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आखिर जद्दोजहद के बीच दोनों मंत्रियों का इस्तीफ़ा तो हो गया – पर इतने से क्या कांग्रेस कह सकती है – “देर आए दुरुस्त आए” ? – मेरे ख्याल से नहीं. अगर यही कुछ दिन पहले हुआ होता तो संसद भी चलती और इतना हो हंगामा भी न होता. पहले कांग्रेस की तरफ से दोनों का बचाव, फिर कर्नाटक का चुनाव !
प्रधान मंत्री तो कुछ नहीं करेंगे, न कुछ कहेंगे, जबतक ‘ट्रिगर’ न दबाया जाय ..पर मैडम को ‘अकल’ आने में देर क्यों लगी? .. आखिर जब इस्तीफ़ा दिलवाना ही था, तो इतनी छीछालेदर क्यों? ‘बकरे की पूजा’ भी बड़ा मजेदार वाक्या रहा ..अरे भाई! ‘गाय दान’ ही करा देते. कम से कम हिन्दू तो कहलाते! पर यह कहाँ मंजूर होगा, फिर तो साम्प्रदायिकता का दाग लग जाता न!
अब दोनों मंत्रियों के बाद क्या प्रधान मंत्री का नंबर आयेगा? – जिसकी मांग अब भी विपक्षी पार्टियाँ कर रही है, या संसद को भंग करने की सिफारिश की जायेगी?
अभी बहुत कुछ देखना बाकी है? ‘डैमेज कंट्रोल’ तो करना ही पड़ेगा…. अभी विपक्ष यानी भाजपा को पूरे जोर लगाने की जरूरत है, साथ ही अपने घर सुधारने की भी, नहीं तो सहानुभूति की लहर में फिर कांग्रेस या यु पी ए?
यह जल्दी बाजी में व्यक्त विचार है … राजनीतिक पंडित इसके मायने निकालेंगे!
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