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‘मिड डे मील’ (मधयाह्न भोजन) की त्रासदी.

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स्वर्गीय कुमारस्वामी कामराज (१५ जुलाई १९०३ -०२ अक्टूबर १९७५) जो १९५४ से १९६३ तक तमिलनाडु के मुख्य मंत्री रहे – एक दिन गाय चराते हुए कुछ बच्चों से पूछा – आप स्कूल जाने के बजाय गाय क्यों चरा रहे हैं?
बच्चों का जवाब था – अगर मैं स्कूल आऊंगा तो, क्या आप भोजन उपलब्ध कराएँगे? और वहीं से श्री कामराज के मन में यह विचार कौंधा कि अगर बच्चों को विद्यालय में भोजन उपलब्ध करा दिए जाएँ तो वे विद्यालय आएंगे और पढ़ाई भी करेंगे. उनका उद्देश्य था गरीब से गरीब बच्चों को भी शिक्षा प्रदान करना.
उन्होंने १९६० में भी तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में मिड डे मील की योजना चलायी. जो कि काफी कारगर साबित हुआ .. बाद में देश के प्रधान मंत्री श्री पी वी नरसिम्हा राव ने १९९५ में केन्द्र में भी इसे लागू कर दिया. आज देश के सभी राज्यों में यह योजना चलायी जा रही है, इस साल के बजट में १३,२१५ करोड रुपये आवंटित किये गए हैं. इनसे सरकारी स्कूल के १२ करोड बच्चों को पका भोजन साल के १६७ दिन दिए जाने हैं. ….पर भ्रष्टाचार, लापरवाही, कर्तव्यहीनता को क्या कहेंगे ….. आए दिन ख़बरें आती रहती हैं, फलां जगह ‘मिड डे मील’ में कीड़े मिले, खाने में छिपकिली के गिरने से अनेक बच्चे बीमार… खाने में चूहे, सांप, तिलचट्टे, मेढक ये सब आम बातें हो गयी …कारण उचित देखभाल का अभाव, या संसाधनों की कमी. कही विद्यालय भवन नही है. किसी बड़े पेड़ के नीचे क्लास और वही खाना बनाया जाना. कही एक ही कमरा है, उसी में क्लास और खाना बनाया जाना.
किसी शहरों में किसी अच्छे एन. जी. ओ. ने अगर जिम्मेवारी ले ली है, तो वे सेंट्रल किचेन में खाना बनाकर पैक कर विभिन्न स्कूलों पर पहुंचाते हैं. इसका सबसे अच्छा उदाहरण भोपाल का सरोजनी नायडू स्कूल है, जहाँ के बच्चे चावल, रोटी, दाल, सब्जी के साथ सांभर, चटनी और खीर पुरी भी खाकर बहुत खुश है. वहाँ के प्रशासन ने एक टोल फ्री नंबर भी लिखकर रखा है, जिसपर कोई भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. तात्पर्य यह है कि यही योजना एक जगह सुचारू ढंग से चलायी जा सकती है, तो दूसरी जगह क्यों नही?
किसी किसी राज्य में जैसे हरियाणा, तमिलनाडु में यह सुचारू रूप से चल रहा है, पर अब तो तमिलनाडु से भी ख़बरें आ गयी – तमिलनाडु के नेवेली जिले में ‘मिड डे मील’ खाने से सैंकडों छात्राएं बीमार! … जहाँ पग पग पर भ्रष्टाचार हो, खाद्य सामग्री के भण्डारण की समुचित ब्यवस्था न हो, कीड़े युक्त अनाज ही सरकार द्वारा उपलब्ध कराए जाएँ, साफ़ सफाई की उचित ब्यवस्था ना हो, जिम्मेदारी का अभाव हो, वहाँ कोई क्या कर सकता है.
बहुत अच्छा लगता है – जब सभी बच्चे एक साथ पांत में बैठकर खाना खाते है. शिक्षक या शिक्षिका खाना पड़ोसते हैं. विद्या के मंदिर में भारत के भविष्य का निर्माण!
यहाँ जाति, धर्म, उंच-नीच का भाव न के बराबर रहता है. क्या यही कल्पना नही थी स्वर्गीय के. कामराज की?
एक समय था जब हमारे नेता कुछ ऐसा सोचते थे, जिसका अनुकरण सभी लोग करने लगते थे. आज विदेशों में भी, यहाँ तक कि अमेरिका जैसे विकसित देश में भी ‘मिड डे मील’ योजना चलायी जा रही है.
आज के हमारे नेता सिर्फ आरोप प्रत्यारोप करते हैं और अपना वोट बैंक बढ़ाने की चिंता में रहते हैं. मासूमों की जान से उन्हें कुछ लेना देना नही रहता….
बिहार के सारण जिला के मशरक ब्लॉक के धरमासती गंडामन गाँव के प्राथमिक विद्यालय में जो घटना/दुर्घटना हुई है, वह अभूतपूर्व है …या सोची समझी साजिश है या मानवीय भूल का नतीजा, यह तो जांच का विषय है. पर लगभग दो दर्जन बच्चों की अकाल मृत्यु से हम कुछ भी सबक लेंगे क्या ?
मीडिया द्वारा अन्य जगहों पर किये गए दौरों से यह साफ़ जाहिर है कि अभी भी घोर अनियमितता बनी हुई है और इस प्रकार की घटनाओं से इनकार नही किया जा सकता. इस घटना के तुरन्त बाद दरभंगा में कुछ बच्चों का छिपकिली गिरे खाने के कारण बीमार हो जाना, तत्काल का उदाहरण है.
जो भी कल्याणकारी योजनाएं बनायी जाती हैं, उनका उद्देश्य तो अच्छा ही होता है, पर क्रियान्वयन में घोर अनियमितता, भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी, जिम्मेदारी का अभाव, इन्हें फलीभूत नही होने देता. मनरेगा, बी पी एल कार्ड और अब खाद्यान्न सुरक्षा बिल की पेशकश … अंजाम— नेताओं, अफसरों, बाबुओं, दबंगों, का हित ज्यादा. जो वास्तविक में हकदार हैं उन तक पहुँचते पहुँचते कितना बन्दरबाँट हो चुका होता है, यह अज्ञात नही है.
अपेक्षित सुधार के लिए सरकार और समाज दोनों को सजग और सचेत होने की जरूरत है. कम से कम गरीब बच्चों की जिंदगी से तो न खेला जाय.
इस घटना के आठ दिन बाद नीतीश बाबु मीडिया के सामने आए और विपक्ष पर सीधा आरोप लगाया … स्कूल की प्रधानाध्यापिका मीना देवी ने आत्मसमर्पण कर दिया है.. जांच चलेगी और कोई भी फैसला इन २३ बच्चों को नयी जिन्दगी नहीं दे सकता …ऊपर से दो दिन से बिहार के शिक्षकों का इसकी जिम्मेवारी लेने से इनकार …अंजाम बच्चे भूखे … उपस्थित कम …पर किसी को क्या फर्क पड़ता है, अब तो ५ रुपये में या १५ रूपये में भोजन!…. चर्चा का विषय बना हुआ है! धत्त तेरे की ….क्या कीमत है गरीबों की इस भारत भूमि में!
-जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
(सौजन्य – तथ्य का श्रोत मीडिया और गूगल)

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