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शुबह शुबह जब कोयल कूकी,
कवि बसंत अब आया है,
पपीहा की पुकार ये बोली,
लो बसंत अब आया है.
आम्र मंजरी बौराई अब,
मधुरस को टपकाया है.
शाल पुष्प से मस्त हो बोली,
हाँ बसंत अब आया है.
देखो डालिया कैसी खुश है,
सोन परी जैसी दुरुस्त है.
भ्रमर कली के संग पस्त है,
मधु रस की खुशबू भी मस्त है.
तितली रानी बड़ी सयानी,
नव बालाओं सी अभिमानी
कली गुलाब संग कैसी दिखती,
इन्द्रधनुष जैसी है सानी
काले भंवरे से उसने अब मुंह कैसा बिचकाया है.हाँ बसंत अब आया है.
झड़े पुराने पीले पल्लव,
पंछी पेड़ पे करते कलरव.
पेड़ पुराने नए हो गए,
सूखे थे अब हरे हो गए.
खिले पलाश फिर गिरते भूपर,
क्या फागुन की माया है. हाँ बसंत अब आया है.
जगे भ्रमर जब भोर हो गयी,
शीत ऋतु अब बूढ़ी हो गयी.
रसिया मनबसिया को ढूंढे,
उनकी बगिया हरी हो गयी
ओ राही तू जरा ठहर जा,
तरु के नीचे बैठ जरा सा
इस बगिया की खुशबू ले ले,
किसे देख भरमाया है. हाँ बसंत अब आया है.
शीतल मंद सुगन्धित वायु,
नहीं देखती कोई आयु.
इस समीर को सूंघ के देखो,
कैसी खुशबू इसमें देखो.
बिछुड़े प्रेमी गौर से देखो,
उन्हें नहीं तो और को देखो.
खिली धूप को गौर से देखो,
क्या दिनकर की माया है. हाँ बसंत अब आया है.
माली कर आराम जरा तू,
बूँद स्वेद की सुखने दे तू.
हरी दूब मखमली हो गयी,
कालीन हरी धरा पे बिछ गयी.
अम्बर भी चिड़ियों से संचित,
दिनकर की आभा से सिंचित
अपनी मिहनत का फल देखो,
यह सब प्रभु की माया है. हाँ बसंत अब आया है.
सजी पालकी दुल्हन डोली,
अपने प्रीतम से वह बोली.
उपवन के आंगन में बैठो,
फूलों की डाली को देखो.
मदन मत्त उकसाया है. हाँ बसंत अब आया है.
यौवन छाई हर अंगों में,
ले लो मुझको अब बाँहों में,
पपीहा देखो पिया पुकारे
क्यों तू अब अलसाया है. हाँ बसंत अब आया है.
इतने दिन चुनाव चले थे
नेताओं के नाव चले थे,
मतदाता के भाव चले थे.
मूंछों पर भी ताव चले थे.
अब गणना का दिन आया है.हाँ, बसंत अब आया है.
नीले रंग में ‘हाथी’ सोहे,
‘कमल’ पंखुरी भगवा हो गए,
‘सायकिल’ चले मुलायम भाई,
हो गए चित्त बहन औ भाई!
क्या, ‘हाथ’ काम न आया है. हाँ, बसंत अब आया है.
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