- 457 Posts
- 7538 Comments
जब होते घने बड़े जंगल,
नक्सल डकैत करते मंगल.
जंगल जब काटे जाते हैं,
विपदा नित नई बुलाते हैं.
जंगल काटा आबाद किया
खुद को ही यूं बर्बाद किया.
पेड़ों के घर में बने शहर,
छीना जंगल के पशु का घर,
आई विपदा नित नई मगर.
जंगल के पशु आ गए शहर,
पशु को जब पिंजरे में डाला,
बन गया बंदी गज मतवाला.
घटते ही गए मृग सिंह बाघ.
बन गया मनुज चालाक घाघ.
जब तापक्रम बढ़ने ही लगा,
हिम खंड स्वयम गलने ही लगा.
नदियों की धारा तेज हुई,
बाधाएँ सब निश्तेज हुई.
मिट्टी बह गयी किनारों की,
नींवे हिल गयी दिवारों की.
बह गए खेत घर दूकाने,
इसको आफत क्यों न मानें.
बह गए जानवर नर कितने,
बह गए बाप बच्चे कितने.
बिछ गयी लाश मैंदानों में,
होटल, मंदिर मयखानों में.
भोले नंदी को बचा न सके,
कसैले विष को पचा न सके.
विकराल बन गयी तब गंगा,
खुद काल बन गयी तब गंगा.
जो कोई पथ में भी आया,
धारा का वेग न थम पाया.
पर्वत का पत्थर बिखड गया,
कुटिया गरीब का सिकुड़ गया.
कुदरत का कहर बताने को,
देखो फल अब मनमाने को.
मानव चिंता कर तू अपनी,
फल भोगो अपनी ही करनी.
मानो तुम इस चेतावनी को,
मत छेड़ो ज्यादा धरनी को.
संतुलन बनाये ही रखना,
कुदरत की सुन्दर है रचना!
नभ, धरनी, पावक, वायु, नीर,
पांचो तत्वों का यह शरीर
मत करो क्षरण इस संपत को.
अब तो मानो इस सम्मत को.
– जवाहर लाल सिंह
०३.०७.१३.. ०८:०० बजे शुबह.
Read Comments