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देवघर(बैजनाथ धाम, बाबाधाम) से लगभग ५७ किलोमीटर की दूरी पर, हावड़ा दिल्ली मुख्य रेल लाइन के पास ही ‘मधुपुर’ सब डिविजन अवस्थित है. यहाँ की नगर पालिका का उद्घाटन महात्मा गांधी ने किया था. कल कारखाने के नाम पर सिर्फ एक ग्लास फैक्टरी है, जिसमे खास प्रकार के ग्लास के बर्तन, कप, प्लेट आदि बनाये जाते हैं. ग्लास फैक्टरी का नाम La Opala Ltd. है. यह शहर (क़स्बा) दो बरसाती नदियों ‘पात्रो नदी’ और ‘जयन्ती नदी’ से घिरा है.
मधुपुर का जिक्र ‘शरदचंद्र’ और ‘विमल मित्र’ बंगला लेखकों की पुस्तकों में हुआ है. बहुत सारे रईस बंगाली यहाँ पर अपना बंगला बनाकर छोड़े हुए हैं, जिनमे वे फुर्सत के दिनों में आकर आराम करते हैं और यहाँ की प्रदूषण मुक्त वातावरण में स्वास्थ्य लाभ भी करते हैं.
पर्यटन के दृष्टिकोण से अगर देखा जाय तो यहाँ पर आस पास कुछ दर्शनीय स्थल और पुराने मंदिर हैं. जैसे देवघर के बाबाधाम के अलावा, पथरोल का काली मंदिर, गोसुआ का शिवमंदिर, दुबे मांडा का नाग मंदिर, बैकुंठ धाम मंदिर, पञ्च मंदिर का अमर कैलाश त्रिपुर धाम, कुंडू बंगला, बकुलिया जलप्रपात, पत्थर चपटी आदि हैं….
यहाँ की मिठाइयों में छेना मुरकी, खीरकदम, छेना जिलेबी, रसमलाई, रसगुल्ला आदि प्रसिद्ध हैं. यहाँ असली दूध की मिठाई सस्ती और अच्छी है, इसका जीता जागता प्रमाण यही है कि छठ जैसे पावन पर्व के अवसर पर मिठाई की कमी हो जाती है, क्योंकि दूध की खपत पर्व में ज्यादा हो जाती है.
यहाँ छठ पर्व बहुत श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है. एक U आकार का छठ तालाब है, जहाँ U के बीच में भगवान सूर्य की प्रतिमा उनके सात घोड़ों वाले रथ के साथ स्थापित की जाती है. तालाब के आकार के कारण ज्यादा से ज्यादा लोग इस तालाब पर छठ कर पाते हैं. इसके अलावा दूसरे, रेलवे का तालाब और कृत्रिम अस्थायी तालाबों का निर्माण कर भी लोग छठ पर्व मनाते हैं! छठ के समय पूरे शहर के सड़कों और नालियों की विधिवत सफाई की जाती है. इसमे नगरपालिका के अलावा, निजी संस्थाएं या सड़क के किनारे बसने वाले आम नागरिक भी उत्साह पूर्वक काम करते हैं. खासकर पहले और दूसरे अर्घ्य के दिन सड़क को पानी से धो दिया जाता है. बिजली के बल्ब, वंदनवार, केले के थम्ब के ऊपर मिट्टी के बड़े बड़े दिए जलाकर रोशनीयुक्त और वातावरण को सुवासित कर दिया जाता है. वैसे यहाँ बिहारी, (अब झारखंडी) के अलावा, माड़वाड़ीयों, बंगालियों, मुस्लिमों, ईसाईयों, और संथालियों की भी अच्छी आबादी है; वे सभी यथासंभव सहयोग ही करते हैं. बिजली के अभाव की कमी को पूरा करने के लिए जेनेरेटर पर्याप्त मात्र में लगाये जाते हैं, जिससे दुकानें और सड़कें तो रोशन रहती हैं, पर घर प्राय: अँधेरे का शिकार होते हैं. अन्य दिनों की अपेक्षा ऐसा देखा गया है कि पर्व त्यौहार में बिजली की भारी किल्लत का सामना करना पड़ता है. झारखण्ड के कल्याण मंत्री, हाजी हुसैन अंसारी का विधान सभा क्षेत्र मधुपुर ही है. संसदीय सीट गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे प्रभावशाली नेता हैं. भाजपा शासित राज्य के सहयोगी और आदिवासी नेता शिबू सोरेन, पूर्व मुख्य मंत्री बाबूलाल मरांडी का यह कर्मक्षेत्र भी रहा है. पर बिजली की समस्या काफी पुरानी है. सड़कें यहाँ की पुरानी पर अच्छी अवस्था में हैं, पीने का पानी भी ठीक ठाक मिल जाता है पर बिजली ???? …उड़ी बाबा!!! अभी बात कर रहे हैं और बिजली चली गयी, खाना खा रहे हैं, बिजली चली गयी. पर्व के मौके पर बहुत जगहों पर निर्बाध बिद्युत आपूर्ति की ब्यवस्था की जाती है … पर यहाँ तो पर्व के मौके पर बिजली काटने के लिए ऐसा लगता है, अतिरिक्त कर्मचारी बहाल किये जाते हैं. नेताओं के घर, उदय शंकर सिंह(उर्फ़ चुन्ना सिंह) का घर तो जेनेरेटर की बदौलत जगमगाता रहता है ..पर सभी लोग तो जेनेरेटर नहीं रख सकते!… इस शहर में विभिन्न समुदाय के लोग मिलजुल कर रहते हैं. यहाँ कभी भी, किसी प्रकार का कोई भी दंगा नहीं हुआ. छोटी-मोटी घटनाएँ तो अब हर जगह होने लगी है….
मेरा अनुरोध यहाँ के नेताओं, बिजली विभाग के अधिकारियों से है कि कम से कम पर्व त्यौहार के अवसर पर बिजली की समुचित ब्यवस्था का प्रबंध करें, ताकि लोगों को कम से कम परेशानी हो और किसी प्रकार की अनहोनी से बचा जाय,…. जैसा कि इस बार पटना में हुआ.
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