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मेरी बेटी के जन्म दिन (१७ जुलाई) के उपलक्ष्य में शुभकामना सहित ! भगवान् उसे खुश रखें सदा, मेरे मीतों की यही दुआ!
एक बाप बेटी के बीच आज के सन्दर्भ में जो संवाद होता है, उससे सम्बंधित बातों को मैंने तुकबंदी में बांधने की कोशिश की है.
यह भी एक तरह की कशमकश है, उहापोह है … या कि उलझन है! उम्मीद करता हूँ कि यह भी एक आम समस्या ही है. पर एक बेटी का बाप क्या करे?
कृपया पढ़ें और आशीर्वाद दें !
उसे अपनी बेटी भी प्यारी है और परम्परा भी!
बिटिया जो सबसे प्यारी है, जग में सबसे वह न्यारी है!
बचपन में न वह रोती थी, खा पीकर के जो सोती थी.
बाबाजी सामने रहते थे, बिटिया को चूमा करते थे.
मूंछों को देख वो हंसती थी, बाबा की प्यारी पोती थी!
रोती भी नहीं कभी खुलकर, ‘गूंगी होगी आगे चलकर’ !
ये ‘प्यार के बोल’ निकलते थे, बाबाजी हंसकर कहते थे.
बिटिया थोड़ी अब बड़ी हो गयी, रोऊँ क्यों, अब तो खड़ी हो गयी!
पापा ने सब कुछ झेला है, उनका मन बहुत अकेला है.
रोते वे नहीं विपदाओं से, होते खुश हर आपदाओं से.
जीवन ने उन्हें सिखाया है, अग्नि ने उन्हें तपाया है
सोना तपने से निखरता है, मानव मन तभी सुधरता है!
जो कुछ वे मुझे सिखाते हैं, अपना अनुभव बतलाते हैं.
बेटी तू रोना कभी नहीं, आपा तू खोना कभी नहीं.
‘वो’ जो सबका दाता है, सबका ही ‘भाग्य-विधाता’ है.
सुनते है ‘वे’ हम सबकी ही, चाहे तुम कहो या कहो नहीं.
सबकी भलाई ‘वे’ करते हैं, भक्तों पर ही ‘वे’ मरते हैं.
बिटिया जैसी तू प्यारी है, तू भी सबका हितकारी है.
‘वो’ दूर देश से आएगा, घोड़े पर तुझे बिठाएगा.
उड़ जायेगा ‘वो’ बन के हवा, पर सदा साथ हो मेरी दुआ.
न कभी तुझे वो रुलाएगा, बातों से सदा हंसायेगा!
“कैसी बातें करते पापा, क्या खोया है अपना आपा!
वो कुंवर जो बनकर आयेगा, मुझको ही नहीं रुलाएगा!
केवल वह मुझे रुलाकर ही, वो चैन भला क्या पायेगा?
मांगेगा वह सोने की चेन, कर देगा सबको ही बेचैन!
मम्मी उसको समझाएगी, दिल अपना चीड़ दिखायेगी.
हम ‘चेन’ भी तुझको दे देंगे, मेरे दामाद जी खुश होंगे,
पर ‘चेन’ चाहिए अभी मुझे, बिटिया प्यारी है अगर तुझे.
पापा, क्या यह सब देखेंगे, बेचैन हो ‘चेन’ को देखेंगे.
पर, नहीं चाहिए वर ऐसा, जो फेंके अपना ही पासा.
बिटिया जैसी मैं प्यारी हूँ, बगिया की छोटी क्यारी हूँ.
मत करो विदा तू ‘बगिया’ से, डर लगता मुझको ‘अगिया’ से!
मैं तेरे दिल का टुकड़ा हूँ, लगता अब क्यों मैं दुखड़ा हूँ?
न करो अलग खुद अपने से, डर लगता मुझको सपने से.”
“बिटिया यह जग की रीति है, तेरी मम्मी पर बीती है
तू मेरे पास अमानत थी, न ही मेरी तू शामत थी.
रीती कैसे मैं तोडूंगा, ‘बेड़ी’ कैसे मैं तोडूंगा?
लोग कहेंगे क्या मुझसे, देखो, शर्मा जी हैं कैसे?
बिटिया हो गयी सयानी है, क्या घर रखने को ठानी है?
तू जैसी मेरी है बेटी , स्वसुर की होगी चहेती.
सासुजी बेटी मानेंगी, अपनी बेटी सा जानेंगी.
भाई जैसे ‘देवर’ होंगे, कुछ नए कलेवर भी होंगे!
‘कुंवर’ जी तुझे हंसायेगे, झूले में तुझे झुलाएंगे”
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“बेटी मेरी तू मत रोना, अपना आपा भी मत खोना.
डर मत मेरी, तू, गुड़िया, सासु जी, न होंगी बुढ़िया
ससुर जी हों मूछों वाले, मुस्कायेंगे बन मतवाले!
इस घर की जैसी ‘दीपक’ है, उस घर की भी तू ‘सीतक’ है
है ‘धूप-छांव’ की यह दुनिया, रोना न मेरी तू गुड़िया
‘दो घर’ को ‘रोशन’ कर देना, ‘यमुना’ जी से यह कह देना
आशीष तुझे दे जायेंगे, कुछ नयी विधा बतलायेंगे.
‘कुशवाहा’ जी की पोती है, तू अब काहे को रोती है
‘संतोष’, ‘अशोक’ जी चाचा है, ‘प्रवीन’ तुम्हारा भ्राता है.
‘गुरुदेव’ सभी के हैं प्यारे, अनगिनत सभी ‘चाचा’ न्यारे.
‘शाही’ जी की दुलारी है, ‘शशि’ जी की भांजी प्यारी है
‘निशा’ मैडम से भी सीखो, ‘सरिता’ दीदी को भी देखो.
‘दिव्या’ जी ‘दीप्ति’ जो होती हैं, ‘रोशनी’ सभी को देती हैं
‘अलका’ जी, ‘अमृत’ पिलवायें, ‘ज्योत्स्ना’ की ‘रेखा’ दिखलायें
‘श्रुतिमोहन’ जी को भी देखो, ‘साधना’ बेटी से भी सीखो.
देखो यह जैन ‘पुनीता’ हैं, ‘महिमा’ बहना तो गीता है.
यह ‘अनिल’ अनल सा दिखता है, चाचा ‘दिनेश’ जगजीता है.
‘चन्दन’ अपना ‘खुशबू’ छोड़े, ये ‘भरोदिया’ सबको जोड़े.
यह ‘भ्रमर’ शुक्ल का चन्दा है, बादल में छिपकर मन्दा है.
देखो यह चचा ‘खुराना’ हैं, ‘योगी’ जी भी मनमाना है.
‘मनु’, पूनम राणा को देखो, चिट्ठी की नाव को मत फेंको!
पापाजी इनके छोड़ चले, बचपन में साथ को छोड़ चले!
पर हिम्मत नहीं ये हारी हैं, माँ की इनकी बलिहारी है !
देखो अब ‘विक्रम’ भैया को, दुःख से देखे हैं शैय्या को!
‘मोना’ देखो है साथ अगर, कष्ट हो जाते हैं लघु तर !”
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“सबने देखे थे शुभ सपने, कितनों के हुए, कहो अपने!
तू हिम्मत अगर न हारेगी, बाधाएं तुझसे हारेंगी!
‘भगवत गीता’ ‘अनमोल रतन’, कहते हैं उसमे खुद भगवन!
तू मुझे मान ‘सद्कर्म’ करो, फल की चिंता न तनिक करो!
‘अधिकार तुम्हारा कर्म ही है, मिलता सबको यह मर्म ही है!’
बेटी मेरी मत घबराना, जब हो इच्छा तू घर आना !
बेटी मेरी मत घबराना, जब हो इच्छा तू घर आना !
(और जितने भी ब्लोग्गर हैं, जिनका नाम मैं इस पोस्ट में नहीं ले सका; उन सबसे भी ‘अपनी बेटी’ के लिए ‘आशीर्वाद’ का आकांक्षी हूँ!)
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