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हवा का एक तेज झोंका आया. आँखों में घुसा, आँख को बचाने के लिए पलकें झुकीं, फिर खुली तो आँखों में जलन को साथ लेकर. मैंने पानी के छीटे मारे अपनी आँखों पर, अच्छी तरह धोया, थोड़ी जलन कम हुई,पर ऐसा लगा कि आंख पूरी तरह साफ़ नहीं हुई है. फिर आँखों में eye drop डाल कर सोने का प्रयास करने लगा.
नींद में भी बेचैनी थी. … थोड़ी देर बाद एक सूक्ष्म सी ज्योति दिखी, आवाज आयी – “पहचाना मुझे? मैं वही रेत की कण हूँ, जिसे सागर किनारे तुम पैरों तले रौंद आये थे. तुम्हारे पैंट के साथ फंसकर तुम्हारे घर तक आ गयी थी. पर वहां भी तूने मुझे झाड़कर फेंक दिया था, तुम्हारी पत्नी बुहार कर बाहर फेंक आयी थी. पर मैं तो अक्षुण हूँ, आज तुम्हारी आँखों में घुस गयी तो तुम्हे मेरी शक्ति का अहसास हुआ.
कभी मैं थी अचल गिरिराज के साथ, मजबूत शिला के रूप में, बर्फ की मुकुट पहनकर सूरज की किरणों संग रास रचाती थी. फिर क्या था, बर्फ पिघलने लगी, जलधारा बनकर मेरे तन बदन को स्नान कराती, कलकल निनाद करती हुई आगे बढ़ी. पानी की धार में प्रवाह आया, और मेरे मजबूत शरीर को तरासती, टुकड़ों में बांटती साथ ले आगे बड़ी. मैं जल प्रवाह के साथ बहती चली गयी और नन्हे नन्हे टुकड़ों में बंटती चली गयी. जहाँ मुझे किनारा मिला, रेत के ढेर रूप में बिखरती चली गयी. किसी को मैं पसंद आयी तो उसने मुझे किनारे से उठा लिया और सिमेंट, छड़ आदि पदार्थों के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया कर बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं के रूप में सजने लगी. नदी के ऊपर बने पुल में, किले की मजबूत दीवार में, बहुमंजिली इमारतों में, मंदिरों की विभिन्न आकृति में, देवताओं की मूर्तियों में मैं ही तो हूँ विराजमान!
भगवान् भोले शंकर का प्रतीक चिह्न शिवलिंग में किसे देखते हो! वहां भी मैं ही हूँ जिन्हें तुम ज्योतिर्लिंग भी कहते हो! तुम्हे याद है जिसे जल का कोमल स्पर्श खंडित कर देता है उसे महमूद गजनवी भी खंडित नहीं कर पाया!(सोमनाथ में) .इसे कहते हैं मजबूती, जो कि मजबूत इरादों में होती है. महमूद ने मुझे खंडित करने की कोशिश की थी पर मिटा नहीं पाया, मैं आज भी वहां विराजमान हूँ, क्योंकि तुमरी आस्था और श्रद्धा वहां मेरे साथ बंधी है.
मेरा और एक रूप है जिसपर तुम्हे शायद विस्वास न हो. कांच के खूबसूरत बर्तन, पारदर्शक पट्टियाँ, इन सबमे मैं विराजमान हूँ. फिर भी तुमलोग हमेशा मेरा निरादर करते हो.
किसी चीज को साफ़ करना हो, चमकाना हो मुझे ही तो इस्तेमाल करते हो. बड़े बड़े कारखानों में धातुओं की उपरी परत की सफाई कौन करता है (सैंड ब्लास्टिंग)? पेंट करने से पहले किसी भी वस्तु की परत को साफ़ करने में किसका (सैंड पेपर का) इस्तेमाल होता है?
विभिन्न नदियों के किनारे उपजाऊ मिट्टी, जिनसे तुम स्वास्थ्यवर्धक फल और सब्जियां पाते हो उनकी जड़ो को अमृत पान कौन कराता है? मिट्टी के अन्दर मेरी उपस्थिति ही जल को पेड़ पौधों की जड़ों के द्वारा उसके पूरे शरीर में पहुचाती है. बहुत सारे धातुओं में मेरी (सिलिकॉन की) उपस्थिति उसकी मजबूती को बढ़ाती है.
अभी भी तुम्हारा समुद्र मंथन जारी है और मेरे ही अन्दर से तुम विभिन्न रत्नों, खूबसूरत सीपियों, अनेकों प्रकार के जलचर निकाल लाते हो, उनको सम्हाल कर रखनेवाला कौन है? …. मेरे ही अन्दर सभी सुरक्षित रहते हैं.
हे बुद्धिजीवी मनुष्य, अभी तुझे थोड़ा ही ज्ञान हुआ है, और चले हो मेरे अस्तित्व को नकारने? मुझे ही अविश्वास की नजरों से देखते हो? बिस्वास में दृढ़ता पैदा करो. तब तुझे दर्शन होंगे मेरे विराट स्वरुप के. तुम अहसास कर सकोगे कि मैं कण कण में ब्याप्त हूँ.
भगवान् राम ने समुद्र किनारे रेत का ही शिवलिंग बनाकर पूजन किया था, वहां आज भी मैं विराजमान हूँ, रामेश्वरम के रूप में. ऐसा भी नहीं है कि तुम पहले आदमी हो मेरे अस्तित्व पर शंका करने वाले, तुमसे पहले बहुतों ने मेरे अस्तित्व को नकारा, फिर पाया, तो उसे बिस्वास हुआ. मैं कोई स्थूल भौतिक पदार्थ नहीं हूँ, जो हमेशा तुम्हे दिखलाई देता रहूँ, मैं तो एक सूक्ष्मतम स्वरुप हूँ, जिसे तुम महसूस कर सकते हो. तुमने बिजली को देखा है? प्रकाश को देखा है? परमाणु के स्वरुप को क्या नंगी आँखों से देख सकते हो? नहीं न. वैज्ञानिक कितने प्रयोग करते हैं, तब उन्हें महसूस होता है, मेरी शक्ति का अहसास होता है. अब तुम परमाण्विक विखंडन कर उर्जा का श्रोत विकसित करना चाहते हो. यह उर्जा कहाँ से आती है कभी सोचा है? तुम्ही ने तो यह साबित किया है कि पदार्थ या उर्जा का विनाश नहीं होता बल्कि उसका रूप परिवर्तन होता है. बस वही समझ लो सब मुझसे है और सबों में मैं हूँ.”
यह सारी बातें मेरी सुसुप्त अवस्था में हुई और आखिरकार मेरी नींद खुल गयी. मेरी आँखों की जलन शांत हो चुकी थी!
(मैं अपनी समझ से जितना समझ पाया उतना ही सबके सामने रख रह हूँ. नीर-क्षीर विवेक करना ज्ञानियों का काम है!)
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