Menu
blogid : 3428 postid : 639091

जिसने कच्छ नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा!

jls
jls
  • 457 Posts
  • 7538 Comments

चन्द्रगुप्त और चाणक्य
चन्द्रगुप्त मौर्य पर अन्यान्य आलेख मौजूद है. इतिहास में भी बहुत बातें विवादित हैं, पर जो सच्चाई सबको मालूम है – वह यह कि महानंद बहुत धनी और घमंडी राजा था. चाणक्य उसकी दान-संघ का अध्यक्ष था. चाणक्य महानंद के मंत्री शकटार का ही चयन था. शकटार तीक्ष्ण बुद्धि का था, पर घमंडी नन्द ने उसके किसी चतुर बात(राज्य हित की बात) से ही रुष्ट होकर, परिवार सहित उसे कैद में डाल दिया था. कैद में भी उसकी तीक्ष्ण बुद्धि से प्रेरित होकर महानंद पुन: उसे मत्रीपद पर नियुक्त कर दिया.
शकटार के मन में नन्द के प्रति घृणा थी और नन्द को काले कलूटे लोगों से चिढ़ थी. शकटार ने कूटिनीति के तहत चाणक्य (जो कि काले ब्रह्मण थे) को नन्द की सभा में उच्चासन पर बैठा दिया, जिसे देखते ही नन्द चिढ़ गया और उसे गद्दी से उतार दिया. चाणक्य ने उसी समय अपनी चोटी (शिखा) को खोलते हुए कहा था. “जबतक वह नन्द वंश का नाश नहीं कर लेता, अपनी शिखा नही बांधेगा.”
चाणक्य अन्यमनस्क से चले जा रहे थे… तभी देखा कि एक लड़का जो पशुओं की चरवाही करते हुए राजा बनने का अभिनय कर रहा था. दूसरे चरवाहे उसकी प्रजा बने हुए थे. चाणक्य को कौतूहल हुआ. वे राजा बने हुए चन्द्रगुप्त के पास जाकर बोलते हैं – “राजन हमें दूध पीने के लिए गऊ चाहिए.” राजा बने हुए बालक चन्द्रगुप्त ने कहा- “वो देखिये, सामने गौएँ चर रही हैं. आप उनमे से जितनी चाहे अपनी पसंद से ले लें.”
चाणक्य ने इस बालक में राजा की छवि देखी और उसे राजा बनाने के विचार से अपने साथ में ले लिया. उसे युद्ध कौशल सीखने के लिए सिकंदर की सेना में भर्ती भी करवा दिया. बाद में यही चन्द्रगुप्त ने नन्द वंश को समाप्त किया और मगध का राजा बना और पाटलिपुत्र उसकी राजधानी. उसने अपने राज्य का विस्तार भी किया और चाणक्य को अपना मंत्री/मुख्य सलाहकार बनाकर रक्खा.
चीनी यात्री फाहियान के अनुसार चन्द्रगुप्त के राज में सभी सुखी थे और अपना वाजिब कर राजा को अवश्य चुकाते थे. राजा भी प्रजा के सब सुख सुविधा का ख्याल रखते थे. एक दिन फाहियान चाणक्य से मिलने आया. वह चन्द्रगुप्त के राज्य की खुशहाली का राज जानना चाहता था.
चाणक्य के मेज पर दो मोमबत्तियां थी जिसमे एक जल रही थी. वह मोमबत्ती के प्रकाश में कुछ लिखने का काम कर रहे थे. फाहियान के आने पर उन्होंने जलती हुई मोमबत्ती को बुझा दिया और दूसरी जला ली. फाहियान ने पूछा – “महाराज, आपने ऐसा क्यों किया?”
चाणक्य ने जवाब दिया – “पहली मोमबत्ती राजा के कोष से प्राप्त हुई थी, जिसे जलाकर मैं राजकाज कर रहा था. अब मैं आपसे व्यक्तिगत बात कर रहा हूँ, इसलिए अपनी व्यक्तिगत मोमबती जला ली.”
फाहियान ने कहा – मुझे जवाब मिल गया. जहाँ आपके जैसे ईमानदार मंत्री हों, वहां की प्रजा कैसे खुशहाल न होगी?
*****
इस कथा का मूल भाव हमारे पाठक समझ रहे होंगे. एक और कहानी चन्द्रगुप्त के बारे में मशहूर है. वह यह कि रोटी को उसके किनारे से ही खाना चाहिए और तभी पूरी रोटी अपने अन्दर होगी.
गोधरा वाला गुजरात…. गुजरात भारत के एक किनारे पर है, आंध्रा दूसरे किनारे पर. बिहार, महाराष्ट, पंजाब, राजस्थान, कर्नाटका, चेन्नई, उत्तरांचल, ये सभी किनारे के राज्य हैं. पाटन(गुजरात) से पटना का सफ़र, पुणे(महराष्ट्र) से पटना…. मकसद जीतना है हमें.
भाजपा के तरफ से २०१४ के लिए प्रधान मंत्री के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा जा रहा है. पर जो हवा के रुख को अपने अनुकूल बनाने की क्षमता रखता हो. उसके बढ़ते पराक्रम को रोक पाना शायद अब किसी के लिए संभव नहीं है. भले ही हवा ब्लोअर से फेंकी जा रही हो (बकौल नितीश कुमार), पर अब कारवां निकल चुका है, लोग मिलते जा रहे हैं, विरोधी अन्दर के या बाहर के सभी एक एक कर धराशायी होते जा रहे हैं. साम, दाम, दंड, भेद… हर कला को अपनाते हुए, आडवाणी, सुषमा स्वराज, यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा, अरुण जेटली आदि सभी एक एक कर घुटने टेकते हुए नजर आए.
१५ अगस्त को लालन से लालकिला को जवाब, छत्तीशगढ़ में लालकिले की स्थापना, मध्यप्रदेश में संसद, और झांसी में लक्ष्मीबाई का किला फतह….. विरोधी उनके भाषण में व्याकरणीय(इतिहास. भूगोल की) त्रुटि ढूंढ रहे है और यह मुकद्दर का सिकंदर, अपनी विजय पताका फहराता हुआ ‘अजेय’ बनता जा रहा है.
पहले कांग्रेस मुक्त भारत! फिर सबका (समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के साथ कांग्रेस) सफाया और अब नीतीश का दुर्ग भेदने की तरफ, यह ‘पिछड़े वर्ग का नेता’, ‘चाय बेचने वाला’ ‘दिल्ली का चौकीदार’ बनना चाहता है. आपको कोई आपत्ति? ….यह है आज का चन्द्रगुप्त. इसके पीछे काली दाढ़ी वाला चाणक्य कौन है या कौन कौन है? … देखते जाइए!
लोगों का दिल जीतने के लिए उसकी भाषा में बोलना, उसके बगल में जाकर बैठना, उसके बीच का आदमी बताना, बहुत बड़ा हथियार होता है. लालू ने यह शैली अपनाई थी. इंदिरा जी ने भी हर प्रदेशों/इलाकों में जाकर वहां का भेष भूषा बनाई थी. कुछ साल पहले सोनिया ने भी ऐसा ही करने का प्रयास किया था. … राहुल कर रहे हैं, ….पर राहुल में वो दमखम नहीं दीखता. उनकी सरकार से लोग परेशान हैं, तंग आ चुके हैं. महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अनाचार मुंह फैलाये हुए है. आज जरूरत है परिवर्तन की और लोग एक बड़े परिवर्तन के रूप में मोदी को आजमाना चाहते हैं.
****
आम आदमी पार्टी दिल्ली तक सीमित है, चंद लोगों की पार्टी है अभी. अभी समय लगेगा उसे अपनी पहचान सुनिश्चित करने में. आखिर प्रचार-प्रसार के लिए धन (दाम) की भी जरूरत होती है. केवल ईमानदारी से राजनीति के दुर्ग को भेदना मुश्किल है. रणनीति तो बनानी पड़ती है.
*****
दिल्ली का रास्ता बिहार से होकर जाता है, चाहे वह महात्मा गाँधी हो, जयप्रकाश नारायण हो, महारथी नरेंद्र मोदी हो. पटना के गांधी मैदान में उन्होंने शुरुआत की, भोजपुरी से, मथिली से और मगही से. मगध के सम्राटों की राजधानी पाटलिपुत्र(आज का पटना).
चंद बम धमाको को फटाखे बता भीड़ को नियंत्रित रखने का जज्बा, भले ही कई गिलास पानी पीकर और पसीने पोंछकर करनी पड़े….और अब उन धमाकों में शहीद हुए लोगों के परिजन से मिलकर, चप्पल उतार जमीन पर शोकाकुल मुद्रा में बैठ, उनके आंसू पोंछते हुए, हिम्मत बढ़ाने की कोशिश. यह मोदी जैसे बड़े दिल वाले का ही काम है. इसी क्रम में उन्होंने पटना के पास के गावों की बदहाली भी तो देख ली. (नितीश बाबु का सुशासन).
****
नितीश बाबू, बकौल गिरिराज सिंह, गाँव की ईर्ष्यालु/झगड़ालू औरतों जैसा गुस्सा ठीक नहीं है. प्रोटोकॉल का तो पालन कीजिये. रातभर आपके सरकारी आवास के सामने ठहरकर, देश का भावी प्रधान मंत्री अब आपके बिहार के गावों में घूमते हुए आपके जन्मस्थान तक भी पहुँच गया.
ब्लोअर की हवा का अहसास कुछ हो रहा है. सभी राष्ट्रीय चैनेल लाइव कवरेज दिखा रहे हैं. और आप हैं कि धनतेरस की झाड़ू से ही खुश दिखने का प्रयास कर रहे हैं.
सरदार पटेल की १८२ मीटर ऊंची ‘एकता की मूर्ति’ के रूप में दुनिया के मानचित्र पर स्थापित करने का सपना, जिसमे भारत के हर ग्रमीणों का योगदान होगा.
जिसने कच्छ नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा!
*****

पटना से वापस रवाना होने से पहले नरेंद्र मोदी ने बिहार वासियों के उसके शांतिपूर्ण माहौल बनाये रखने के लिए उनके धैर्य को नमन किया और आने वाले पर्व दीपावली और छठ के लिए शुभकामना व्यक्त की. पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने ‘दीवाली’ नहीं मनाई…. पहले ही इतने विष्फोट हो चुके हैं, अब तो शांतिपूर्ण बयान जारी करने का माहौल है. इस बीच सुशील मोदी नरेंद्र मोदी के साथ रहे तो श्री गिरिराज सिंह ने बयान जारी करने और बहस करने में प्रमुख भूमिका निभाई. उन्होंने श्री कृष्ण बाबू का उदाहरण देते हुए नितीश बाबू को बहुत अच्छे परामर्श भी दे डाले. नितीश बाबु को ऐसे शुभचिंतक निंदकों के परामर्श पर अवश्य ध्यान देना चाहिए आखिर सत्रह वर्षों का गठबन्धन इस तरह एक ही धक्के में नहीं टूटना चाहिए था.
अभी भी समय है सम्हलने का, आखिर गिर के सम्हलने का नाम ही तो राजनीति की जिन्दगी है.
प्रस्तुति- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh