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भारतीय महिला कबड्डी टीम ने विश्व कप जीता!

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Indian women kabaddee teamपटना।। भारत ने पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में खेले गए पहले महिला कबड्डी वर्ल्ड कप के फाइनल मैच में ईरान को 25-19 से शिकस्त देकर खिताब अपने नाम किया।

कप्तान ममता पुजारी के नेतृत्व वाली भारतीय टीम टूर्नामेंट शुरू होने से पहले ही खिताब की मजबूत दावेदार लग रही थी, जिसने मैच में शुरू से ही ईरान की महिला टीम पर दबदबा बनाए रखा और खिताब अपनी झोली में डाला।

राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने फाइनल के बाद वर्ल्ड कप ट्रॉफी विजेता टीम को सौंपी। टीम के सदस्यों को गोल्ड मेडल दिया गया, जबकि उपविजेता ईरान की टीम के सदस्यों को सिल्वर मेडल मिला। जापान और थाइलैंड के सदस्यों को ब्रॉन्ज मेडल दिया गया।
दुःख इस बात का है कि इस महत्वपूर्ण उपलब्धि को किसी भी राष्ट्रिय चैनेल ने कोई महत्व नहीं दिया, बिहार – झारखण्ड के स्थानीय चैनेल ने इसे प्रमुखता से दिखाया और सराहा भी. बाकी सभी चैनेल या तो चुनाव के बाद के समीकरण और सम्भावना पर ही नजर गड़ाए रहे या हारी हुई इंडियन क्रिकेट टीम की ही वाहवाही करते दिखे! बिहार की महिला खेल मंत्री डॉ. (प्रोफ.) सुखदा पाण्डेय जो कि युवा मामले की मंत्री हैं उनसे भी पुछा गया कि खिलाडियों के प्रोत्साहन के लिए के करेंगी – तो उन्होंने सिर्फ बधाई ही दिया. यही सौभाग्य अगर क्रिकेट को मिला होता तो इनामों की झड़ी लग जाती!….. अब हमारे गजोधर भाई उपवास न करें तो क्या करें? बताइए आपलोग…..
फ्लैश बैक में जाने के लिए नीचे पढ़ें!

मैं भी उपवास करूंगा!

पोस्टेड ओन: 18 Sep, 2011 जनरल डब्बा, हास्य – व्यंग में

आज गजोधर भैया फिर मिल गए! —— बड़ा सनके हुए लग रहे थे. — मिलते ही तपाक से बोले – मैं भी उपवास करूंगा.
मैंने पूछा – क्या हुआ — –
गजोधर – कुछ नहीं, अब मैं भी उपवास करूंगा.
मैं – उपवास करना है तो करिए कौन मना करता है. ऐसे भी काफी तीज त्यौहार बीत गए. अब क्या धुन सवार हुआ है. पेट गड़बड़ है तो मत खाइए खाना. खाना भी बचेगा और आपका पेट भी ठीक हो जायेगा.
गजोधर – अरे आप नहीं समझ रहे हैं — उपवास यानी अनशन करूंगा.
अब मेरा माथा ठनका! — किस बात को लेकर अनशन करेंगें और आपको कौन जनता है कि आप अनशन करेंगे और कोई फल का जूस लेकर हाजिर हो जायेगा आपका अनशन तोड़वाने के लिए.
पर गजोधर इस बार ठान के आए थे कि मेरा दिमाग ख़राब कर के छोड़ेंगे.
मैंने कहा – आइये, पहले बैठिये, फिर बताइए क्या हुआ जो आप अनशन करना चाहते हैं.
गजोधर – सुनिए सिंह साहब, आजकल अनशन की हवा चली हुई है. पहले अन्ना, फिर रामदेव, फिर अन्ना!— और– अब मोदी और बघेला, हर चौराहे और मोड़ पर आजकल लोग उपवास कर रहे हैं, अपनी बातें मनवाने के लिए, तो कोई मन को शुद्ध करने के लिए. और अब तो इसमें भी प्रतियोगिता होने लगी कि कौन कितने दिन उपवास रह सकता है. कोई तो गिनीज बुक में अपना नाम भी दर्ज करा चुका है और कोई इसी चक्कर में अपना जान भी दांव पर लगा कर इस दुनिया से जा भी चुका है. तो फिर हम क्यों नहीं हवा का रुख देखकर अपनी राह भी उधर ही कर लें. और बची खुची जिन्दगी में कुछ ऐसा कर गुजरें की आनेवाली पीढ़ियाँ नहीं, तो कम से कम आज कल के लोग ही हमें जान जाएँ.
मैं – इसका मतलब यह हुआ कि आप प्रसिद्ध होने के लिए अनशन करना चाहते हैं.
गजोधर – अब जा के आप समझे हैं.
मैं – ठीक है भाई जी, तो आप की मांग क्या होगी?
गजोधर – इसी के लिए तो आप के पास आया हूँ. यह सब भ्रस्टाचार, महंगाई, काला धन, आतंकवाद, भ्रूण हत्या, महिलाओं पर अत्याचार आदि मुद्दे पुराने हो गए हैं. मैं कोई नए विषयों पर अनशन करना चाहता हूँ. इसीलिये आप से राय मशविरा करने आया हूँ.
मैं बड़ा सोंच में पर गया. गजोधर भाई एक दम आम देहाती आदमी है पर इसमें भी बड़ी चेतना ने जन्म लेना शुरू कर दिया है. —”अन्ना का असर दिखने लगा है”.
कुछ देर सोंचने के बाद मैंने कहा – आपको सिर्फ नाम कमाना है या सचमुच का मांग मनवाना है.
गजोधर – आप भी न सिंह साहब हमको शर्मिंदा करते हैं. मांगे किसकी पूरी हुई है. सभी केवल मीडिया में आना चाहते है इसीलिये मैं भी आपसे मदद चाहता हूँ कि कोई विषय बताइए जो आज के सन्दर्भ में दमदार हो.
मैंने कई विषयों के बारे में सोंचा फिर इधर उधर नजरें दौराई — कुछ ठहरकर मैं बोला — हमलोग कितनी गंदी बस्तियों में रहते हैं, बरसात में यहाँ जीना मुहाल हो गया है, जरा सा पानी होता है – सडकें नाले में तब्दील हो जाती हैं, कीड़े-मकोड़े, मक्खी-मच्छर बहुत पड़ेसान करते हैं. अब तो जाड़ा-बुखार आम बात हो गया है, वायरल फीवर, चिकनगुनिया,कालाजार जैसी बिमारियों से पड़ेसान रहते हैं; फिर क्यों नहीं साफ – सफाई का मुद्दा उठाया जाय.
गजोधर – आप ठीक ही कह रहे हैं पर यह जानदार नहीं होगा. फिर मीडिया को खबरें नहीं मिलेगी डाक्टरों की जेब पर लात मारना क्या ठीक लगता है आपको? इसपर डर यह है कि वे लोग कह देंगे कि अपना घर और आस पास खुद साफ़ रक्खो.
मुझे लगता है खेल और खिलाड़ियों का मुद्दा ज्यादा चलेगा. भारत-इंग्लैंड क्रिकेट का पूरा सिरीज हार कर टीम इंडिया भारत लौटेगी तब भी इन्हें सभी सर आँखों पर लिए घूमेंगे, हाकी टीम जीत कर आने पर भी कोई जश्न या हंगामा नहीं होता, CWG घोटाले की राह पर चलेगा. पर, अगर कोई ऐसा भारतीय खेल जिसमे कम से कम लागत लगती हो उसे क्यों नहीं बढ़ावा दिया जाता है. यही मुद्दा क्यों न उठाया जाय!
मैं तो गजोधर भाई के सोंच का कायल हो गया. कहा – आईडिया तो अच्छा है.फिर मैंने पूछा – किस भारतीय खेल में आपकी दिलचस्पी है!
“कबड्डी” – छूटते ही बोले. – मैं अपने गाँव का कबड्डी चैम्पियन रह चुका हूँ. कितनों की तो मैंने हड्डी पसली तोड़कर रख दी है जो आज भी मेरे सामने सर उठाने की हिम्मत नहीं करते! — इस खेल में न तो विशेष प्रकार के कपड़ों की जरूरत है न ही बड़े बड़े स्टेडियम की. इसकी अवधि भी काफी कम अंतराल की होती है. इसे शहर गाँव या किसी भी छोटे कस्बों के छोटे से मैदान में भी खेला जा सकता है. यह आडम्बर रहित है मैदान घास से भरा हो तब भी ठीक है या धूल से भरा हो तब भी ठीक है. इसे केवल चड्ढी बनियान या सिर्फ हाफ पैंट पहन कर भी खेला जा सकता है और सलमान खान जैसा ‘बडी’ भी दिखलाया जा सकता है. चूंकि यह बिलकुल ही निम्न लागत का खेल है इसलिए इसमें घोटालों की संभावना भी न के बराबर है. फिर इसे राष्ट्रीय खेल क्यों नहीं घोषित किया जाता है.
तो हमारी मांगें यही रहेगी. — “कबड्डी को राष्ट्रीय खेल घोषित किया जाय और इसे जमीनी स्तर यानी ग्रामीण स्तर से ही लागू किया जाय. कबड्डी हर स्कूलों में, शिक्षण सन्सथानों में अनिवार्य किया जाय, जो शिक्षण संस्थान इसे अनिवार्य न करे उसकी मान्यता रद्द कर दी जाय. हाँ एक काम करिए आप मेरी मांगों को सूचीबद्ध करते जाइये कम से कम इस प्रकार की २० मांगों की सूची बनायेंगे और उसे सरकार के सामने पहले पेश करेंगे, सौदेबाजी करेंगे, मांगे नहीं माने जाने के फलस्वरूप भूख-हड़ताल. आपलोग पढ़े लिखे लोग हैं इसे सही तरह से ड्राफ्ट कर सकते हैं, कानूनी मदद के लिए ‘श्रीमान राजकमल साहब’ को भी कोर कमिटी का सदस्य बना लेगें, ‘निशा’ बहन को मीडिया मैनेजमेंट का जिम्मा दे देंगे, कुछ मीडिया वाले को भी समझा बुझा कर उसके लिटल चैम्प्स जैसे कार्यक्रमों में अतिथि बनकर चले जायेंगे, और वहां कबड्डी खेल से सम्बंधित कुछ गाने जो कई फिल्मों दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन से लेकर नाना पाटेकर पर फिल्माए गए हैं उनका आनंद लेगें यह सब कुछ करना होगा अगर संभव हो तो लालूजी, नितीश कुमार जैसे जमीन से जुड़े रहनेवाले नेता से भी (गुप्त) समझौता कर लेंगे अगर संभव हो तो एक दो दलित वर्ग के ऊंचे कद वाले व्यक्ति का भी सहयोग ले लेंगे ताकि मायावती, मुलायम सिंह जैसे नेताओं को भी अपने पक्ष में कर सकें और विवाद कम से कम हो.” —- गजोधर भाई बोलते ही जा रहे थे — मुझे घोर आश्चर्य हो रहा था. मुझे हाँ में हाँ मिलाना ही था.
फिर मैंने पूछा — आपको उपवास का अनुभव है — कैसे आप बिना खाए कई दिन तक गुजारा करेंगे और अपने शरीर को मंच पर बैठने लायक बना सकेंगे.
गजोधर – भाई साहब, आप हमें लगता है पूरी तरह नहीं जानते! मैंने तो अभाव में ही अपनी जिन्दगी गुजारी है और कई दिन तक भूखा रहा हूँ अपनी मजबूरी के कारण. फिर पूरा उपवास किसे करना है पानी तो सबके सामने मंच पर पी ही सकते है दो तीन दिन तक कोई दिक्कत नहीं होने वाला — फिर मंच के पीछे —– या पानी में कुछ (ग्लूकोज आदि) मिला देंगे — फिर सरकारी डॉक्टर अगर जांच को आते हैं तो उनसे ही (गुप्त रूप से) कुछ विटामिन की गोली ले लेंगे. दवा तो खा ही सकते हैं न! फिर देखा जायेगा जान बचाने के लिए “श्री श्री” तो आएंगे ही और कोई आवे या न आवे. हाँ उपवास अगर तोड़ेंगे तो कोई दलित या मुस्लिम बालिका के हाथों यह सब पूरा इंतजाम आप सबको देखना है. अगर यह अनशन सफल हो गया तो यानी कबड्डी राष्ट्रीय खेल अगर घोषित हो ही गया तो फिर शरद पवार की कुर्सी यानी अन्तर्राष्ट्रीय कबड्डी बोर्ड का अध्यक्ष पद तो हम ही सम्हालेंगे.
इसी मनोकामना के साथ गजोधर भाई का ख्याली पुलाव समाप्त होता है. ॐ शांति! शांति! शांत:हि———-.

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