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मलाला का मलाल

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तालिबान से ल़डने वाली मलाला को शांति का नोबल पुरस्कार नहीं मिला है. केमिकल हथियारों के खिलाफ लड़ने वाली OPCW नाम की संस्था को इस साल का शांति का नोबल पुरस्कार दिया गया है.
इससे पहले मलाला यूसुफजई ने कहा था कि वह अपनी आदर्श बेनजीर भुट्टो के पदचिह्नों का अनुसरण करते हुए प्रधानमंत्री बनना चाहती है और इस पद का इस्तेमाल अपने देश की सेवा करने के लिए करना चाहती हैं.
मलाला पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बेनजीर को अपने आदर्शों में से एक मानती है और उसका कहना है कि वह उन्हें सबसे ज्यादा पसंद करती हैं. वह भविष्य में अपने देश का नेतृत्व करना चाहती है. राजनीति उसे अपने देश की सेवा करने का मंच मुहैया कराएगी.
उसने कहा कि वह पहले चिकित्सक बनने का सपना देखा करती थी, लेकिन अब वह राजनीति में आना चाहती है.
तालिबान के हमले का शिकार बनने और मौत का सामना करने के बावजूद उसने सपने देखना बंद नहीं किया है और वह शिक्षा के लिए काम करना चाहती है.
मलाला ने कहा,”तालिबान मेरे शरीर को गोली मार सकता है लेकिन वे मेरे सपनों को नहीं मार सकते.” उसने कहा कि तालिबान ने उसे मारने और चुप कराने की कोशिश करके अपनी ‘सबसे बड़ी’ गलती की है.
मलाला का जन्म 1998,में पाकिस्तान के खैबर पख़्तूनख़्वाह प्रान्त के स्वात जिले में हुआ वह मिंगोरा शहर में एक आठवीं कक्षा की छात्रा है। 13 साल की उम्र में ही वह तहरीक-ए-तालिबान शासन के अत्याचारों के बारे में एक छद्म नाम के तहत बीबीसी के लिए ब्लॉगिंग द्वारा स्वात के लोगों में नायिका बन गयी। अंतरराष्ट्रीय बच्चों की वकालत करने वाले समूह किड्स राइट्स फाउंडेशन ने युसुफजई को अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार के लिए प्रत्याशियों में शामिल किया , वह पहली पाकिस्तानी लड़की थी जिसे इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। दक्षिण अफ्रीका के नोबेल पुरस्कार विजेता देस्मुंड टूटू एम्स्टर्डम ने हॉलैंड में एक समारोह के दौरान २०११ के इस नामांकन की घोषणा की, लेकिन युसुफजई यह पुरस्कार नहीं जीत सकी और यह पुरस्कार दक्षिण अफ़रीक़ा की 17 वर्षीय लड़की ने जीत लिया यह पुरस्कार बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था हर साल एक लड़की को देती है। मलाला ने तालिबान के फरमान के बावजूद लड़कियों को शिक्षित करने का अभियान चला रखा है। तालिबान आतंकी इसी बात से नाराज होकर उसे अपनी हिट लिस्ट में ले चुके थे। ९ अक्टूबर २०१२ में, मंगलवार को दिन में करीब सवा 12 बजे स्वात घाटी के कस्बे मिंगोरा में स्कूल से लौटते वक्त उस पर आतंकियों ने हमला किया था। इस हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने ली।

मलाला युसुफ़ज़ई मिंगोरा, जो स्वात का मुख्य शहर है, में रहती है। मिंगोरा पर तालिबान ने मार्च २००९ से मई २००९ तक कब्जा कर रखा था, जब तक की पाकिस्तानी सेना ने क्षेत्र का नियंत्रण हासिल करने के लिए अभियान शुरू किया। संघर्ष के दौरान वह छद्म नाम “गुल मकई” के तहत बीबीसी के लिए एक डायरी लिखी, जिसमें उसने स्वात में तालिबान के कुकृत्यों का वर्णन किया था.११ साल की उम्र में ही मलाला ने डायरी लिखनी शुरू कर दी थी। वर्ष २००९ में बीबीसी ऊर्द के लिए डायरी लिख मलाला पहली बार दुनिया की नजर में आई थी। गुल मकई नाम से मलाला ने अपने दर्द को डायरी में बयां किया। डायरी लिखने की शौकीन मलाला ने अपनी डायरी में लिखा था, ‘आज स्कूल का आखिरी दिन था इसलिए हमने मैदान पर कुछ ज्यादा देर खेलने का फ़ैसला किया। मेरा मानना है कि एक दिन स्कूल खुलेगा लेकिन जाते समय मैंने स्कूल की इमारत को इस तरह देखा जैसे मैं यहां फिर कभी नहीं आऊंगी।’ जब स्वात में तालिबान का आतंक कम हुआ तो मलाला की पहचान दुनिया के सामने आई और उसे बहादुरी के लिए अवार्ड से नवाजा गया। इसी के साथ वह इंटरनेशनल चिल्डेन पीस अवार्ड के लिए भी नामित हुई। मलाला ने ब्लॉग और मीडिया में तालिबान की ज्यादतियों के बारे में जब से लिखना शुरू किया तब से उसे कई बार धमकियां मिलीं। मलाला ने तालिबान के कट्टर फरमानों से जुड़ी दर्दनाक दास्तानों को महज ११ साल की उम्र में अपनी कलम के जरिए लोगों के सामने लाने का काम किया था। मलाला उन पीड़ित लड़कियों में से है जो तालिबान के फरमान के कारण लंबे समय तक स्कूल जाने से वंचित रहीं। तीन साल पहले स्वात घाटी में तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी थी। लड़कियों को टीवी कार्यक्रम देखने की भी मनाही थी। स्वात घाटी में तालिबानियों का कब्जा था और स्कूल से लेकर कई चीजों पर पाबंदी थी। मलाला भी इसकी शिकार हुई। लेकिन अपनी डायरी के माध्यम से मलाला ने क्षेत्र के लोगों को न सिर्फ जागरुक किया बल्कि तालिबान के खिलाफ खड़ा भी किया। तालिबान ने वर्ष २००७ में स्वात को अपने कब्जे में ले लिया था। और लगातार कब्जे में रखा। तालिबानियों ने लड़कियों के स्कूल बंद कर दिए थे। कार में म्यूजिक से लेकर सड़क पर खेलने तक पर पाबंदी लगा दी गई थी। उस दौर के अपने अनुभवों के आधार पर इस लड़की ने बीबीसी उर्दू सेवा के लिए जनवरी, २००९ में एक डायरी लिखी थी। इसमें उसने जिक्र किया था कि टीवी देखने पर रोक के चलते वह अपना पसंदीदा भारतीय सीरियल राजा की आएगी बारात नहीं देख पाती थी।
अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में शांति को बढ़ावा देने के लिए उसे साहसी और उत्कृष्ट सेवाओं के लिए, उसे पहली बार 19 दिसम्बर 2011 को पाकिस्तानी सरकार द्वारा ‘पाकिस्तान का पहला युवाओं के लिए राष्ट्रीय शांति पुरस्कार मलाला युसुफजई को मिला था। मीडिया के सामने बाद में बोलते हुए,उसने शिक्षा पर केन्द्रित एक राजनितिक दल बनाने का इरादा रखा। सरकारी गर्ल्स सेकेंडरी स्कूल, मिशन रोड, को तुरंत उसके सम्मान में मलाला युसुफजई सरकारी गर्ल्स सेकेंडरी स्कूल नाम दिया गया। वर्ष 2009 में न्यूयार्क टाइम्स ने मलाला पर एक फिल्म भी बनाई थी। स्वात में तालिबान का आतंक और महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध विषय पर बनी इस फिल्म के दौरान मलाला खुद को रोक नहीं पाई और कैमरे के सामने ही रोने लगी। मलाला डॉक्टर बनने का सपना देख रही थी और तालिबानियों ने उसे अपना निशाना बना दिया। उस दौरान दो सौ लड़कियों के स्कूल को तालिबान से ढहा दिया था। वर्ष 2009 में तालिबान ने साफ कहा था कि 15 जनवरी के बाद एक भी लड़की स्कूल नहीं जाएगी। यदि कोई इस फतवे को मानने से इंकार करता है तो अपनी मौत के लिए वह खुद जिम्मेदार होगी।

नोबेल पुरस्कारों के एलान से एक दिन पहले ही मलाला युसुफजई को यूरोपीय संघ के प्रतिष्ठित सखारोव मानवाधिकार पुरस्कार से सम्मानित करने का एलान किया गया. यूरोपीय संसद के सदस्य इस पुरस्कार का विजेता वोटिंग से तय करते हैं.

हालांकि इस पुरस्कार के मिलने के बाद मलाला को नोबेल मिलने की संभावना के और कमजोर पड़ने की बात कही जा रही थी. नोबेल पुरस्कारों के लिए इस साल रिकॉर्ड 259 नामांकन हुए हैं, जिनमें बताया जाता है कि पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई का नाम भी शामिल है, जिसे तालिबान ने पिछले साल गोली मार दी थी. हालांकि बाद में पाकिस्तान के सैनिक अस्पताल और ब्रिटेन में इलाज के बाद वह चंगी है.
शांति पुरस्कारों और दूसरे नोबेल पुरस्कारों के लिए नामांकन का काम जनवरी में ही पूरा हो जाता है, लिहाजा इसके बाद के नामों पर चर्चा नहीं की जाती. ओस्लो को पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रमुख क्रिस्टियान बर्ग हार्पविकेन ने हालांकि अपनी अलग सूची बनाई है, जिसमें पहले नाम पर मलाला का नाम है. यह सूची उनकी वेबसाइट पर भी है. हार्पविकेन का कहना है, “वह सिर्फ लड़कियों और महिला शिक्षा और सुरक्षा की पहचान नहीं बनी है, बल्कि आतंकवाद और दबाव के खिलाफ लड़ने की प्रतीक भी बन चुकी है.”
तहरीके तालिबान पाकिस्तान ने चेतावनी दी है कि किशोरी मानवाधिकार कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई की किताब ‘‘आई एम मलाला’’ बिक्री करते पाये गए लोगों को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.

मौका मिलने पर मलाला पर हमले की शपथ लेने वाले तालिबान ने दावा किया है कि उसने वीरता का कोई काम नहीं किया है बल्कि अपने धर्म इस्लाम को धर्मनिरपेक्षता से बदल लिया है और इसके लिए उसे पुरस्कृत किया जा रहा है.
मलाला यूसुफजई ने अब तक जो हासिल किया है, वह सिर्फ वही कर सकती थी। और आने वाले दिनों में वह जो कुछ पाना चाहती हैं, उन्हें भी दोहराया न जा सकेगा। क्योंकि यह वाकई एक अजूबा है। मलाला के लफ्ज में वह जादुई तासीर है, जो सीधे लोगों के भीतर उतर जाती है। और यह नैतिक बल पाने के लिए इस बच्ची ने बहुत दर्द सहा है। १२.जुलाई २०१३ शुक्रवार को मलाला ने अपना सोलहवां जन्मदिन संयुक्त राष्ट्र में मनाया। इस वैश्विक संस्था में दुनिया भर के नुमाइंदों से रूबरू मलाला ने बुलंदी के साथ अपनी बात रखी और संसार के तमाम बच्चों को मुफ्त तालीम देने की पुरजोर अपील की। मलाला को संयुक्त राष्ट्र के मुख्य चैंबर में उस कुरसी पर बिठाया गया, जो आम तौर पर किसी मुल्क के सदर या वजीर-ए-आजम को दी जाती है। जिस वक्त संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून मलाला को ‘आवर चैंपियन, आवर हीरो’ जैसे अल्फाज से नवाज रहे थे, वह खामोशी से उन्हें सुन रही थी। पर जब उनके बोलने की बारी आई, तो मलाला ने कहा, ‘दहशतगर्दो ने सोचा कि वे हमारे इरादे को बदल देंगे, हमारी मंजिल हमसे छीन लेंगे, लेकिन मेरी जिंदगी में कुछ भी नहीं बदला बजाय इसके कि मेरे भीतर की कमजोरियों, खौफ व हताशा का खात्मा हो गया और उनकी जगह ताकत, मजबूती और दिलेरी ने जन्म लिया है।’
मलाला एक बहादुर लडकी है और वह किसी तालिबान की चेतावनी क्या गोलियों की भी परवाह नहीं करती! ऐसी लडकी को हर जगह अपेक्षित सम्मान मिलना ही चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र ने उसका सोलहवां जन्म दिन मनाया और इस दिन यानी १२ जुलाई को मलाला दिवस के रूप में घोषित किया! यह पाकिस्तान में जन्मी किसी भी लड़की के लिए गर्व की बात है. यह सही है कि इस्लामिक देशों में महिलाओं को दबाकर रक्खा जाता है. बेनजीर भुट्टो और वर्तमान में हिना खर उन सबमे अलग है पर भरता में तो नारियों की पूजा की जाती है ऐसा हमारे धर्म शास्त्र कहते हैं और अभी नवरात्रि में दुर्गा नौ रूपों की पूजा भी की जाती है अंतीं दिन नौ कन्याओं को पूजा जाता है पर उसके बाद क्या हम हर बालिका, कन्या, किशोरी, महिला को उसी दृष्टि से देखते हैं. हमारे देश में भी लक्ष्मीबाई, इंदिरा गाँधी, मेधा पाटेकर, कल्पना चावला, ममता बनर्जी आदि वीर महिलाएं है, हम सबको उनका और उन जैसी महिलाओं को सम्मान करना ही चाहिए बल्कि बलात्कार के खिलाफ लड़नेवाली का भी यथोचित सम्मान किया जाना चाहिए! मलाला को भी इस बात का मलाल नहीं होना चैये कि उसे शांति का नोबल पुरस्कार नहीं मिला …अभी बहुत समय है उसे बहुत सारे पुरस्कार का हकदार बनाने के लिए!

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