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कमल का जन्म कहते हैं, कीचड़ से होता है. तालाबों में ये बहुतायत रूप में पाए जाते हैं. पहले इनमे कली निकलती है, फिर सूर्य के प्रकाश में ये खिलते हैं. इनके सभी दल यानी पंखुड़िया चारो तरफ से फैलती हुई अन्दर की तरफ मुडी होती हैं. ये पंखुड़िया बहुत ही कोमल होती हैं, इसी लिए इनकी तुलना आंख से की जाती है. भगवान् को भी कमलनयन कहा जाता है. यह लक्ष्मी जी का आसन भी है. लक्ष्मी जी इन्ही पर विराजती हैं.
पुराणों में आख्यान आता है. बिष्णु भगवान क्षीर सागर में शयन करते हैं, उनकी नाभि से कमल प्रस्फुटित होता है और ब्रह्मा जी उसी कमल के ऊपर बैठकर सृष्टि की रचना करते हैं.
कमल का उदय सूर्योदय के समय होता है और रात में इनकी पंखुडियां पुन: सिकुड़ जाती हैं. भंवरा अगर कमल के पराग का रस चूस रहा होता है तो रात भर उसी के अन्दर बंद रहता है. दुसरे दिन सूर्योदय के साथ ही बाहर निकल पाता है. इस तरह से अगर देखा जाय तो कमल का पौराणिक और अध्यात्मिक महत्व है. यह भारत का राष्ट्रीय पुष्प भी है और भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिह्न भी … अब आपको फैसला करना है की कमल की सुन्दरता और उदारता पसंद है या और कुछ!
कहते है या प्रचारित किया जाता है – कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ. जो कि बिलकुल नहीं है. यह हाथ तो आशीर्वाद की मुद्रा का है, पर लगता थप्पड़ ही है, जो कि दीखता नहीं पर घाव करे गंभीर जैसा है.यह हाथ देश की जमीन, आकाश, पाताल, से लेकर आपके जेब तक पर भी हमला करता है! लूटने की हर सम्भव कोशिश करता है!
किसी ने कहा है कि जब आंखे रोती है तो उसके आंसू पोंछने के लिए हाथ ही ऊपर उठती है. अगर कमल को आंख मानें तो क्या यह हाथ कमल के दुःख को शांत करती है या और बढ़ा देती है.
पर दोनों में कुछ तो रिश्ता है. चाहे आप कमल का चुनाव करें या हाथ को रखें. थप्पड़ से डरना है, तो कमल का साथ देना हैं. कमल कोमल तो है ही देवताओं से सम्बन्ध भी रखता है.
जनता दल यूनाइटेड का चुनाव चिह्न है तीर. इसके नेता नितीश कुमार ने एक बार निशाना लगाया तो लालटेन का शीशा फुट गया और अब भी ये बाज नहीं आ रहे हैं. तीर को साध रहे है निशाना का पता नहीं पर तीर चला अवश्य रहे हैं. कभी कभी तीर की दिशा गलत भी हो सकती है या अपनों को भी नुक्सान (घाव) पहुंचा सकती है.इसलिए तीर को तरकश में सुरक्षित रखा जाता है. रामायण काल में राम-लक्ष्मण अपने तीर से बहुत सारा कमाल दिखा चुके हैं. अनेक निशाचरों को उसके गन्तब्य तक पहुंचा चुके हैं और महाभारत में अर्जुन, भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, कर्ण आदि भी अपने तीरों के कमाल दिखा चुके हैं.
इसका मतलब है कि आपको लालटेन युग में ही रहना है ..बिजली से बहुत खतरा है, बिजली पैदा करने से प्रदूषण भी होता है. लालटेन का प्रकाश काफी है. लालटेन के प्रकाश में ही पढ़ कर बड़े बड़े विद्वान हुए हैं, और नेता भी. लालू जी खुद भी लालटेन की रोशनी में ही पढ़े हैं. उनके बच्चे लेकिन अब आधुनिक हो गए हैं, और क्रिकेट से लेकर राजनीति में भी जोर आजमाईश कर रहे हैं.
ये है आम आदमी या गरीब आदमी की सवारी. पर अगर इस पर नेता पुत्र बैठे तो बन जाय युवराज. जैसे अखिलेश यादव. सायकिल में एक सुविधा है, इसे लेकर कहीं भी जा सकते हैं. जरूरत पड़े तो इसे कंधे पर उठा भी सकते हैं. नदी पार करनी हो तो इसे नाव पर लाद कर पार हो सकते हैं . खासकर नदी अगर सी बी आइ की हो …
हाथी राजा महाराजाओं की सवारी थी, पता नहीं कैसे यह गरीबों या दलितों की झोपड़ी में आ गयी. दलित की झोपड़ी में तो यह रह नहीं सकती, उसे उजाड़ अवश्य सकती है. यही कारण है कि गरीब इसके चक्कड़ में उजड़ गए, पर बहिन जी महारानी बन बैठी. सोने का मुकुट भी पहन लिया. उत्तर प्रदेश की गद्दी पर बैठने के बाद उन्हें दिल्ली की राजगद्दी की चिंता सताने लगी. फिर भी सी बी आई से बचने में हाथी काम आता है, यह तो समझ में आता है. अब हाथी पत्थर के हो गए हैं और विभिन्न पार्कों की शोभा बढ़ा रहे हैं. चुनाव आयुक्त को इनसे बड़ा डर लगता है, इसीलिये चुनाव के समय इन्हें प्लास्टिक से ढँकवा देते हैं.
यह है हंसिया और हथोड़ा यानी खेतिहर मजदूर और कारखाने के मजदूर का प्रतीक ! खेतिहर मजदूर को नक्सली और कारखाने को हथौड़े मारकर बंद ही करा दिया …यह हंसिया अब भूमिपतियों को ऊपर से ६ इंच छोटा करने के काम आता है और हथौड़ा कल कारखानों को तोड़ने फोड़ने के काम आता है. जरूरत पडी तो किसी का सर भी फोड़ सकते हैं. ज्योति बाबू के बाद अब इसे सम्हालने वाला बचा नहीं.
तृण मूल यानी घास की जड़. घास कही भी लग जाती है. जमीन उपजाऊ हो या न हो. यह बड़े बड़े कारखानों को भी उखाड़ फेंकती है या उसके ऊपर छा जाती है.जैसे रतन टाटा के सपना को भी बंगाल से गुजरात पहुंचाकर ही दम लेती है. आजकल यह खूब पल बढ़ रही है ..लोगों को भी मालामाल कर रही है …पसीने की कमाई को कई गुना बढ़ा देती है. कहते है जब आंधी आती है, तो बड़े बड़े पेड़ उखड़ जाते हैं, पर घास यूँ ही मुस्कुराती रहती है. पर दिल्ली पुलिस का सलूक ठीक नहीं है. वह इनकी दीदी का भी रक्त चाप बढ़ा देती है. दिल्ली का नारा सब उल्टी दिशा में काम करता है. जैसे दिल्ली पुलिस का सलोगन – दिल्ली पुलिस -आपके लिए आपके साथ ! यह भी ठीक उसी प्रकार काम करती है, जैसे कांग्रेस का हाथ!
बाकी पार्टियों की चर्चा फिर कभी….
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