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आगे आगे देखिये, होता है क्या?

jls
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आगे आगे देखिये, होता है क्या !
पहले चीन और पाकिस्तान की गुर्राहट, फिर रुपये का गिरना और प्याज का ऊपर चढ़ना. कही अति बृष्टि तो कहीं अल्प बृष्टि. ऐसे में खाद्य सुरक्षा बिल …न बाबा न!
पहले गंभीर विपत्ति को सम्हालो तब तक लोग इंतज़ार कर लेगे … इंतज़ार ही तो कर रहे हैं गत ६६ सालों से… कुछ महीने और कर लेंगे.. बहुत बड़ा परिवर्तन होने वाला है! यह परिवर्तन होकर रहेगा.
परिस्थितियाँ प्रतिकूल है, सत्तादल के लिए … विपक्ष के लिए वही अनुकूल हो जाता है. दो ध्रुव हैं, जनता किसी एक पास तो जायेगी ही. वैसे भी किसी के साथ ज्यादा दिन रहते रहते विकर्षण अपने आप होने लगता है. यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. परिवर्तन ही जिन्दगी है.
इसी बीच एक और सामूहिक बलात्कार!…. १६ दिसंबर २०१२ को बीते हुए लगभग नौ महीने हो गए. उस दिन की काली रात दिल्ली की थी और २२ अगस्त की काली रात मुंबई की थी. क्या फर्क पड़ता है किसी को. दिल्ली और मुंबई होने से हो हंगामा ज्यादा होता है…. राजनीति भी ज्यादा होती है…. संसद तक में गूँज सुनाई पड़ जाती है, कुछ झंडे चमक जाते है, रास्ते बंद हो जाते हैं, संसद ठप्प हो जाती है. पुलिस और गृह मंत्री के बयान आ जाते है …कुछ आरोपी पकड़ भी लिए जाते हैं …उसके बाद शुरू होती है, न्यायिक प्रक्रिया और सब शांत. फिर करते रहते है, कोई बड़ी घटना का इन्तजार! … इस बीच घटनाएँ घटती रहती है. टी वी या प्रिंट मीडिया के किसी कोने में खबर आ भी जाय तो सब इसे स्वाभाविक प्रक्रिया मानकर शांत हो जाते हैं.
क्यों किसी मासूम, नाबालिग के साथ छोटे शहरों में होने वाला जुर्म उतनी सुर्खियाँ और सहानुभूति नहीं बटोर पाता, क्यों उसके साथ हुए जुर्म को उतनी तरजीह नहीं दी जाती … तरजीह देने से भी किसी न्यायाधिपति के कानों पर जूँ नहीं रेंगती. त्वरित न्यायालय का क्या मतलब होता है? अगर त्वरित अदालतें भी उसी रफ़्तार से चलेंगी, तो घटनाएँ त्वरित गति से बढ़ती जायेंगी, अपराधी गिरफ्तार होते रहेंगे. फिर जेल भी अपराधियों से भर जायेंगे, और नए जेल का निर्माण हो जायेंगा, पर अदालतें अपनी रफ़्तार से चलेंगी. अपराध करने के लिए २४ घंटे और ३८५ दिन…. फैसला सुनाने के लिए कुछ घंटे, …. नियमित अवकाश के साथ. क्या अब कानून की पढाई पढ़ने में लोगों की रूचि कम हो गयी है, या किसी भी अदालत के बाहर बैठे वकीलों की दुर्दशा देखकर कानून पढ़ना नहीं चाहते! ये वकील लोग भी क्या सचमुच किसी अपराधी को सजा दिलाना चाहते हैं कि अपनी जेबें गरम करना जानते हैं.
अगर किसी इंजीनियर या डाक्टर से गलती हो गयी तब तो ढेरों सवाल पूछे जायेंगे, पर वकील या न्यायाधीश की गलती हो तो ऊपर का न्यायालय और उसके वकील और जज और ज्यादा फीश और ज्यादा समय … आखिर इन सबका अंत कहाँ जाकर होगा? अपराध बढ़ते ही जायेंगे, क्योकि वे जानते है कि सजा तो होनी नहीं है,… केस चलते रहेंगे. कभी न कभी बाहर छूट कर आ जायेंगे और बड़े गर्व से मुस्कुराएंगे.
अपराध करने वाला कोई बड़ा शक्स हो तो उसके ऊपर हाथ डालने में पुलिस भी सौ बार सोचेगी और तबतक राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेंकते रहेंगे. मुझे यह समझ में नहीं आता ये तथाकथित बड़े लोग कब आम आदमी बन कर सोचेंगे. एक महिला, लड़की या बालिका जो इस दुष्कर्म का शिकार होती है, कितनी गंभीर शारीरिक और मानसिक यातना से गुजरती हैं और कितना संताप उनके रिश्तेदारों को होता है!
जज साहब, सुरक्षा कर्मी, राजनीतिक दल, समाज सेवी संस्थाएं, मीडिया कर्मी, साहित्यकार गण, सभी धर्मावलम्बियों, आम आदमी सबसे मेरी हाथ जोड़कर प्रार्थना है – आप एक बार उस पीड़ित की जगह पर खुद को या अपने परिवार के किसी सदस्य को रखकर सोचिये – आप पर क्या बीतती? आपको खुद जवाब मिल जाएगा… इसके लिए कोई सत्संग या चिंतन शाला की जरूरत नहीं पड़ेगी, आप को अपने आप सत्य के दर्शन हो जायेगे! अपने अन्दर अवश्य झांकिए!
इस भीषण परिस्थिति में ८४ कोसी परिक्रमा करने की जिद और उसे रोकने के लिए पूरी पुलिस को लगा देना कितना वाजिब है, मुझे नहीं मालूम. पर परिक्रमा तो हो कर रहेगी चाहे उसे साधु संत करें या पुलिस तथा मीडिया कर्मी … हम सभी घर बैठे टी वी देखते रहेंगे इस जिज्ञाशा के साथ कि अगले पल क्या होने वाला है.
बहरहाल ८४ कोसी परिक्रमा का हस्र हमलोग देख चुके हैं. खाद्यसुरक्षा विधेयक लोकसभा से पारित हो चूका है और रूपये की गिरावट तीव्र गति से जारी है …जानकर लोग इसे खाद्य सुरक्षा विधेयक एवं अनेक मद में दी गयी सरकारी योगदान(सब्सिडी) को दे रहे हैं. कोई तुरंत लोकसभा भंग कर चुनाव की मांग कर रहा है तो वित्त मंत्री धैर्य धारण करने को कह रहे हैं.
आज (२८.०८.१३ को) श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है … पूरे देश में यह दिन हर्षोल्लास और आस्था पूर्वक मनाया जा रहा है. हम सभी मिलकर भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करें कि पुन: अवतार लेकर विश्व को इस महान संकट की घड़ी से बाहर निकालें. जय श्रीकृष्ण! … जय श्री राधे!

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