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सत्यमेव जयते !

jls
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सत्यमेव जयते नानृतम् सत्येन पन्था विततो देवयानः ।
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्यात्मकामो यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानं ॥
अर्थ – सत्य की ही जय अंत में होती है, न कि असत्य की यही सत्य उस देवयान नामक मार्ग पर छाया है जिसके माध्यम से ऋषिगण, जिनकी कामनाएं पूर्ण हो चुकी हों, सत्य के परम धाम परमात्मा तक पहुंचते हैं।.
मुण्डकउपनिषद का श्लोक का दो शब्द ‘सत्यमेव जयते’ भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है.

मैं यहाँ चर्चा कर रहा हूँ आमिर खान के टी वी कार्यक्रम का जो रविवार को ११ बजे दिन में टेलीकास्ट किया गया . आपलोगों ने भी देखा होगा मैंने भी देखा –
विषय था- कन्या भ्रूण हत्या या जन्म लेते ही लडकी को मार देना! पहली झलक यह दिखलाई गयी की ऐसा गाँव में होता है या गरीब परिवार में इस तरह की घटनाएँ होती है. जबकि वस्तुस्थिति यह है की पढे-लिखे लोग जिसमे डाक्टर, सरकारी अधिकारी, जिम्मेदार लोग इसमें ज्यादा लिप्त हैं! इसका खुलासा दो रिपोर्टर के स्टिंग ओपेरेसन से साबित हुआ है. उन सब पर मुकदमे चल रहे हैं पर ठोस कार्रवाई के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ है.
एक जज का कहना था – ‘कुलदीपक'(बेटा) तो सभी चाहते हैं, इसमें बुरा क्या है? भ्रूण हत्या नियंत्रण कानून के बारे में मुझे पूरी तरह मालूम नहीं है, तो तुझे कैसे पता है? – यह बात जज महोदय एक पुलिस इन्स्पेटर को डाँटते हुए कहते हैं. पिछले सात साल से मुक़दमे चल रहे हैं, पर कोई सजा नहीं हुई ! पुरुष और महिला का जनसँख्या अनुपात घटा कर राष्ट्रीय स्तर १०००/९१४ हो गया है. हरियाणा में यह अनुपात १००० /८७७ रह गया है . हरियाणा में बहुत सारे पुरुष कुंवारे हैं, क्योंकि उन्हें लड़कियां नहीं मिल रही हैं. यही कारण है की हरियाणा में लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं. दिन दहाड़े छेड़खानी और बलात्कार की घटनाएँ आम हो गयी है.
हर साल १० लाख भ्रूण हत्या हो रही है. भ्रूण हत्या पहले पहल जनसँख्या नियंत्रण के लिए वैद्य किया गया था. बाद में यह ब्यवसाय में परिवर्तित हो गया और पढ़े लिखे संपन्न और बुद्धिजीवी इसमें ज्यादा शरीक होने लगे!
राजस्थान, हरियाणा आदि जगहों में बिह्रार, झारखण्ड या दक्षिण के राज्यों से गरीब लड़कियों को खरीद कर ले जाया जाने लगा है, वहां के पुरुषों की शादी के लिए…. कीमत- १०,००० रुपये प्रति लडकी!

आज ‘देवी’ दु:ख व दिक्कत में है। उसे उस सभ्य समाज से अस्तित्व के लिए लडना पड रहा है जो उसे पूजता है। पाखंडी व आडंबरी समाज अपनी जननी को ही जड़ से उखाड फ़ेंकने पर आमादा है। बेटी के नाम पर सौ-सौ कसमें खाने वाले ही उसे पीड़ा दे रहे हैं। बेटी को पराई कहने वालों ने कभी उसे हृदय से स्वीकार किया ही नहीं। दु:खद पहलू यह है की बेटी का शोषण की शुरुआत हमारे घरों से होती हुई समाज में फैल रही है। मानवता के दरिन्दे तो लडक़ी के जन्म लेने से पहले ही उसकी हत्या करने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। ‘बालिका बचाओ’ व सशक्तिकरण विषय पर चर्चाएं व सेमीनार तो बहुत होते हैं लेकिन जमीनी स्तर पर बेटियां आज भी ‘बेचारी’ हैं। हमने उन्हें अबला बनाया है संबल कभी नहीं दिया। बच्चियों के खान-पान से लेकर शिक्षा व कार्य में उनसे भेदभाव होना हमारे समाज की परंपरा बन गई है। दु:खद है कि इस परंपरा के वाहक अशिक्षित व निम्न व मध्यम वर्ग ही नहीं है, बल्कि उच्च व शिक्षित समाज भी उसी परंपरा की अर्थी को ढो रहा है। कितना शर्मनाक है कि पूरे देश व हमारे जम्मू-कश्मीर में कई मां-बाप अभी तक बेटी को शिक्षित करने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं । उन्हें घूट-घूट कर घर में रहने के लिए मजबूर होना पड रहा है। घर से शुरू होने वाले शोषण की वे बाद में इतनी आदि हो जाती हैं कि अपने ऊपर होने वाले अत्याचार को भी वे परिवार के लिए हंस कर सहन करती हैं। यह वास्तव में विडंबना है कि हमारे देश के सबसे समृध्द राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में लिंगानुपात सबसे कम है। बालिका भूण हत्या की प्रवृत्ति सबसे अधिक अमानवीय असख्य और घृणित कार्य है। पितृ सत्तात्मक मानसिकता और बालको को वरीयता दिया जाना ऐसी मूल्यहीनता है, जिसे कुछ चिकित्सक लिंग निर्धारण परीक्षण जैसी सेवा देकर बढावा दे रहे हैं। यह एक चिंताजनक विषय है िक देश के कुछ समृध्द राज्यों में बालिका भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति अधिक पाई जा रही है। देश की जनगणना-2001 के अनुसार एक हजार बालकों में बालिकाओं की संख्या पंजाब में 798, हरियाणा में 819 और गुजरात में 883 है, जो एक चिंता का विषय है। इसे गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। कुछ अन्य राज्यों ने अपने यहां इस घृणित प्रवृत्ति को गंभीरता से लिया और इसे रोकने के लिए अनेक प्रभावकारी कदम उठाए जैसे गुजरात में ‘डीकरी बचाओ अभियान’ चलाया जा रहा है। इसी प्रकार से अन्य राज्यों में भी योजनाएं चलाई जा रही हैं। यह कार्य केवल सरकार नहीं कर सकती है। बालिका बचाओ अभियान को सफल बनाने के लिए समाज की सक्रिय भागीदारी बहुत ही जरूरी है। देश में पिछले चार दशकों से सात साल से कम आयु के बच्चों के लिंग अनुपात में लगातार गिरावट आ रही है। वर्ष 1981 में एक हजार बालको के पीछे 962 बालिकाएं थीं। वर्ष 2001 में यह अनुपात घटकर 927 हो गया, जो एक चिंता का विषय है। यह इस बात का संकेत है कि हमारी आर्थिक समृध्दि और शिक्षा के बढते स्तर का इस समस्या पर कोई प्रभाव नहीं पड रहा है। वर्तमान समय में इस समस्या को दूर करने के लिए सामाजिक जागरूकता बढाने के लिए साथ-साथ प्रसव से पूर्व तकनीकी जांच अधिनियम को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है। जीवन बचाने वाली आधुनिक प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग रोकने का हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए। देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने पिछले वर्ष महात्मा गांधी की 138वीं जयंती के मौके पर केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की बालिका बचाओ योजना (सेव द गर्ल चाइल्ड) को लांच किया था। राष्ट्रपति ने इस बात पर अफसोस जताया था कि लडक़ियों को लड़कों के समान महत्व नहीं मिलता। लडक़ा-लडक़ी में भेदभाव से हमारे जीवनमूल्यों में आई खामियों को दर्शाता है। उन्नत कहलाने वाले राज्यों में ही नहीं बल्कि प्रगतिशील समाजों में भी लिंगानुपात की स्थिति चिंताजनक है। हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य में सैक्स रेसिओ में सुधार और कन्या भ्रूण रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने एक अनूठी स्कीम तैयार की है। इसके तहत कोख में पल रहे बच्चे का लिंग जांच करवा उसकी हत्या करने वाले लोगों के बारे में जानकारी देने वाले को 10 हजार रुपए की नकद इनाम देने की घोषणा की गई है। प्रत्येक प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को ऐसा सकारात्मक कदम उठाने की जरूरत है। प्रसूति पूर्व जांच तकनीक अधिनियम 1994 को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है। भ्रूण हत्या को रोकने के लिए राज्य सरकारों को निजी क्लीनिक्स का औचक निरीक्षण व उन पर अगर नजर रखने की जरूरत है। भ्रूण हत्या या परीक्षण करने वालों के क्लीनिक सील किए जाने या जुर्माना किए जाने का प्रावधान की जरूरत है। फिलहाल इंदिरा गांधी बालिका सुरक्षा योजना तहत पहली कन्या के जन्म के बाद स्थाई परिवार नियोजन अपनाने वाले माता-पिता को 25 हजार रुपए तथा दूसरी कन्या के बाद स्थाई परिवार नियोजन अपनाने माता-पिता को 20 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि के रूप में प्रदान किए जा रहे हैं। बालिकों पर हो रहे अत्याचार के विरुध्द देश के प्रत्येक नागरिक को आगे आने की जरूरत है। बालिकाओं के सशक्तिकरण में हर प्रकार का सहयोग देने की जरूरत है। इस काम की शुरूआत घर से होनी चाहिए।
अंत में मेरा कहना यही है की भ्रष्टाचार, भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी आदि सबसे अधिक चिंता की बात है – बालिका जन्म लेने से पहले मार देना! क्या यह भारत माता केवल पुरषों (बालकों) की माँ बनकर रह जायेगी! इसके लिए सरकारी कानून के साथ- साथ जन जागरण और आत्मावलोकन ज्यादा जरूरी है.

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