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अब शरम नही हमको आती !

jls
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देश के बहुचर्चित पी एफ घोटाले के चार्ज पर बहस शुरू हो गई।
गौरतलब है कि पीएफ घोटाला फरवरी 2008 में उस समय प्रकाश में आया था, जिसमें सीबीआइ की तत्कालीन विशेष न्यायाधीश व सतर्कता अधिकारी रमा जैन ने कविनगर में थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। सेंट्रल नाजिर आशुतोष अस्थाना, समेत कुल 83 लोगों को नामजद कराया गया था। रिपोर्ट में अस्थाना पर आरोप लगाया गया था कि उसने 39 बाहरी लोगों, 13 तृतीय श्रेणी तथा 30 चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के साथ मिलकर सात साल में सात करोड़ का घोटाला किया है। पुलिस ने इस संबंध में अस्थाना की पत्नी सुषमा, सास सावित्री तथा बेटी चंचल समेत कुल 26 आरोपियों को गिरफ्तार किया था। बाद में और भी आरोपी गिरफ्तार किए गए थे और सीबीआइ ने भी जांच की थी। सीबीआइ ने जांच में छह पूर्व जिला जजों समेत अनेक लोगों को आरोपी बनाया था। इस दौरान आशुतोष अस्थाना की जेल में संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई थी।

** सीबीआई के विशेष अदालत के जज पर ही यह आरोप लगे है की उन्होंने दस करोड़ रुपये की घूस लेकर गाली को जमानत दी थी.

इससे जुड़ी ख़बरें जी जनार्धन रेड्डी के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिलजगन रेड्डी अदालत में, परिवार भूख हड़ताल परजगन मोहन 11 जून तक न्यायिक हिरासत में
सीबीआई की इस शिकायत के बाद आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मदन लाल लोकुर ने सीबीआई अदालत के अतरिक्त जज पट्टाभिराम राव को निलंबित कर दिया है और सीबीआई अब उन्हें गिरफ्तार करने की तैयारी कर रही है.

सीबीआई जज के साथ साथ उनके बेटे और कुछ अन्य व्यक्तियों की भूमिका की भी छानबीन कर रही है.

अब तक की छानबीन में सीबीआई ने जज के पुत्र के बैंक लॉकर से तीन करोड़ रूपए जब्त किये हैं.

सीबीआई का कहना है कि गाली जनार्धन रेड्डी के आदमियों ने जज को दो किस्तों में दस करोड़ रुपये अदा किए.

पहले तीन करोड़ रुपये दिए गए और जब जज ने गाली जनार्धन रेड्डी को 12 मई को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए तो उसके बाद बाक़ी रक़म भी अदा कर दी गई है.

सीबीआई सूत्रों का कहना है कि इस मामले में एक और पूर्व जज और आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र के एक मंत्री ने बिचौलियों की भूमिका निभाई.

लेकिन जज की ओर से ज़मानत दिए जाने के बाद भी गाली जनार्धन रेड्डी रिहा नही हो सके क्योंकि उन्हें अवैध खनन के एक और मामले में बेंगलुरु जेल को भेज दिया गया.

हैदराबाद. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मदन बी. लोकुर ने एक सीबीआई के स्पेशल जज को निलंबित कर दिया है। उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।
सीबीआई जज टी.पत्तभी रामाराव पर कर्नाटक के मंत्री गली जनार्दन रेड्डी को जमानत देने के लिए पांच करोड़ रूपए लेने का आरोप है। रामाराव ने रेड्डी को 12 मई को जमानत दिया था। रेड्डी को गैरकानूनी खनन केस में जमानत मिली थी।

*** एक और खबर अभी हाल में आयी कि कानपूर में तैनात आयकर नेदेशक कुनाल सिंह को उनकी पुरी टीम के साथ रंगे हाथों घूस लेते हुए सी बी आई ने गिरफ्तार कर लिया ….

पहले भी न्यायाधीशों पर रिश्वत लेकर फैसला देने के आरोप लगते रहे हैं, पर अब तो ये बातें खुले आम हो गयी है कि जब सभी रिश्वत ले रहे हैं, कमीशन ले रहे हैं; तो हम पीछे क्यों रहे. ऐसा लगता है कि इस रिश्वतखोरी में भी प्रतियोगिता हो रही है. मैं बड़ा रिश्वतखोर या तू? मैं बड़ा बेशर्म या तू? नेताओं के करतूत हम देख ही रहे हैं;इन्ही तथ्यों पर आधारित मेरी यह रचना पेश है, संशोधित रूप में…
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क्यों शरम नही हमको आती!, अब शरम नही हमको आती !

जज साहब घोटाले करते,पकड़े जाते पर ना डरते.
क्यों डरते क़ानूनी राजा, दाँव पेंच निकले हैं ताज़ा.
पी. एफ. का पैसा खाकर भी, उनको शरम नही आती,
फिर हमको शरम नही आती!

लेकर रिश्वत देते बेल, सस्पेंसन के बाद हो जेल
केस चले जब सालों साल, आम आदमी हो बेहाल,
अंधी गूंगी न्याय ब्यवस्था, कैसे हो अब उनमे आस्था
गवाह अगर न बदले बयान, कर दो उनका काम तमाम
इस अंधे कानून की हस्ती, समझ किसी को न आती !
फिर हमको शर्म नहीं आती!
जज साहब को दिखता नही सबूत, क्यों झाँकें, वर्तमान छोड़कर, भूत!
आख़िर वे भी तो हैं, आम इंसान, पंच के आसन पर, होते भगवान.
पर वे तो पंच नही हैं, विधि के प्रपंच वही हैं!
फिर शरम उन्हे क्यों आएगी, भारत माता चिल्लाएगी,
जननी के हत्यारे हम हैं, भ्राता को भी मारे हम हैं.
भाई भाई मे झगड़ा हो, लोगों को दिखता रगड़ा हो!
ये मर्म भला किसको आती, सो शरम नही उनको आती !

फिर हमको शर्म नहीं आती!
ओबामा जब गुण गाते है, मेरे पी. एम. मुस्काते हैं.
भारतवासी समझ न पाते, ये सब बड़ी-बड़ी हैं बातें.
आम आदमी रोए, फिर भी उनको शरम नही आती,
फिर हमको शरम नही आती!

लोगों के दुख दर्द न समझे, देश की गद्दी पर वे बैठे.
शासन की भाषा बदली है, दुःशासन की खूब चली है.
जी.डी.पी. और ग्रोथ रॅट, मुद्रास्फीति क्या होती है,
हमको समझ नही आती,

फिर हमको शरम नही आती!

बंद – बंद और कितनी बंदें, बंद में हम हो जाते अंधे,
खुद गाड़ी में दौर लगाते, हवाई यात्रा खूब बढ़ाते.
औरों को पैदल देखा तो, पैर तोड़ कर घर बैठाते.
हाय री! अभागी जनता, प्रजातन्त्र में नही है ममता.
अम्बुलेन्स वे कहाँ से लाते, साइकिल पर ही प्रसव कराते.
बंदी वाले, मीडिया वाले, इन्हे देखकर भी इतराते.
क्यों उनको शरम नही आती?

फिर हमको शरम नही आती!

हे बेनामी संपत्ति वाले, काले धन के ओ रखवाले.
चाहे हो जितनी जूतम पैजार, जाँच करेंगे अधिकारी हर बार.
हर सबूत हो जाएगा बेकार, जाँच कराले चाहे जितनी बार.
हम कहेंगे सीना तान, करेंगे वार, जनता भोली भरमाती हर बार.
ये मर्म उन्हें ही है आती, इसलिए, शरम शर्मा जाती,
पर उनको शरम नही आती,

फिर हमको शरम नही आती!

वे उच्चासन पर बैठेंगें, टीका ललाट पर पोतेंगे,
सुंदर मुख में विकृत जिहवा, भाषा,भ्रांति की चली हवा.
आफ़त ग़रीब पर आएगी, सुर्खियाँ खबर में छाएगी.
पर दर्द भला किसको भाती,

फिर हमको शरम नही आती!

अब हरित क्रांति के नारों से, निकला अनाज भंडारों से.
भंडार हमारे कम हैं, गर सड़े अनाज तो क्या गम है!
क्रीड़ा स्थल बनवाएँगें, खेलों में शान बढ़ायेंगें.
सोने की चेन चढ़ाएंगे, अब निर्धन नहीं कहायेंगे
अस्पताल बच्चे मर जाएँ, भूखे पेट किसे दिखलायें
ममता नाम भी होने पर, बच्चे की लाश न दिख पाती
फिर हमको शर्म नहीं आती !

पी एम कहते बेबस हूँ मैं, मैडम के ही बस में हूँ मैं
देश की हालत खस्ता करके, अर्थशास्त्री कहलाता हूँ मैं
मैं हूँ जैसा ईमानदार, मंत्री मेरे भी होशियार!
मैं सच कहता हूँ बार बार, चाहे हो मेरी जीत हार
चोरों के सरदार कहाकर, मुझको शरम नहीं आती
फिर मुझको शर्म नहीं आती!

इनकम टैक्स निदेशक हूँ मैं, जनता का ही सेवक हूँ मैं
छापा मारना मेरा काम, सी बी आई करे क्या काम
करता हूँ मैं निपटारा, बैरी जग हो चाहे सारा
घूस लिया था जैसे मैंने, दे दूंगा हिस्सा तैने
अब सब ऐसा ही करते हैं, बाँटके आपस में खाते हैं
भाईचारा इस से बढ़ता, बैरी नहीं भी कोई दीखता
सही बात कहने में मुझको, शर्म नहीं है अब आती
फिर मुझको शर्म नहीं आती!

युवराज अगर दुर्योधन हो, अर्जुन के पास भी खांडव हो,
गाँधी की धोती खींचेंगें, चश्मा उतार कर फेंकेंगें.
यह लाठी क्यों उनके संग है,यह तो सिपाहियों का गन है.
अब शरम नही अब भरम नही, दारू की बोतल नरम नही.
भारत की शोणित गरम नही, फिर शरम भला क्यों आएगी.
भारत माता पछताएगी. मेरे कपूत, मेरी माटी
क्यों शरम नही तुमको आती? अब शरम नही तुमको आती!

सब्जी गर महँगी होती है, सारी दुनिया तब रोती है.
सालन महँगा हो पर जितना, स्वादिष्ट लगे ही वह उतना.
सब्जी वाली को लूटेंगें, होटल में टिप्स परोसेंगें.
विधाता देखो समता से, अब काम न लो तुम ममता से.
विधायक कुर्सी तोड़ेंगें, माइक उखाड़ कर फेकेंगें.
अध्यक्ष जी ये सब देखेंगे, या सभा भंग कर झेंपेंगे.
ये दृश्य सभी को है भाती, हा! मुझको शरम नही आती!
हाँ, मुझको शरम नही आती. अब हमको शरम नही आती!

– जवाहर लाल सिंह

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