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शनिवार को शाम जब घर पहुंचा, तो बेटे ने दरवाजा खोला … घर के अन्दर घुसा तो देखा – श्रीमती जी सोई हुई हैं! …हो सकता है, कभी कभी आराम भी तो करना चाहिए!
बेटे ने पूछा – “पापा चाय पीयेंगे?”
“मतलब? तुम्हारी मम्मी को क्या हुआ?”
“मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है!”
“क्यों? क्या हुआ?”
“वो…. बुखार है और पूरे बदन में दर्द है!”
“डॉ. से दिखलाया”
“हाँ, डॉ. अंकल आये थे, दवा दे गए हैं!”
“सवेरे तो ठीक थी?”
” .. नहीं सवेरे से ही तकलीफ थी ”
“अरे! शुबह तो नाश्ता बनाकर दी! टिफिन भी दिया!”
“हाँ,….. वैसे तो दिन में खिचड़ी भी बना कर रख दी है, पर खुद खाई नहीं!…. डॉ. अंकल ने आराम करने को कहा है!”
“सीजनल, ‘वायरल फीवर’ होगा …आजकल बरसात में यही बीमारी ज्यादातर होती है”.
मैंने श्रीमती जी के पास जाकर हाल चाल पूछा – जवाब मिला – “१०० से ऊपर बुखार है, बदन में सर में खूब दर्द है!”
“ठीक है, आराम करो ..”
साढ़े पांच बजे के करीब बेटी आयी और वह भी मम्मी की हालत देख, घर के काम में लग गयी, चाय बनाई और मुझे भी पीने को दी.
मैंने बेटे से पूछा – “अगर मम्मी की तबीयत ठीक नहीं थी तो मुझे फोन क्यों नहीं किया?”
“मम्मी ने ही मना किया …’बेकार में आप चिंतित होंगे!’ ”
यानी कि खुद चाहे परेशान हो, बीमार हो, श्रीमान को परेशान नहीं होना चाहिए!
चाय बिस्कुट तो हो गया, अब शाम के खाना का क्या होगा?
पता चला – खिचड़ी इतना है कि हमलोगों का काम चल जाएगा.
खिचड़ी गरम कर, चोखे और पापड़ के साथ हमलोगों ने आनंद पूर्वक खाया
टी वी देखी और सो गए!
बेटा और बेटी अपनी मम्मी का देखभाल करते रहे.
अब शुबह तो रविवार था … पहले कौन उठे! यही इंतज़ार शायद हम सभी कर रहे थे.
मैं तो जग गया और लैपटॉप ले बैठ गया.
मगर श्रीमती जी को बर्दाश्त नहीं हुआ. आखिर उठी और चाय के लिए पानी हीटर पर चढ़ा दी.
अब मैं थोडा द्रवित हो गया और चायपत्ती चीनी आदि डाल खौलने का इन्तजार करने लगा ..
चाय ढालकर मैंने खुद पी और श्रीमती जी को भी दिया पीने को!
जान में जान आयी.
अब दोनों भाई-बहन जग चुके थे.
उन लोगों ने भी अपने-अपने जिम्मे का काम सम्हाल लिया!
मेरा बेटा मम्मी के साथ ज्यादा वक्त गुजारता है, इसलिए उसे सब्जी बनाने का तरीका पता है!
उसने सब्जी बनाने का काम सम्हाल लिया
बेटी आंटा गूँथने लगी … आंटा गूंथने में ही वह परेशान हो गयी
अब रोटी बनाने की बारी थी. मैंने कहा – “मैं रोटी बनाना जनता हूँ!”
मैंने आंटे की लोई बना चकले पर बेलन से रोटी बेलने का प्रयास किया …
बेटे ने कहा – “भारत का नक्शा जैसा है!”
मैंने कहा – “तुम बेल कर दिखाओ”
अब उसने चकला बेलना सम्हाला – और बर्मा के नक़्शे का शक्ल दे बड़ा खुश हुआ!
बेटी बोली – “तुमसे भी नहीं होगा, लाओ हम बेलते हैं!”
मेरी बेटी श्रीलंका बनाकर खुश थी ..
मैंने कहा छोड़ो – “आज हमलोग डोसा लाकर खा लेते हैं, तुम्हारी मम्मी के लिए ब्रेड ठीक रहेगा!”
शुबह का काम चल गया ….
दोपहर के लिए फिर जद्दोजहद करनी होगी.
मैंने कहा – “अगर खिचड़ी बनाना आसान है तो वही बना लो! या फिर दोपहर को भी डोसा चलेगा?”
उसके बाद, बाजार से कुछ जरूरी सामान, हरी सब्जी, आम वगैरह ला दिया और टी वी में समाचार आदि देखता हुआ सो गया
दोपहर को खाने के समय मैंने देखा कि दाल, भात, तीन प्रकार की सब्जियां, सलाद और आम भी मिल गया.
और क्या चाहिए था मुझे.
मैंने बेटी से पूछा – “कैसे तैयार हुआ यह सब?”
उसने कहा – “मम्मी बैठकर निर्देश देती रही और हम सब मिलकर कर काम करते रहे.”
“मम्मी आज थोड़ा हल्का महसूस कर रही थी. उसने चाय के साथ ब्रेड खाई थी.”
मेरा कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना ही है कि जिस काम को एक गृहणी अकेले चुपचाप कर लेती है, हमलोग एक दिन में ही परेशान हो जाते हैं.
उसे न तो कोई साप्ताहिक अवकाश मिलता है, नहीं कोई इंसेंटिव लाभ. यह महत्व हम तब जान पाते हैं, जब वह बीमार हो जाती है या मायके चली जाती है.
सोनम ने ठीक ही कहा था – हर मम्मियों, आंटियों, और भाभियों को अपना ख्याल भी रखना चाहिए और हम पतियों के स्वभाव में भी थोड़ा लचीलापन आना चाहिए !
जय गृहणी महिला! ….
तनावग्रस्त राजनीतिक माहौल और भारी बारिश से तबाही के बीच थोड़ा मन हल्का कर लीजिये! खुद से चाय बनाना तो सीख ही लीजिये!
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