायम में कौन बेहतर है.”
-दोनों भ्रष्ट हैं माया का तो अपना कहने को कोई नहीं है इसलिए अपना और काशीराम की मूर्तियाँ स्थापित कर रही है और मुलायम को देखिये अपने बेटे को आगे बढ़ा रहा है. उनका भाई राम गोपाल यादव पहले से राजनीति में है…… आप कांग्रेस के ऊपर तो वंशवाद का आरोप लगाते हैं, बाकी लोग क्या कर रहे हैं? …..लालू, पासवान को देखिये!….. आपका शिबु सोरेन का बेटा उप मुख्य मंत्री बना बैठा है. बिहार को नयी दिशा देनेवाले नितीश बाबु अब U P के रास्ते दिल्ली जाना चाहते हैं, तभी तो NDA को छोड़ U P में JDU के प्रचार में लगे हैं….. जयप्रकाश बाबु ने कांग्रेस से उखाड़ने के लिए सभी दलों को आपस में मिलाया था. तभी वे इंदिरा गांधी जैसी मजबूत नेता को धराशायी कर सके थे, पर सभी दलों की स्थिति तो आप जानते ही हैं, तीन कन्नौजिया तेरह चूल्हे वाली स्थिति में जी रहे हैं. हमने अंग्रेजों को भगाया था तब भी हम सब एक हुए थे आज हम सही अर्थों में भारतीय भी नहीं रह गए हैं.
-“आप वोट किसे देंगे?” मैंने बात को फिर से मुख्य मुद्दे पर लाने की कोशिश की.
– “किसी को नहीं. मैं वोट नहीं देता हूँ. …….. आपलोग ६५% मतदान पर फूले नहीं समाते हैं. बाकी ३५% क्यों मतदान नहीं करते?…. बताइए! मैं उन्ही ३५%में हूँ!
जब मुझे कोई पार्टी, कोई नेता पसंद नहीं है तो मैं वोट क्यों करूँ. किसी निर्दलीय या छोटी पार्टी को वोट देकर अपना वोट बर्बाद क्यों करूँ.
क्यों नहीं कोई पत्रकार, साहित्यकार, समाजसेवी चुनाव में खड़ा होता है. सभी यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि राजनीति बड़ी गंदी चीज है. अगर यह गंदी है तो इसे साफ़ कौन करेगा? केवल आलोचना करने से तो काम नहीं बनने वाला. क़ानून संसद बनाएगा और संसद के लोग लोकपाल बिल पर केवल संशोधन करते करते बारह बजा देंगे… फिर सुधार कैसे होगा. बताइए न! अब चुप क्यों हैं!”
मुझे लगा यह महापुरुष भी दूर की सोच रखता है. क्या सभी बुद्धिजीवियों के लिए यह सोचने का समय नहीं है? अच्छे लोग राजनीति में आने चाहिए. नित नयी पार्टी बनाकर देश का भला नहीं होनेवाला.
पार्टी में अच्छे, विचारवान, कृतसंकल्प, नैतिक जिम्मेदारी लेने वालों की जरूरत है.
इतनी बात सुनने के बाद मैं चुप हो गया और अपना बिस्तर लगाने की सोचने लगा. वे सज्जन भी आराम की मुद्रा में आ गए. सब कुछ शांत सा हो गया पर मेरा मन कई दिनों तक अशांत रहा. आज इसे आपलोगों से साझा कर रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ कि आप सभी बुद्धिजीवी इस विषय पर चिंतन अवश्य करेंगे.
सादर – जवाहर.
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