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टी वी के हास्य कार्यक्रम में देख रहा था –
एक आठ-दस साल की लड़की साड़ी पहनकर हीरोइन की माँ का अभिनय कर रही थी. माँ और बेटी दोनों के संवाद वह खुद ही बोलकर लोगों को हंसाने का प्रयास कर रही थी.
हीरोइन बेटी अपनी माँ से कहती है- “माँ अब मेरे साथ तुम सूटिंग में मत आया करो क्योंकि अब मैं बच्ची नहीं रही!”
हीरोइन की माँ – “मालूम है बेटी अब तुम बच्ची नहीं रही, इसीलिये तो तुम्हारे साथ रहना और भी ज्यादा जरूरी हो गया है! तुम्हे क्या मालूम ये डिरेक्टर लोग रोल समझाने के बहाने कब क्या कर बैठते हैं. मुझे सब पता है क्योंकि मैं इस रास्ते से गुजर चुकी हूँ!” इसी तरह के अनेक तर्क और दुहरे अर्थ वाले संवाद बोल बोलकर लोगों को हंसाने का प्रयास कर रही थी.
एक डांस के कार्यक्रम में जिसके निर्णायक नावेद और जावेद हुआ करते थे – एक बच्ची ने बहुत ही सेक्सी नृत्य पेश किया. नृत्य अच्छा था .. पर जावेद को यह थोडा नागवार लगा सो उसने उस बच्ची से पूछ डाला – “तुम्हारे साथ कौन आया है बेटा?” बच्ची ने कहा- “मेरे पापा”. अब जावेद उस बच्ची के पापा की तरफ मुखातिब हुए – “इस उम्र की बच्ची से ऐसा डांस करवाना आपको कितना उचित लगता है? जो बच्ची इन सब बातों को शायद समझ भी नहीं पाती होगी, उससे आपने वह सब करने के लिए प्रेरित किया!” बच्ची के पापा थोड़ा झेंप गए.
कुछ दिन पहले एक और कार्यक्रम होता था- बदमास कंपनी, एक शरारत होने को है! इसकी होस्ट होती थी – जूही चावला.
वह छोटे छोटे बच्चों से सवाल करती थी और बच्चे शरारती भाषा में उत्तर देते थे. कार्यक्रम मनोरंजक था.
एक बच्चे से जूही चावला पूछती हैं. “घर में कौन कौन हैं?” जवाब – “मम्मी-पापा और दादा-दादी”.
यहाँ कौन कौन आए हैं?- “मम्मी पापा”.
जूही चावला – “दादा दादी को क्यों नहीं लाये साथ में?” जवाब – “अगर दादा दादी यहाँ आ जाते तो घर का काम कौन करेगा”?
अब बच्चे के मम्मी डैडी का चेहरा देखने लायक था.
आगे कुछ और सवाल किये जाते है. – “तुम जब सो जाते हो तब मम्मी पापा क्या करते है?” जवाब – “ढिशुम! ढिशुम! दोनों आपस में कुश्ती करते हैं”.
सभी लोग हँसते हैं !
इन कार्यक्रमों में मनोरंजन तो होता है. हमारे बच्चे स्मार्ट भी कहलाते हैं, पर क्या वे समय से पहले जवान नहीं हो जा रहे हैं?
हम सभी अपने बच्चे को स्मार्ट और तेज देखना चाहते हैं, उसे प्रतिभावान भी बनाना चाहते हैं. पर इसका दुस्प्रभाव उनपर नहीं पड़ रहा है? बच्चे मन के सच्चे होते हैं. उनका ह्रदय बहुत ही कोमल होता है. बाहरी वातावरण का प्रभाव या कहें छाप बहुत ही जल्दी उनके मनोमस्तिष्क पर पड़ जाता है. इसी तरह बहुत तरह के विज्ञापनों में भी बच्चों को दिखाया जाता है.
आइ एम् अ कॉम्प्लान बॉय! आइ एम् अ कॉम्प्लान गर्ल!
कुछ प्रतियोगिताएं में जब बच्चे बाहर हो जाते हैं तो वे फूट फूट कर रोने लगते हैं.
इसका गंभीर असर उनके मनोमस्तिष्क पर होता है.
मेरा कहने का अर्थ (आशय) यही है कि बच्चे को विकसित करने के लिए खेल कूद और उनके उम्र के हिशाब से प्रतियोगिता या किसी कार्यक्रम में शामिल करवाएं न कि उसे समय से पहले जवान बनाकर उस पर किताबों के बोझ के साथ साथ मनोवैज्ञानिक दबाव का भी बोझ डाल दें!
टेलीविजन में भी बहुत अच्छे कार्यक्रम आते है जो बच्चों के लिए ही बने होते हैं. आजकल कार्टून के जरिये रामायण और महाभारत, हनुमान जी, और गणेश जी के कार्यक्रम दिखाए जाते हैं. उन्हें भी बच्चे बड़े चाव से देखते है. अगर ऐसी जरूरत है तो हमें भी उनके साथ बैठकर कार्टून देखना चाहिए न कि ‘एडल्ट’ प्रोग्राम!
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