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सपने

jls
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‘सपने’ में कुछ ऐसा देखा, मेरी बगिया हरी हो गयी.
सूख चुकी थी झुकी डालियाँ, फिर से अब वो खड़ी हो गयीं.
‘जरदारी’ बन गए मुरारी, राधा ‘हिना रब्बानी खर’.
सीमा पर हो गयी अमन, कश्मीरी को नहीं है डर.
हर घर में दो नलके लग गए, इक में दूध, दूजे में पानी.
बच्चा कोई नहीं है भूखा, हर घर की अब यही कहानी.
हुआ ये ऐसा चमत्कार, अब नहीं लड़ेंगे भाई भाई
सबके हिस्से अपने ‘सपने’, मिटी दूरी अब नहीं है खाई.
भ्रष्टाचार नहीं अब भाया, हर्षित सब, अब सदाचार.
जनता ने सच जिसे चुना था, घर आई प्यारी सरकार.
नहीं खुशी का कोई ठिकाना, ऐसे ‘सपने’ ही नित आये !
कहो भला कैसी हो दुनिया, ये ‘सपने’ गर सच हो जाएँ.
कहो भला कैसी हो दुनिया, ये ‘सपने’ गर सच हो जाएँ…….
(यह कविता मैंने उसी दिन लिखी थी जिस दिन जरदारी और उनकी टीम भारत आयी थी. पोस्ट आज कर रहा हूँ!)

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