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गर्मी का अभिशाप …

jls
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इस बार अप्रैल के महीने में ही अच्छी गर्मी पड़ रही है. कुलीन के आंगन में एक आम का बहुत बड़ा पेड़ है. इस बार आम में मंजर कम निकले और नए पत्ते काफी निकले. दोपहर के समय आम के पेड़ की छाया कंपाउंड के बाहर मैदान में आ जाती है. कुछ गायें, बकरिया और कुत्ते आकर उस छाया में आराम करते हैं. कुलीन अक्सर उन पशुओं को पानी पिलाता है. बाल्टी में भरकर घर के अंदर से बाहर ले आता है और सभी पशु बारी बारी से पानी पी अपनी प्यास बुझाते हैं.. सभी जानवर कुलीन को देखते ही अपने अपने तरीके से प्यार जताते हैं. कुत्ते तो पहले आकर पूँछ हिलाने लगते हैं, गायें उन्हें देख रम्भाने लगती हैं. और बकरियां में-में करने लगती हैं.
गायों/ पशुओं को पानी पिलाने का सिलसिला कई हफ़्तों तक चला. तभी एक बूढ़ी गाय जो शर्मा जी की थी बीमार पडी और मर गयी. शर्मा जी ने कुछ लोगों को इकठ्ठा किया और बैठक बुलाई. हो न हो यह कुलीन ने पानी में जहर मिला दिया हो, जिससे उनकी गाय मर गयी. फिर क्या था … यह बात जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी … कुछ पंक्तियाँ उन्ही के आधार पर गढ़ी गयी है कृपया अवलोकन करें….

गर्मी का अभिशाप

एक गाय आयी, फिर दूसरी आयी

एक एक करके कुल बीस गायें आयीं

कुछ बकरियां कुछ कुत्ते भी

उग्र गर्मी में सभी को

तलाश थी छाये की.

आम्र का विशाल पेड़

मंजर थे कम जिसमे

पत्ते सुकोमल थे.

विशालकाय पेड़ और शीतल छाया

पशुओं ने इसे आश्रय है बनाया

लगी होगी प्यास इन को

चिंता यह करे कौन

हिन्दुओं की माता है

विश्व दुग्ध पाता है

निकला कुलीन घर से

कूलर नहीं है घर में

गर्मी से व्याकुल हो

गौओं को सहलाता

शीतलता वह पाता

पानी वह ले आया

बाल्टी में भर लाया

गौएँ भी प्यासी थी

छाई उदासी थी

पानी के बर्तन में मुंह उसने दे डाला

अल्पकाल में ही बाल्टी खाली कर डाला

कुलीन को हुई खुशी

भर लाया फिर पानी

नहीं कोई उसका सानी

सिलसिला चलता रहा

कुलीन पानी भरता रहा

कुदरत का कहर भी

आसमां से झरता रहा.

एक गाय बूढ़ी थी,

हाँ, वो शर्मा जी की थी.

तपिश वह न सह पाई

शाम तक न उठ पाई.

शर्मा जी घबराये

बेटे को साथ लाये

हुआ क्या गाय माता ?

कुछ समझ नहीं आता

एक युवक तब आया

कान में कुछ फरमाया

गड़बड़ घोटाला है

जहर किसी ने डाला है

गाय का दुश्मन है कौन ?

साधे सभी थे मौन

पंचायत बैठ गयी

राय सबों से ली गयी

कुलीन को बुलाया गया

क्यों उसने ऐसा किया

कुलीन हो गया आवाक

क्या कह रहे हैं आप?

क्यों करूंगा मैं ऐसा

नहीं मेरे पास पैसा

सजा तो भुगतनी होगी

पंचों की सुननी होगी

पाप गोहत्या का

मिटेगा नहीं ऐसे

गोमूत्र पान करो

गंगा स्नान करो

ब्रह्मभोज करवाओ

पाप अपनी धुलवाओ

यह समाज कैसा है

न्याय क्यों ऐसा है

पानी जो पिलाता है

सजा वही पाता है

गाय को खुला जो छोड़े

दूध सिर्फ पाता है

गाय को खुला जो छोड़े

दूध सिर्फ पाता है

–    जवाहर लाल सिंह

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