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….. अयिले मास फगुनवा न!

jls
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गाँव की गोरी, जिसका पति परदेश में है, वह फागुन के महीने में कैसे तड़पती है, उसी का चित्रण इस लोकगीत में किया गया है!

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घड़ी घड़ी सिहरे मोर बदनवा, अयिले मास फगुनवा न!
भोरे भोरे कूके कोयल, कुहुक करे जियरा को घायल.
पी पी करके पपीहा पुकारे, पिया परदेशी जल्दी आरे!
कस के धरिह मोरा बदनवा, अयिले मास फगुनवा न!


सरसों के खेतवा में गईलीं, शरम से हम भी पियारा गईलीं
तीसी के फल मोती लागे, साग चना के सुघर लागे.
आम के मंजर भरल बगनवा, अयिले मास फगुनवा न!


ननदी हमका ताना मारे, सासु जी नजरों से तारे.
टोला पड़ोस से नजर बचा के, देवरा भी हमारा पे ताके.
अब न सोहे कोई गहनवा, अयिले मास फगुनवा न!


चिट्ठी पतरी न तू भेजलअ, फोनवा के तू बंद कर देलअ.
पनघट पर सखिया बतिआये, ओकर पिया के सनेसा आये.
तू न भेजलअ एको सनेसवा, अयिले मास फगुनवा न!


घड़ी घड़ी सिहरे मोर बदनवा, अयिले मास फगुनवा न!

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