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तेरह साल का झारखण्ड !

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आज से तेरह साल पहले १५ नवम्बर २००० को बिहार से झाड़खंड इसलिए अलग हुआ था कि इसका समुचित विकास हो और उसका लाभ यहाँ के मूलवासियों को मिले. झाड़खंड या वनांचल इसलिए कि झारखण्ड का छोटानागपुर इलाका वनों से आच्छादित था. इस इलाके का लगभग ३० % भूभाग वनों से आज भी आच्छादित है. इन वनों में शाल, शीशम, देवदार आदि कीमती लकड़ियों के वृक्ष तो हैं ही विभिन्न प्रकार की ऐसी वनस्पतियाँ और फल फूल भी है जो पौष्टिक आहार के साथ औषधि के रूप में भी प्रयोग में लाई जाती हैं. यहाँ के जंगलों में शेर, चीता, भालू, सूअर, हाथी आदि वन्य पशु भी पर्याप्त मात्रा में हैं.
यही नहीं यहाँ की धरती रत्नगर्भा हैं. यहाँ ताम्बा, लोहा, मैंगनीज, अभरख, बॉक्साइट, यूरेनियम, कोयला ग्रेफाइट आदि प्रचुर मात्रा में है. जंगल, पहाड़, नदियों के बीच बीच में मैदानी भूभाग भी है, जहाँ खेती की जाती है, पर पाकृतिक वर्षा के भरोसे.
यहाँ सेल का बोकारो स्टील प्लांट है, तो टाटा घराना का टाटा स्टील के साथ टाटा मोटर्स जैसी बड़ी कम्पनियाँ. बिरला घराने का उषा उद्योग, जिंदल का स्टील और पॉवर प्रोजेक्ट अपना आधुनिक रूप लेने को तैयार है. और भी दुसरे उद्योग घराने यहाँ निवेश करने को सहर्ष तैयार हैं, बशर्ते कि उन्हें राजनीतिक और सामाजिक संरक्षण दिया जाय. यह संरक्षण उन्हें देगा कौन? सरकार ही न!
झारखण्ड का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि यहाँ तेरह साल में नौ मुख्य मंत्री बने और तीन बार राष्ट्रपति शासन लगाये गए. विकास का रास्ता सरकार से होकर गुजरता है और यह विभिन्न संकायों द्वारा आम जनता तक पहुंचता है.
सरकार में मुखिया बने कुछ लोगों के बयान देखे लें-
“भ्रष्टाचार के कारन मुझे नींद नहीं आती”- बाबूलाल मरांडी (पहले मुख्य मंत्री).
“सिस्टम पटरी पर नहीं है” – अर्जुन मुंडा (तीन बार मुख्य मंत्री बने).
“भ्रष्टाचार कैंसर बन गया है” – मधु कोड़ा निर्दलीय मुख्य मंत्री
“रजिस्ट्री कार्यालय में बिना घूस दिये किसी ‘डीड’ की रजिस्ट्री नहीं होती!” – वर्तमान मुख्य मंत्री, हेमंत सोरेन
“जो बी. डी. ओ., सी. ओ. घूस मांगे उसे घेरो” – शिबू सोरेन, दिशोम गुरु.
उसके बाद भी कई राजनीतिक हस्ती नक्सलवाद और अब आतंकवाद को मूल समस्या से जोड़कर देख रही है.
कोई रास्ता या समाधान नहीं बताते न कड़ा कदम ही उठाते दीखते हैं. सबसे बड़ी बात जो मुझे लगती है वे यह नहीं बताते कि भ्रष्टाचार और नक्सलवाद को पनपने, बढ़ने, फलने, फूलने में उनकी क्या भूमिका रही है. बड़ी रैलियों में, तूफानी हवाई दौरों में फंड मैनेजमेंट कौन करता है? झारखण्ड के नेसनल हाई वे (राष्ट्रीय उच्च मार्ग की) दुर्दशा के लिए जिम्मेवार कौन है? विधायकों की खरीद फरोख्त के लिए फंड कहाँ से आते हैं. उनके शाही अंदाज में खर्च के लिए पैसे कहाँ से आते हैं. उद्योगपतियों से आर्थिक दोहन कितना किया जाता है. उन्हें प्रोत्साहन के लिए क्या सुविधा मुहैया कराई जाती है. अनेको पॉवर प्लान्ट निर्माणाधीन अवस्था में, या कोयले की आपूर्ति निश्चित ना करने के कारण बिजली का उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं. झारखण्ड में बिजली की घोर किल्लत है, पर बिजली के उत्पादन और उचित रख रखाव का इंतजाम करने में सरकार तो नाकाम है ही, टाटा या डी वी सी जैसी विद्युत उत्पादन करने वाली संस्थाओं को सहयोग भी नहीं कर रही है. यहाँ के उत्पादित बिजली दुसरे राज्य खरीद रहे हैं, पर झारखण्ड सही मूल्य पर खरीदने को तैयार नहीं दीखती. राज्य विद्युत परिषद् का खस्ता हाल से सभी परिचित भी हैं.
किसानों को सिंचाई, खाद और उन्नत बीज कौन उपलब्ध कराएगा? वन सम्पदा के अनुचित दोहन के लिए या तो माफिया तत्वों को छोड़ दिया गया है या नक्सलियों के लिए अभयारण्य बना दिया गया है. इन सब के लिए सरकार और सरकारी ब्यवस्था ही जिम्मेदार है. झारखण्ड के मूल आदिवासी काफी मिहनती और ईमानदार हैं, जरूरत है उन्हें आप कैसे उपयोग करते हैं, उन्हें रोजगार देकर अपने पैरों पर खड़ा करते हैं या बेरोजगार छोड़कर हथियार उठाने पर मजबूर करते हैं.
१५ नवम्बर से ३० नवम्बर तक झारखण्ड पखवाड़ा मनाये जाने की योजना है. मुख्य समारोह राजधनी रांची में हो रहा है और विभिन्न जिलों के मुख्यालय में, जहाँ मीडिया होगा, नेता होंगे, घोषणाएं होंगी, झंडे बैनर होंगे और होंगे कुछ स्थानीय कलाकार जिन्हें कुछ आत्मसंतोष होगा, पर इस पखवाड़े के बाद ?
रांची में मुख्य कार्यक्रम के दौरान मुख्य मंत्री कई घोषणायें कर चुके हैं. उनमे भूमिहीनों को जमीन, ६५ साल से ऊपर उम्र के लोगों को पेंसन, शिक्षको के साथ अन्य रिक्तियां भी भरी जायेंगी, झारखण्ड आन्दोलन में सक्रिय लोगों के वंशजों को नौकरी आदि आदि है. मुख्यमंत्री के अनुसार झारखण्ड की गाड़ी अभीतक रुकी हुई थी अब चल पड़ी है. … देखा जाय नौजवान मुख्य मंत्री, दिशोम गुरु के सुपुत्र, श्री हेमंत सोरेन जी, आप कुछ नया करते हैं या अखिलेश यादव के तर्ज पर अपनी पिता की छत्रछाया में ही बचे रहना चाहते हैं.
मुख्यमंत्री जी, नेता जी, गुरूजी जरूरत है, दीर्घकालीन योजना बनाए की! समावेशी और समेकित विकास की. शिक्षा की, स्वास्थ्य की, मूलभूत सुविधा के विकास की और सबसे ज्यादा ईमानदार पहल की.
झारखण्ड राज्य के निर्माण और शासन काल में अगर श्री सुदेश महतो की चर्चा ना करें तो यह आलेख अधूरा रहेगा. आजसू पार्टी के ये विधायक ज्यादातर समय सरकार में शामिल रहे हैं, और सुर्ख़ियों में भी रहे हैं. चाहे इनका खेल मंत्री का कार्यकाल रहा हो या इनकी शादी का जश्न, विगत मुंडा सरकार में ये उपमुख्य मंत्री थे. १४ नवम्बर से दिल्ली में हैं और जंतर-मंतर पर अपने समर्थकों के साथ धरना प्रदर्शन कर रहे हैं – झारखण्ड को विशेष राज्य का दर्जा की मांग को लेकर. तो जे वीं एम नेता बाबूलाल मरांडी विशेष राज्य के दर्जे के लिए हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं. जबकि आंकड़े कहते हैं कि केंद्र से प्राप्त राशि का अधिकांश हिस्सा खर्च ही नहीं होता.
नवम्बर का महीना, सर्दी प्रारंभ हो चुकी है… कपड़ों के अभाव में, सर पर छत के अभाव में कितने लोगों की मौत ठंढ में ठिठुरने से होती है, यह भी आनेवाला समय ही बताएगा! जय झारखण्ड!
प्रस्तुति – जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
१५.११.१३

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