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सार्वजनिक स्नानागार!

jls
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मेरे घर के पास ही है – रामलीला मैदान! यहाँ दुर्गापूजा के समय रामलीला का आयोजन होता है और उत्तरी बिहार के कलाकार आकर अपनी रंगमंच की कला का परिचय देते है. यह हिन्दू लाइन है. यहाँ हिन्दुओं के आलीशान मकान हैं. पर ठीक इसके पीछे मुस्लिम लाइन भी है, जहाँ मुस्लिमों के भी अच्छे-खासे मकान हैं.
मेरा मतलब यहाँ हिन्दू मुस्लिम से नहीं है – बल्कि मैदान के एक किनारे पर अवस्थित एक सार्वजनिक नल से है. यह नल जुस्को द्वारा जनकल्याण हेतु लगाया गया है. लगभग दिन भर यहाँ पानी भरकर ले जाने वालों का जमावरा लगा रहता है. यह नल भी, ऐसा लगता है, चौबीसों घंटे पानी देता ही रहता है. हाँ दबाव कम-बेशी होता रहता है.
आज शाम (रात) साढ़े आठ बजे के करीब मैं ऐसे ही टहलने निकला था, तो देखा काफी लोग उस नल के पास स्नान कर रहे थे या स्नान करने के लिए इन्तजार में बैठे थे. नल के पास किसी संस्था ने लगभग दो मीटर के वर्गाकार क्षेत्र को पक्का कर दिया था. लगभग ६-८ ब्यक्ति एक साथ स्नान कर रहे थे. लगभग सबके पास अपनी-अपनी बाल्टी थी. जिनके पास बाल्टी नहीं थी, वे नल के पास ही बैठकर स्नान कर रहे थे. किसी के पास अपना साबुन था तो कोई किसी का लेकर लगा ले रहा था. वे लोग आपस में बातें भी कर रहे थे. मैं उनकी बातें सुनने के लिए थोड़ी देर के लिए वहां रुक गया.
“बड़ी गर्मी है यार, दिन भर धूप में खड़ा खड़ा शरीर तप रहा था….. अभी पानी डालने के साथ चैन मिला” – यह गजेन्द्र की आवाज थी. गजेन्द्र ठेले पर फल बेचता है, यह उनलोगों की बातों से पता चला.
“बाबू लोग बोल रहा था कि आज पारा ४५ डिग्री के पार चला गया” – फल के जूस बनाकर बेचने वाले आसिफ की आवाज थी.
“तब तो तुम्हारा चांदी खूब कटा होगा, गर्मी में लोग जूस पीने वाले बाबू तो आते ही होंगे”. – सब्जी बेचने वाले हलधर ने चुटकी ली.
“नहीं यार गर्मी के मारे लोग घर से कहाँ निकलते हैं, हाँ शाम को कुछ लोग अपनी मेम साहब और बच्चों को लेकर आए थे. उन्ही लोगों से थोड़ा बहुत कमाई हुआ. आजकल ज्यादातर लोग तो आइसक्रीम वाले के यहाँ जाते हैं, या कोल्ड ड्रिंक पीते हैं!”
“आज मेरे तरबूज की अच्छी बिक्री हुई. मैंने भी १५ की जगह १२ रुपये किलो लगा दिया और लगभग सारा माल बिक गया, थोड़ा ही बचा है कल और ले लूँगा महाजन से.” -यह जुम्मन था.
“हाँ यार कुछ लोग ककड़ी – खीरा पर भी अच्छा जोर दे रहे थे. मेरा तो एक भी न बचा. जितना लाया था सब बिक गया! वह भी सब २० रुपये किलो!” – यह भोलू की आवाज थी.
इस तरह सभी अपनी अपनी बात कह रहे थे. किसी को ९० रुपये का मुनाफा हुआ तो किसी को १२० रुपये का.
इन सबों में छोटा धनपत बोल उठा – “वो सब तो ठीक है पर, ३१ मई को क्या करियेगा. उसदिन तो भारत-बंद है”. — “काहे को भारत-बंद है भाई”. सभी उसकी तरफ देखने लगे.– ” लो यह भी नहीं मालूम! सरकार पेट्रोल का दाम बढ़ा दिहिस है. वह भी साढ़े सात रुपये प्रति लीटर! इसीलिये विरोधी पार्टी सब बंद बुलाया है. उस दिन तो हमलोगों को कुछ कमाई नहीं होगा. उलटे अगर देख लिए तो मारबो करेगा और ठेला भी उलट देगा. बंदी वाला भी तो गरीबे को सताता है.”
“न बाबा न उस दिन रिश्क नहीं लेने का. नहीं तो पूंजियो डूब जायेगा. उस दिन हम लोग घर में आराम करेंगे या कुछ अपना कपड़ा, घर, द्वार साफ़ करेंगे.” – सबने एक स्वर से कहा.
मैंने यही महसूस किया – इन लोगों की चिंता पेट्रोल के दाम बढ़ने से नहीं है बल्कि एक दिन की बंदी से है. उस दिन की कमाई नहीं हो पायेगी ये लोग रोज कमाने खाने वाले ठहरे. इनमे आपसी भाई चारा कैसा है कि सभी एक जगह स्नान करते हैं, एक दूसरे का साबुन, गमछा इस्तेमाल करते हैं और सुख दुःख भी साझा करते हैं.
इन्हें देख मुझे अपने बचपन के गाँव का दिन याद आ गया. जब हम सभी लोग गाँव के बाहर किसी बोरिंग पर स्नान करते हुए खेत खलिहान और घर द्वार की बातें किया करते थे. या कुँए पर पानी भरते समय गाँव की महिलाएं एक दुसरे से गाँव घर की बातें साझा करती थी.

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