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आज गजोधर भाई बड़े शांत और गंभीर दिख रहे थे. चाय की पहली चुस्की के साथ ही वे बोल उठे – “आप किसी डांस सिखाने वाले को जानते हैं?”
‘हाँ हाँ क्यों नहीं . सरोज खान हैं न, वे तो अपनी दुकान अपने शहर में भी खोल चुकी हैं, जाने माने लोग वहां जाते हैं, नृत्य सीखने.” मैंने चाय की चुस्की लेते हुए कहा.
“मैं उतनी बड़ी डांस डिरेक्टर की बात नहीं कर रहा … छोटे मोटे डांस मास्टर, जो एकाध फ़िल्मी गीत पर नाचना सिखा दे.”
“हाँ, वैसे भी अपना बच्चा लोग, अपने क्लब में शाम को प्रैक्टिश करते हैं, एक मास्टर जी वहां भी आते हैं सिखाने के लिए”…
“अरे सिंह बाबु, आप नहीं समझ रहे हैं .. मुझे अकेले में डांस सीखना है, जो सिर्फ मुझे सिखाये” … चाय की चुस्की लेते हुए मैं हंस पड़ा ..वो तो अच्छा हुआ चाय का कोई हिस्सा मुंह से बाहर न निकला, नहीं तो गजोधर भाई के ऊपर ही गिरता और वे बेवजह नाराज हो जाते!
मैंने पूछा – “हुआ क्या है ..आप कभी-कभी काहे इस तरह की बात करने लगते हैं कि आदमी आपके ऊपर हँसे.”
गजोधर भाई गंभीर बने रहे … मैंने ही पुन: उन्हें झक झोड़ा – “इस उम्र में डांस सीखेंगे आप? कही कमर लचक गयी तो कमर दर्द से छुटकारा न मिलेगा. अगर सीखना ही है तो बाबा रामदेव का कुछ आसन सीखिए… उनके साथ टी वी पर देखते हुए उछल-कूद करिए … आपके स्वास्थ्य के लिए ठीक रहेगा.”
“वो सब तो बाद में भी कर लेंगे पर अभी हमें तो डांस ही सीखना है … आप किसी ऐसे आदमी का पता बताइए जो हमें किसी एक फ़िल्मी गाने पर नाचना सिखा दे और वह गाना लोकप्रिय हो, या आजकल खूब चल रहा हो.”
मुझे दाल में कुछ काला नजर आया और मैंने भी ठान लिया कि गजोधर भाई जो कुछ छिपाना चाह रहे हैं, वह हम उन्ही के मुख से जानकर ही रहेंगे.
मैंने पूछा – “आप लगता है, सनक गए हैं, या पत्नी से किसी बात को लेकर झगडा हुआ है?”
“सिंह बाबु, हम आपसे कोई बात छिपाते नहीं हैं, पर मुझे इस बार बताते हुए थोडा शर्म महसूस हो रही है, इसीलिये मैं थोडा हिचक रहा था… अब मैं सब बात खोलकर बता ही देता हूँ.
वो जो अपना नया बॉस नहीं आया है, उसे म्यूजिक-डांस आदि का बहुत शौक है – ऊ अपना मिशरा नहीं है, एक ठो गेट-टूगेदर में थोडा कमर क्या लचका दिया, उसको तुरंत प्रोमोसन मिल गया….. इसके पहले वाला बॉस सिगरेट पीता था, ऊ यादव ससुरा बाजार से खैनी खरीद कर सिगरेट का पेपर के साथ जा के बॉस को यह कहकर दिया कि यह उसके गाँव छपरा के खेत का खैनी है, उसके बाबूजी ने बड़े प्यार से उपजाया है और खासकर आपके लिए उन्होंने चाचाजी के हाथ से भिजवाया है. बॉस ने तुरंत उसको डबल इन्क्रीमेंट का सिफारिश कर दिया.”
“उससे पहले वाला बॉस साईं बाबा का भगत था तो सभी लोग उनको साईं बाबा का फोटो और मूर्ति भेंट में देने लगा… और जब भी छुट्टी में जाना हो, तो कहता कि सर, हम साईं बाबा का दर्शन करने के लिए शिरडी जा रहे हैं, तो तुरंत उसको छुट्टी भी मिल जाता था.”
“उससे पहले वाला बॉस पाण्डेय जी शुद्ध कांग्रेसी थे और अपने ऑफिस में गाँधी जी की फोटो रखते थे … फिर क्या सभी लोग अपने अपने ऑफिस में गाँधी जी का, नेहरु जी का और इंदिरा जी का भी फोटो रखने लगा”…..
“दिक्कत तो तब हुई जब पाण्डेय जी के ही समकक्ष एक और उपाध्याय जी थे, जो जन्म से ही जनसंघी थे उनके आदर्श थे – पंडित दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी वो गाँधी जी को देखना भी नहीं कहते थे. लेकिन अपना चौबे जो है न, बड़ा होशियार निकला वो एक ही फ्रेम में एक तरफ गाँधी जी और दुसरे तरफ पंडित दीनदयाल का फोटो लगाकर रखता. जब जिस बॉस को आने का खबर मिलता उसके पसंद का फोटो को सामने कर देता था…. सब इसी तरह से अपने बॉस को खुश करते रहे और हम अपना काम पर ध्यान देते रहे. तो हमारा आज तक न कोई प्रोमोसन हुआ न ही डबल इन्क्रीमेंट ही मिला. पर इस बार मैं भी चाहता हूँ कि अपने डांस का वीडिओ बनाकर बॉस को भेंट कर दूं … हो सकता है खुश होकर डबल इन्क्रीमेंट ही दे दे!”
अब मुझे पूरी बात समझ में आयी गजोधर भाई की असली मंशा क्या है. … मैंने भी देखा है, अपने सहकर्मियों को बॉस की बात में हाँ में हाँ मिलाते हुए,… गाली खाकर भी मुस्कुराते हुए.
पहले हमलोग कुछ पाने के लिए भगवान से प्रार्थना करते थे, आजकल अपने बॉस की पूजा करते हैं. बॉस खुश तो सब खुश. अब तो बॉस को खुश करने के बहुत सारे तरीकों का इजाद हो गया है. हाँ हमें मालूम होना चाहिए कि बॉस को क्या पसंद है.
बंगला उपन्यासकार शंकर ने अपनी पुस्तक में लिखा है – एक बॉस(अधिकारी) बहुत ही सच्चरित्र और ईमानदार था. वह रिश्वत नहीं लेता था, शराब का सेवन नहीं करता था. परस्त्रीगमन तो वह सपने में भी नहीं सोच सकता था. पर ठीकेदार को तो काम निकालना होता है…. पता चला, यह बॉस बालाजी का परम भक्त था. … बस फिर क्या था. उस ठीकेदार ने एक सैलून में जाकर अपना सर मुड़वाया और एक सुनार से बालाजी की पीतल की मूर्ति बनवाई और उसे लेकर बॉस (अधिकारी) के घर पहुँच गया – कहने लगा – “महोदय, अभी अभी मैं तिरुपति से ही आ रहा हूँ, मुझे बालाजी की यह मूर्ति बहुत पसंद आयी तो मैंने एक जोड़ी खरीद ली. एक अपने घर के लिए एक आपके लिए. अब अपने इष्टदेव की मूर्ति लेने से कोई भला आदमी कैसे इनकार कर सकता है. ठीकेदार उनको भा गया और और ठीकेदार का काम सुगम हो गया!
तो प्रेम से बोलिए – मेरे बॉस महाराज की ….. जय!
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