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रूपसी, तुम पूर्णिमा की ज्योति पुंज!
लटें घनघोर घन या सघन कुञ्ज!
सुनयने आज तो आँखे लड़ा लो
नयन घट प्रेम की मदिरा पिला दो.
नयन की भंगिमा ये !
धनुर सी सोह भौहें,
ये ग्रीवा सुघर सुन्दर
भटक न जाये कविवर.
रसीले होठ प्यासे,
हंशी लाये कहाँ से ?
तू मन की मोरनी हो
न छेड़ूँ, शेरनी हो!
मेरे मन मीत तुम हो,
समां की गीत तुम हो.
समा जा मेरे दिल में
गिला कुछ हो न दिल में.
ये गेसू को हटा लो
घटा न मुख पे डालो.
ये बेला है प्रणय की
न सोचो अब अनय की.
बहुत प्यासा हूँ अब तक
न पाया अमिय अब तक
अधर रस को सम्हालो.
कटि में बांह डालो.
प्रिये! अब देर न कर
निशा से बैर न कर.
शशि भी छुप गया है!
तिमिर अब छा गया है
जहाँ में तू ही तू है
ये कोयल की ही कू है.
हवा भी थम गयी है,
ये सांसें जम गयी है!
करो संकोच न अब !
ह्रदय में सोच न अब !
न छोड़ो तुम मुझे अब !
न छोडूँ, मैं तुझे अब !
न छोडूँ, मैं तुझे अब !
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