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एक महात्मा भागवत कथा सुना रहे थे ……
तभी आयोजक/संचालक महोदय महात्मा जी को थोड़ा सा रुकने को कह उद्घोषणा करने लगा – एक बच्चा, शायद अपने माता पिता से बिछुड़ गया है और रो रहा है. उसे ओफीस में बिठाकर रखा गया है, जिन किसी महानुभाव का हो आकर ले जाएँ….. तभी एक पर्ची उन्हें दी गयी .. पर्ची के अनुसार .. यह बच्चा श्री छगन लाल जी का है, वही छगनलाल जो शुद्ध घी के ब्यापारी हैं, जिनकी बड़े बाजार में बड़ी सी दूकान है, उनसे निवेदन है कि वे जहाँ कहीं भी हों, आकर अपने बच्चे को ले जाएँ. धन्यवाद! .. कथा शुरू हो गयी ……
दस मिनट बाद पुन: आयोजक महोदय मंच पर आए, महात्मा जी से प्रार्थना की, उनसे समय माँगा …. एक आवश्यक सूचना ….. एक बच्चा रो रहा है उसे ऑफिस में बिठाकर रक्खा गया है …. यह बच्चा श्री छगन लाल जी का है, वही छगनलाल, जो शुद्ध घी के ब्यापारी हैं, जिनकी बड़े बाजार में बड़ी सी दूकान है, उनसे निवेदन है कि वे जहाँ कहीं भी हों, आकर अपने बच्चे को ले जाएँ. धन्यवाद! .. कथा शुरू हो गयी …… महात्मा जी ने फिर कथा शुरू की श्रोतागण मत्रमुग्ध होकर कथा सुन रहे थे.
तभी थोड़ी देर बाद पुन: आयोजक महोदय मंच पर आए और महात्मा जी से पुन: क्षमा मांगते हुए बोले … मांफ करियेगा आपलोगों को ब्यावाधान करते हुए मुझे कष्ट हो रहा है पर बच्चे को रोते देखकर मुझे ज्यादा कष्ट हो रहा है … बोले …
एक आवश्यक सूचना ….. एक बच्चा रो रहा है उसे ऑफिस में बिठाकर रक्खा गया है …. यह बच्चा श्री छगन लाल जी का है, वही छगनलाल, जो शुद्ध घी के ब्यापारी हैं, जिनकी बड़े बाजार में बड़ी सी दूकान है, उनसे निवेदन है कि वे जहाँ कहीं भी हों, आकर अपने बच्चे को ले जाएँ. धन्यवाद! .. कथा शुरू हो गयी!
तभी छगनलाल जी के बगल में बैठे हुए सज्जन ने छगनलाल जी को टोका, महोदय आप ही तो छगन लाल जी हैं और आपका बच्चा रो रहा है बार बार सुनकर भी आप चुप बैठे हैं?
छगनलाल जी मुस्कुराते हुए बोले – बच्चा रो ही न रहा है खो तो नहीं गया है. उसे दो चोकोलेट ज्यादा दे देंगे, या फिर आइसक्रीम खिला देंगे. देखते नहीं कितना बढ़िया तरीके से मेरे दूकान का मुफ्त में विज्ञापन हो रहा है! यहाँ बैठे श्रोतागण को भी मालूम हो जा रहा है कि मेरी दूकान कहाँ है और शुद्ध घी वही पर मिलता है. दुसरे मंच से बोला जाता तो शायद उतना प्रभावी न होता. पर यहाँ आने वाले अधिकांश ब्यक्ति शुद्ध घी का सेवन करने वाले होंगे और उन्हें पूर्ण बिस्वास हो गया होगा कि मेरे दूकान का घी ही सबसे शुद्ध है.
यहाँ कहानी मैंने ‘भाईश्री श्री रमेश भाई ओझा’ के मुख से उनके द्वारा ‘भागवत-कथा वाचन’ के अंतर्गत सुनी…… इसपर उनकी प्रतिक्रिया भी सुनी – “ईश्वर साध्य है साधन नहीं”, पर कुछ लोग, छगन लाल जैसे लोग इसे साधन बना डालते हैं…..
इसके अलावा उन्होंने और एक बात कही – कुछ लोग तो अपने आपको कैमरे में दिखलाने के लिए भी यहाँ आते हैं,ये बात कैमरेवाले ही बतलाते हैं! पर भागवत कथा को मन लगाकर सुनना-समझना और उसके अनुरूप अपने आप को ढालने की कोशिश करना ही कथा सुनने का उद्देश्य होना चाहिए!
मुझे ये बातें अच्छी लगी इसलिए इसे ज्यों का त्यों साझा कर रहा हूँ!
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