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भाई साहब नहीं लगेंगे!

jls
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भाई साहब नहीं लगेंगे! यह है बीएसएनएल का फुल फॉर्म ऐसा लोग कहते हैं, सुना था. अब देख भी लिया … कैसे?
बताता हूँ. ३१ मई २०१३ को लगभग १२ बजे मैंने इन्टरनेट के लिए बीएसएनएल के मोडम से कन्नेक्ट करना चाहा, तो नहीं हुआ. मैंने १५०० नंबर के द्वारा कम्प्लेन लॉग किया, जिसके अनुसार १२:२८ में यह लॉग हुआ. उस दिन शुक्रवार था और आधा दिन कहें तो बीत चुका था. और शनिवार तो आधे दिन का ही होता है! उसके बाद रविवार तो वैसे ही अवकाश का दिन…
और इनेर्नेट कोई आवश्यक सेवा तो है नही, जिसके लिए बीएसएनएल अपना सन्डे ख़राब करे. जब सोमवार यानी तीन जून को भी दोपहर तक बीएसएनएल के एक्सचेंज से कोई फोन नहीं आया, तो मैंने ही उन्हें जगाने का प्रयास किया. फोन उठानेवाला कोई नहीं … फिर मैंने अपने क्षेत्र के एस डी ओ फोंस का नंबर मिलाया, तो फोन उठानेवाली महिला ने एक दूसरा नंबर दिया … मैंने उनके द्वारा दिए गए टेलीफोन पर अनेको बार प्रयास किया, पर कोई रिस्पांस नहीं. फिर मैंने पहले वाले नंबर पर लगाया तो हमारे एस डी ओ साहब का मोबाइल नम्बर दे दिया गया …उस मोबाइल नंबर पर भी मैंने अनगिनत बार प्रयास किया. पर शायद यह साइलेंट मोड में होगा, इसलिए एस डी ओ साहब ने संज्ञान में नहीं लिया होगा.
सोमवार का दिन बीत गया अब आया मंगलवार का दिन ४ जून …मैंने बजरंगबली का ध्यान कर जी एम टी डी ऑफिस का नंबर डायल किया. काफी देर बाद फोन उठा, तो मैंने अपनी पीड़ा बताई … जी एम ऑफिस से पूछा गया – “आपने कम्प्लेन किया है?”
मैंने कहा- “सर ३१ तारिख को १२:२८ बजे किया है, आपको डॉकेट नंबर दूं?” उन्होंने कहा – “नहीं, वह तो आपके क्षेत्र के एस डी ओ के पास होगा ही. आपने उन्हें बताया है?” “सर जी, वे फोन उठायें, तब तो बताएं! उन्होंने कहा – “ठीक है मैं देखता हूँ.” मंगलवार भी गुजर गया …
अब बुधवार को मैंने पुन: जी एम ऑफिस को फोन लगाया फोन उठाने वाले महोदय ने मुझे मेरी आवाज और फ़ोन नंबर बताने से पहचान लिया और बड़ी संजीदगी से पूछा – “आपका प्रोब्लम सोल्व नहीं हुआ?” मैंने कहा- “अगर सोल्व हो गया होता, तो आपको अवश्य धन्यवाद कहता.” मैंने अपनी पीड़ा को और दर्दनाक बनाते हुए कहा – “सर इसके पहले मैंने जब भी कम्प्लेन किया है एक दो दिन बाद एक्सचेंज से पूछा जता था, पर यह पहली बार ऐसा हुआ है कि चार पांच दिनों तक कोई खोज खबर भी न ली गयी!” उन्होंने इस बार सहानुभूति दिखाते हुए कहा – “ठीक है, मैं देखता हूँ.”
लगभग १० मिनट बाद मेरे फोन की घंटी बजी और पूछा गया – “टेलीफोन ठीक है?” मैंने कहा – “टेलिफ़ोन तो ठीक है महाशय, पर ब्रॉडबैंड काम नहीं कर रहा!”
उधर से आवाज आयी – “सर जी मॉडम लेकर एक्सचेंज में आ जाइये. यहाँ मॉडम चेक हो जायेगा.” मरता क्या न करता. ठीक दुपहरी में मॉडम लेकर एक्सचेंज में पहुँच गया. मैंने दरवाजा खटखटाया – आवाज आई – “येस, कम इन.” मैंने दरवाजा खोला और अन्दर प्रवेश कर गया. उन्होंने कहा – “दरवाजा बंद कर दीजिये!” दरअसल ए. सी. चल रहा था. अन्दर शीतलता का आभास हुआ.
साहब ने पूछा – “कहिये, कैसे आना हुआ?” मैंने कहा – “यह रहा मॉडम जिसके ख़राब होने की शंका जाहिर की गयी थी, आपके यहाँ से!”
साहब ने कहा – “मॉडम को टेबुल पर रखिये और पॉवर प्लग को सॉकेट में लगा दीजिये”. फिर उन्होंने मॉडम में अपने पी सी का पोर्ट लगा कर देखा और थोड़ी देर बाद कहा – “मॉडम तो ठीक है!” मैंने उनकी तरफ प्रश्नवाचक निगाह से देखा तो उन्होंने अपने फोन से अधीनस्त लाइनमैन को फोन किया – “इनका मॉडम ठीक है. लाइन चेक करा दीजिये”. उन्होंने तथाकथित लाइनमैन का मोबाइल नंबर भी दे दिया … मैं लाइनमैन महोदय को खोजते हुए, उनके कक्ष तक जा पहुंचा. बेचारे भले आदमी थे. अभी अभी उन्होंने लंच समाप्त किया होगा, ऐसा लगा. क्योंकि उनकी ऑंखें बतला रही थी, अभी उनका नींद पूरा नहीं हुआ है! वे उनींदी आवाज में बोले – “क्या है?” मैंने कहा – “सर जी, मॉडम तो ठीक है, ऐसा बड़े साहब बतला रहे हैं. अब अगर आपकी इच्छा हो, तो मैं आपको अपने घर तक ले चलूँ. मेरा घर आपकी चरणधूलि की प्रतीक्षा में है. मैं बाइक लेकर आया हूँ, आपको साथ लेता चलूँगा और काम हो जाने के बाद आपको यहाँ तक छोड़ भी दूंगा” …इतनी भलमनसाहत तो हम आम नागरिकों में होती है. उन्होंने कहा – “आप चलिए, मैं आता हूँ.”
काफी देर इन्तजार के बाद मेरे दरवाजे की घंटी बजी और लाइनमैन महोदय साक्षात् देव की भांति आ प्रकट हुए! घर में घुसकर उन्होंने केबुल को जांचा – परखा .. खींचा… खींचने से एक पुराना जोड़ (जॉइंट) खुल गया. उन्होंने चमत्कारी मुस्कान के साथ कहा- “देखा.. कैसे काम करेगा?” मैंने जिज्ञासा जाहिर की – “फिर टेलिफ़ोन कैसे काम कर रहा था”. “टेलीफोन का क्या है, वह तो बिना तार का भी काम करता है … आपके पास मोबाइल है?” मैंने सहमती में सर हिलाया ..”फिर वो कैसे काम करता है?” मैंने अपने सामान्य ज्ञान को काफी लताड़ा! इतनी सी बात नहीं समझ पाते!
तार को काट कर, छीलने, जोड़ने के पश्चात् उन्होंने टेप की मांग की – “टेप तो होगा आपके घर में?” उन्होंने मेरे ही टेप को कई बार लपेटा और मजबूती को भी परखा … अब बारी थी मॉडम की … मॉडम में एक DSL LED होता है, जिसके नहीं जलने का मतलब होता है, ‘ब्रॉडबैंड सर्विस’ काम नहीं कर रहा है! यही प्रॉब्लम मेरे मॉडम में पहले से ही बतला रहा था. तार को काट कर जोड़ने से भी प्रॉब्लम बरक़रार था. अब लाइनमैन महोदय का निशाना ‘स्प्लिटर पोर्ट’ की तरफ गया – “यही ख़राब है ! इसे बदली करना होगा” …मैंने पूछा – “कौन बदलेगा इसे?” “हम ही बदलेंगे इसे. कल लेते आएंगे.” मैंने कहा – “टेलीफोन लाइन को डायरेक्ट मॉडम में लगाकर देखिये” …उन्होंने मेरी सलाह मान ली …मैंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की. पर प्रभु हम आम लोगों की कब सुनते हैं! अब लाइनमैन महोदय ने मेरे ही फोन से आठ-दस काल कर फ़ोन सेवा से भी मुक्त कर दिया – जाते हुए कहने लगे – आपके लाइन में काम हो रहा है, जब डायल टोन आ जायेगा उसके बाद ट्राय कीजियेगा नहीं होगा तो मुझे बताइयेगा मेरा नंबर तो आपके पास है ही!” तब तक उनकी नजर मेरे घर में रखे लंगड़ा आम पर, पर गयी. “घर से आया है क्या?” मैंने कहा -“नहीं बाजार से खरीदा है.”
“चार-पांच मुझे भी दे दीजिये न? घर में बच्चे बहुत परेशान करते हैं. मुझे आम की पहचान ही नही है, इसीलिये बाजार से नहीं खरीदता. आपके जैसे ग्राहक लोग ही या तो अपने घर का या बाजार से ही खरीद कर दे देते हैं.” ऐसा कहते हुए उन्होंने स्वयम से पांच आम उठाकर अपने थैले में रख लिए और चलते बने!
उनके जाने के कुछ देर बाद डायल टोन तो आ गया पर ब्रॉडबैंड से मुक्त ही रहा. मैंने लाइनमैन महोदय का मोबाइल नंबर डायल किया तो नंबर गलत बतला रहा था. पर एस डी ओ साहब से उत्तर मिला – “कल का इन्तजार करिए! आज तो अब पांच बजने को है!”
कल यानी ६ जून को लाइन महोदय का फोन आया – “ठीक हुआ?” मैंने कहा – “नहीं सर जी, आकर देखिये न!”
उन्होंने कहा कहा – “आते है दस मिनट में!” दस मिनट का मतलब बाद में पता चला ‘सेकंड हाफ’ – यानी तीन बजे होता है!
तीन बजे भी लाइनमैन महोदय तो नहीं आये, पर DSL लैंप ‘ग्लो’ करने लग गया था. मैंने ट्राय किया और ब्रॉडबैंड कनेक्ट हो गया …एक बार प्रेम से बोलिए – बजरंग बली की … जय! ……लाइनमैन महोदय की……

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