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दुर्गा शक्ति – ईमानदार अधिकारियो का जमाना गया?

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लखनऊ।। आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल की पहली पोस्टिंग ग्रेटर नोएडा में हुई। वह सब-डिविजनल मैजिस्ट्रेट (एसडीएम) बनकर आई थीं। इनकी पोस्टिंग के मुश्किल से 6 महीने हुए थे कि अखिलेश यादव सरकार ने उन्हें सस्पेंड कर दिया। शनिवार(२७.०७.१३) को नागपाल ने ग्रेटर नोएडा में अवैध रूप से सरकारी जमीन पर बनाई जा रही मस्जिद की दीवार को तोड़ने का आदेश दिया था। उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार का कहना है कि नागपाल ने रमजान के पवित्र महीने में समस्या खड़ी करने वाला फरमान जारी किया था। अखिलेश यादव ने कहा कि सांप्रदायिक तनाव से बचने के लिए हमें यह फैसला लेना पड़ा। मुख्यमंत्री के इस फैसले पर यूपी आईएएस असोसिएशन ने नाराजगी जताई है।
यूपी आईएएस असोसिएशन के सचिव पार्थसारथी सेन शर्मा के साथ दुर्गा नागपाल ने यूपी के ऐक्टिंग मुख्य सचिव आलोक रंजन से मुलाकात की। असोसिएशन ने आलोक रंजन से निलंबन वापस लेने की मांग की है। इस बीच यूपी सरकार ने इस निलंबन पर सफाई दी है कि दुर्गा सांप्रदायिक सौहार्द्र कायम रखने में नाकाम रही हैं।
अखिलेश यादव सरकार के इस तर्क को लोग बहाने के रूप में देख रहे हैं। लोगों का मानना है कि दुर्गा शक्ति नागपाल जिस तरीके से काम कर रही थीं, उसका नतीजा अखिलेश सरकार में यही होना था। नागपाल रेत खनन माफियाओं पर लगातार शिकंजा कसती जा रही थीं। ऐसे में अखिलेश सरकार पर खनन माफियाओं का भारी दबाव था कि नागपाल को हटाया जाए।

नागपाल 2009 बैच की आईएएस ऑफिसर हैं। कुछ हफ्तों से ग्रेटर नोएडा में अवैध खनन पर लगाम कसने के लिए नागपाल युद्धस्तर पर काम कर रही थीं। उन्होंने यमुना नदी से रेत से भरी 300 ट्रॉलियों को अपने कब्जे में किया था। नागपाल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यमुना और हिंडन नदियों में खनन माफियाओं पर नजर रखने के लिए विशेष उड़न दस्तों का गठन किया था। नागपाल ने सस्पेंड होने से पहले ही कहा कि था – “इन माफियाओं पर कार्रवाई की वजह से धमकियां मिलती हैं।”

नागपाल पर सरकार के फैसले के बाद विपक्ष हमलावर तेवर में आ गया है। विपक्ष ने एक सुर में कहा कि अखिलेश सरकार को माफिया चला रहे हैं, इसलिए ईमानदार आईएएस को सजा दी गई। बीजेपी से सीनियर नेता कलराज मिश्रा ने कहा कि अब यह साबित हो गया है कि सरकार उन ऑफिसरों को बर्दाश्त नहीं करेगी जो माफियाओं के खिलाफ हैं। आखिर दुर्गा शक्ति नागपाल की गलती क्या थी कि उन्हें सस्पेंड कर दिया गया? पहले से ही उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर चिंता कायम है। वहीं अखिलेश सरकार के इस फैसले की चौतरफा आलोचना हो रही है।
सवाल यह है कि क्या ईमानदार अफसरों का जमाना चला गया!….. इसके पहले हरियाणा सरकार पर उत्पीड़न का आरोप लगाने वाले अशोक खेमका, 1991 बैच के आईएस अधिकारी हैं. 21 साल की नौकरी में 40 बार उनका तबादला हो चुका है. इस बार उनका तबादला बीज निगम में किया गया है, जहां जूनियर अफसरों को भेजा जाता है.
खेमका कहते हैं कि सरकार किसी भी पार्टी की रही हो, उन्हें हर बार अपनी ईमानदारी की सजा भुगतनी पड़ी, क्योंकि वे लगातार घपलों और घोटालों का पर्दाफाश करते रहे हैं. आपको याद होगा रोबर्ट वाड्रा और डी एल एफ के बीच ‘डील’ वाला मामला!
मार्च २०१२ में मध्यप्रदेश के मुरैना में अवैध उत्खनन रोकने के लिए गए भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी नरेन्द्र कुमार की ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या कर दी गई.
बामौर के अनुविभागीय अधिकारी नरेंद्र कुमार इस इलाके में चल रहे अवैध उत्खनन की जांच कर रहे थे. नरेद्र कुमार ने बामौर में सड़क किनारे खड़े होकर एक ट्रैक्टर को रोककर उसकी जांच की कोशिश की, तो चालक ने ट्रैक्टर उन पर चढ़ा दिया.
बिहार के अवकाश प्राप्त डी. जी. पी. श्री डी एन गौतम अपनी ईमानदार छवि के कारण कई बार हासिये पर डाले गए थे. अवकाश प्राप्ति के बाद भी उन्होंने झारखण्ड सरकार के सुरक्षा सलाहकार के रूप में काम किया. उन्होंने पुलिस की सुधार के लिए बिहार और झारखण्ड में बेहतर काम किया… बाद में(राजनीतिक कारणों से ही) उन्होंने स्वेच्छा से ही झारखण्ड सरकार के सुरक्षा सलाहकार पद से इस्तीफ़ा दे दिया और अब कविताएँ लिखते हैं. बिहार के ही पूर्व आइ पी एस अधिकारी किशोर कुणाल ने बिहार के नक्स्सलियों और माफियायों से लोहा लेने का काम किया था ..पर जैसे ही उनके हाथ कुछ राजनीतिज्ञों के गर्दन तक पहुँचने वाले थे, उन्हें शंट कर दिया गया …आज वे बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष हैं.
जमशेदपुर के पूर्व एस पी (आइ पी एस) डॉ. अजय कुमार को भी अपनी ईमानदारी की कीमत चुकानी पडी थी और आज अपनी उसी ईमानदार छवि के बदौलत जमशेदपुर के सांसद चुने गए और आज वे राजनीति में बेहतर काम कर रहे हैं.
इस प्रकार ऐसे अनेक ईमानदार अधिकारी हैं जिन्हें ईमानदारी का दंश झेलना पड़ा है … मैं तो कहूँगा कि ऐसे ईमानदार छवि वाले अधिकारियों को राजनीति में भाग्य आजमाइश करनी चाहिए. किरण बेदी, अरविन्द केजरीवाल आदि ने पहल की है ..अब देखना है कि जनता उन्हें किस कदर लेती है और देश की ‘दशा-दिशा’ किस ओर जाती है?

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