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मोदी या नीतीश!

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१७ मार्च को रामलीला मैदान की अधिकार रैली में भीड़ को संबोधित करते हुए नीतीश बाबू ने बिना किसी के नाम लिए जो भी कुछ कहा – वह कुछ तो इशारा कर रहा है. रामलीला मैदान में खचाखच भरे बिहारियों को देख नीतीश बाबु बड़े उत्साह में दिखे. उन्होंने इशारों-इशारों में बहुत कुछ कह डाला.
जैसे – “लोग(यानी मोदी) विकास मॉडल की बात करते हैं. वह विकास क्या? जो विकसित लोगों को आगे बढ़ाये. विकास मॉडल तो वो होगा जो पिछड़ों, दबे-कुचले, अंतिम लोगों को भी साथ लेकर चले. जहाँ न कोई धर्म हो न जाति, न क्षेत्र हो न भाषावाद! केवल हो विकास”….. और एक और हुंकार – “दिल्ली पर वही राज करेगा जो सबको साथ लेकर चलेगा. हमें भारत और इण्डिया का फर्क नहीं चहिये, हमें तो हमारा हिंदुस्तान चाहिए!” उन्होंने वर्तमान वितमंत्री(चिदंबरम) की तारीफ की और कहा – “विशेष राज्य के दर्जे के लिए वर्तमान माप-दंड को बदलना होगा! इतनी बात तो समझ में आ रही है लोगों को! (२०१३-१४ के बजट में चिदंबरम ने विशेष राज्य के दर्जे के लिए नए मापदंड बनाने की बात कही है!) अब नए मापदंड के सहारे सभी पिछड़े राज्य जैसे उडीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि को भी विशेष राज्य का दर्जा मिल सकता है.”
“केवल उद्योगपतियों को बढ़ाने से देश आगे नहीं बढ़ेगा (यहाँ भी इशारा नरेन्द्र मोदी पर ही था). नीतीश रामलीला मैदान में आम आदमी, गरीब बिहारी को संबोधित कर रहे थे, जब की मोदी धर्मनिरपेक्षता का मतलब इण्डिया फर्स्ट बतला रहे थे. मोदी बड़े-बड़े समारोह में सधे अंदाज में बोलते हैं, जहाँ उनका गुजरात मॉडल में दंभ दीखता है. जबकि नीतीश आम आदमी की बात धूप में खड़े होकर कह रहे थे. मतदाता आम आदमी और गरीब आदमी ही होता है. बड़े लोग तो सिर्फ पैसा खर्च करते हैं और फेसबुक पर वोट देते हैं.
पत्रकारों की विवेचना के अनुसार नीतीश की रैली के चलते मोदी की मुंबई में होने वाली रैली को स्थगित किया गया. पटना में अरुण जेटली की सभा में भाजपा के ही कुछ वरिष्ठ नेताओं की अनुपश्थिति, झारखण्ड में कलह, राष्ट्रिय स्तर पर आडवानी और उमा भारती के बयान से भी मोदी की जड़ हिलती नजर आती है. तो क्या भाजपा मोदी की बदौलत २०१४ का चुनाव जीत पायेगी और उतनी सीटें ला पायेगी कि बिना जे डी यु के सत्ता में आ जाय! नीतीश कुमार का कांग्रेसी वित्त मंत्री के बजट की तारीफ के पुल बांधना और रैली में पुन: दुहराना क्या संकेत करता है?
कांग्रेस के तो दोनों हाथ में लड्डू ही दिख रहा है. मोदी नहीं तो भाजपा कमजोर, मोदी के साथ एन डी ए कमजोर…. ऊपर से अगर प्रधान मंत्री, वित्त मंत्री और योजना आयोग के अध्यक्ष से कुछ सकारात्मक संकेत मिलते हैं, तो सब कुछ उलट पुलट हो सकता है, क्योंकि नीतीश यह भी कई बार कह चुके हैं – जो बिहार को या बिहार जैसे पिछड़े राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देगा, वे उसी के साथ जायेंगे. बिहार के साथ अन्य पिछड़े राज्य भी उनका अनुकरण कर सकते हैं. नीतीश को विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी पी सिंह) के समय चाणक्य कहा जाता था … आज वे अपनी चाणक्यगिरी पुन: साबित कर रहे हैं!
अंतिम वाक्य में उन्होंने यह भी कह दिया यह तो सिर्फ अंगराई की झांकी है! असली लड़ाई (२०१४ की) अभी बाकी है!
कुछ पत्रकारों के ही अनुसार नीतीश ने मोदी के दंभ के गुब्बारे में सुई चुभाने की कोशिश की है … अब देखना यह है कि गुब्बारे की हवा निकलती है या पंचर लगाने की कोशिश की जाती है!
(रुकावट के लिए खेद है … मैं अपनी कहानी दो भाई की अगली कड़ी प्रस्तुत करने वाला था… पर आज का विषय ज्यादा प्रासंगिक लगा, इसलिए इसे पहले प्रस्तुत कर रहा हूँ. दो भाई” की अगली कड़ी इसके बाद प्रस्तुत की जायेगी)

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