- 457 Posts
- 7538 Comments
(तम्बाकू निषेध दिवश पर संशोधित और पुन: प्रकाशित)
मैं शाम को अपने घर पर बैठा टी वी देख रहा था. टी वी के एक न्यूज़ चैनल पर सामयिक विषयों पर गरमा गरम बहस चल रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो गजोधर भाई थे.
मैने कहा – “आइये !”
उन्होंने कहा – “आज यहाँ नहीं बैठूंगा. चलिए कहीं बाहर चलते हैं.”
मैंने कहा- “ठीक है चलेंगे. आइये पहले चाय तो पी लें. फिर चलते हैं.”
उन्होंने कहा – “चलिए न बाहर ही चाय पीते हैं.”
मैं उनके साथ हो लिया. चाय के दुकान जिसमे अक्सर हमलोग बैठकर चाय पीते थे, वहाँ न रुक कर गजोधर भाई के साथ और आगे बढ़ गया. मैंने पूछा – “कहाँ चाय पीयेंगे?”
उन्होंने कहा- “चलिए न आज आपको नई जगह ले चलते हैं.”
पैदल चलते चलते हमलोग एक रेस्तरां के पास रुके. गजोधर भाई ने कहा- “आइये”.
मैं भी उनके साथ रेस्तरां में घुस गया. रेस्तरां में मद्धिम लाइट जल रही थी. हमलोग एक खाली टेबुल देखकर उसी के पास बैठ गए.
वेटर आया पानी का ग्लास दे गया और आर्डर के लिए पूछने लगा. गजोधर भाई ने इशारे से कुछ समझाया और कहा दो जगह ले आओ. और एक जगह ही कुछ भुने हुए काजू, बादाम ले आना.
थोड़ी देर में वेटर आया और काजू बादाम दे गया. गजोधर भाई ने मुझसे कहा – “लीजिए!”
मैंने भी चम्मच से उठाकर काजू बादाम मुंह में डाला. थोड़ी ही देर में वेटर दो ग्लास में कुछ पीला-नारंगी सा द्रवीय पदार्थ, एक पात्र में आईस क्यूब और एक सोडा की बोतल रख गया. गजोधर भाई की आंखे चमकी और वे मेरी तरफ देखते हुए बोले – “लीजिए सिंह, साहब यह मेरी प्रोमोसन की खुशी में”.
“आपका प्रोमोसन हुआ है, यह तो मुझे मालूम है! पर मिठाई की जगह यह क्या है? और आप तो शराब के घोर विरोधी थे.”
“अरे सिंह साहब, आजकल मिठाई कौन खाता है? जिसे देखो वह सुगर का मरीज बना हुआ है. सब आजकल इसी से जश्न मनाते हैं. जब मेरा प्रोमोसन हुआ मेरे बॉस की खास फरमाईश थी. मजबूरन कुछ और अधिकारियों के साथ मुझे भी साथ देना पड़ा. शुरुआती ट्रेनिंग के दौरान भी शराब पीना, कांटे चम्मच से खाना कैसे खाया जाता है, वह भी सिखाया गया. उसके बाद पहली अप्रैल को….फिर ऐसे ही किसी और के प्रोमोसन में …. और अब आदत सी हो गयी है …. वीकेंड में अगर कुछ नहीं होता है, तो लगता है कुछ खाली खाली सा….मजा ही नहीं आता…..
खैर आपको ज्यादा जोर नहीं डालूँगा, इच्छा है तो, मेरी खुशी के लिए थोड़ा सा ले लीजिए … नहीं तो बियर मंगवा देता हूँ ….आप बियर ले लीजिए.”
मैंने कहा – “आपकी खुशी के लिए कोल्ड ड्रिंक्स ले लूँगा या कोई जूस अगर यहाँ मिलती हो तो.”
फिर उन्होंने बेयरे को आवाज दी और जूस लाने को कहा. मैंने जूस ली और गजोधर भाई मेरे हिस्से की शराब भी गटक गए. पीते पीते ही उन्होंने कहा – “सिंह साहब, ऑफिसर बनना आज के माहौल में सिरदर्द है. काम से ज्यादा बॉस की जी हजूरी करनी पड़ती है. अपने काम के अलावा बॉस का काम भी करना पडता है. डेली घर पहुचने में लेट … बीबी, बच्चों को इधर समय भी नहीं दे पा रहा हूँ. साप्ताहिक अवकाश के दिन भी अगर सपरिवार कही बाहर निकलने का प्रोग्राम हुआ, तो बॉस का बुलावा आ जाता है. इसीलिये अब तो समझिए टेंसन दूर करने के लिए ही पीता हूँ. इसे लेने का बाद अच्छी नीद आ जाती है. फिर से तरोताजा होकर काम में लग जाते हैं.”…. इस तरह गजोधर भाई बातें करते रहे और नयी नयी पैग लेते गए. मैं तो बोर हो रहा था, फिर भी दोस्ती की है तो निभानी तो पड़ेगी ही …
अब गजोधर भाई आपे में नहीं थे….. “मेरी बीबी न जाने अपने को क्या समझती है ..दिन रात अपने मायके का ही गुणगान करती रहती है ..उसका भाई, उसका बाप से हम क्या मांगने जाते हैं? अपना कमाते हैं, अपना खाते हैं….. हर मौके पर उसे नई साड़ी लाकर देते हैं….. जन्म दिन और शादी के सालगिरह पर कुछ गहने भी बनवा देता हूँ….. अब कार के लिए जिद कर रही है. वह भी ले दूंगा. जरा पहले का ‘लोन’ ‘किलियर’ होने दीजिए. ‘साले’ की ऐसी की तैसी…..”
मुझे लगा, दूसरे टेबुल वाले क्या सोच रहे होंगे … अब मैंने बेयरे को टोका और बिल लाने को कहा – बेयरा बिल लेकर आया. बिल चुकाकर गजोधर भाई को रिक्शे में बिठा, उनके घर तक ले आया. दरवाज खोलने मिसेज गजोधर ही आई थी. देखते ही बोली – “आज फिर पीकर आया है न…. हर दिन का यही हाल हो गया है, मै तो परेशान हूँ इनसे, क्यों ये अधिकारी बने? कर्मचारी ही ठीक थे”.
मैंने मिसेज गजोधर से कहा – “आज इन्हें आराम करने दीजिये … कल मैं शाम को आऊँगा और गजोधर भाई से बात करूंगा”. इतना कह मैं अपने घर वापस आ गया और सोचता रहा शराब का घोर विरोधी शराबी कैसे बन गया?
दुसरे दिन शाम को मैं गजोधर भाई के घर था. गजोधर भाई नजरें नीची किये हुए बैठे थे. उनकी मिसेज चाय बनाने किचेन में जा चुकी थी.
बात मैंने ही शुरू की – “गजोधर भाई, आपको शराब की लत कैसे लग गयी आप तो शराब के घोर विरोधी थे … आप ही कहा करते थे …. सभी बुराइयों की जड़ शराब ही है.”
अब गजोधर भाई शुरू हुए – “ऑफिसर बनने के बाद दो सप्ताह की ट्रेनिंग में हम सबको मैनेजमेंट सेंटर में रखा गया, वहां ऑफिसर के तौर तरीके सिखाये गए, कैसे खड़ा होना है, अपने नीचे वाले सहकर्मी से कैसे बात करनी है, कैसे गंभीर रहने की आदत डालनी है, चाय कैसे पीनी है, कांटा-चम्मच कैसे पकड़ा जाता है, फिर शराब कैसे पी जाती है … आदि आदि … और इसी क्रम में मैंने भी सबके आग्रह पर एक पैग पहली बार लिया … मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था … तभी एक सह प्रशिक्षु ने ताना मारा – “अरे भाई गजोधर ऊपर जाओगे तो चित्रगुप्त महोदय पूछेंगे – ‘तुम्हे संसार में भेजा था, लाइफ एन्जॉय करने को … तुमने एन्जॉय किया?’ तो क्या जवाब दोगे? अरे यार, चार दिनों की जिन्दगी है, खाओ पियो मस्त रहो, कल किसने देखा है?” … बस मैं ताव में आ गया… वहां तो लड़कियां और महिलाएं भी पी रही थी …. एक पैग लेने के बाद मुझे तो काफी कड़वा लगा … लगा, … मेरी गर्दन ही मरोड़ी जा रही … मैंने न करनी चाही थी, पर उसी सह प्रशिक्षु दोस्त ने कहा- ‘अभी नहीं, एक पैग और लो और ऑंखें बंद कर देखो कैसे मजा आता है!’… बस फिर क्या मैं दूसरी दुनिया में था और एक अनजाने से अद्भुत आनंद की अनुभूति करने लगा … अभी तक जो हरकतें करने में मुझे लज्जा महसूस होती थी वह भी करने लगा … डांसिंग फ्लोर पर सबके साथ मैं भी झूमने लगा …”
मैंने पुछा – “क्या वहां कोई ऐसा ब्यक्ति नहीं था, जो शराब नहीं ले रहा था?”
गजोधर भाई – “थे, कई ऐसे लोग थे जो शराब की जगह ‘फ्रूट जूस’ ले रहे थे ..
मैं – “तो इसका मतलब आपकी कमजोरी ने आपको इस गर्त में ढकेला… जूस पीने वाले आपसे बहादुर निकले…..आपके अन्दर ये ख्वाब मचल रहा होगा कि पीकर देखें, यहाँ तो कोई देख भी नहीं रहा है .. नहीं ?”
गजोधर भाई ने सहमती व्यक्त की.
तबतक भाभी जी (मिसेज गजोधर) चाय के साथ कुछ नमकीन लेकर आ गयी थी. हमलोगों ने एक साथ बैठकर चाय पी, कुछ इधर उधरकी बात चीत की.
चाय पी लेने के बाद मैंने गजोधर भाई से कहा- “चलिए पार्क में चलते हैं वहां कुछ और बातें करेंगे.”
हमदोनो पार्क में आ गए ..
मैंने कहा – “गजोधर भाई, प्रकृति में ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिन्हें हम ध्यान से नहीं देखते नहीं महसूस करते हैं….देखिये इस गुलाब के फूल को! काँटों के बीच सबसे ऊपर कैसे मुस्कुरा रहा है, देखियें इन तितलियों को, कैसे मचल रही है! पक्षियों को देखिये, कैसे आकाश की ऊँचाई को नाप रहे हैं. बड़े बड़े वृक्षों को देखिये – ये भीषण गर्मी में भी तन कर खड़े रहते हैं और पथिकों को छाया प्रदान करते हैं. बहती हुई नदी की धारा को देखिये, हर बाधाओं से निपटती हुई दोनों किनारों की प्यास बुझाती हुई, समुद्र में जा मिलती है … समुद्र की लहरों को देखिये …कैसे शोर मचाती हुई आती है ओर किनारों से टकड़ा कर, शांत हो वापस लौट जाती है….. छोटे बच्चे को गोद में उठाइए – कैसे आपको पहचानने लगते हैं!. आप घर परिवार वाले हैं, उन्हें लेकर कभी इन पार्कों में आइये, उनके साथ खेलिए – देखिये…. कैसा आनंद और खुशी आपको मिलती है! आप शराब में अपने को मत डुबाइये … यह शराब ठंढे प्रदेशों के लिए, वह भी सही परिमाण में आवश्यक है, पर हमारा मुल्क तो ऐसे ही गर्म है, यहाँ इसकी आवश्यकता नहीं. यहाँ शराब की नशे में बहुत सारे लोग अनगिनत अपराध के चंगुल में फंस जाते है, जिसके लिए उन्हें ताउम्र पछताना पड़ता है.”
बस आज इतना ही, चले घर वापस चलते हैं. गजोधर भाई कभी मेरी और देखते कभी नजरें नीची कर लेते … हम दोनों वापस अपने अपने अपने घर आ गए.
*****
अब सिगरेट तम्बाकू पर भी रोक लगाएं
ऐसे कई मौके आए हैं जब हमने सार्वजनिक पार्टियों में भाग लिया है, जहाँ वैसे लोग भी मिले हैं जो शराब और सिगरेट को हाथ नहीं लगते. मतलब अभी भी बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो इन सबसे परहेज करते हैं.
अपने एक सहकर्मी की विदाई समारोह मैंने और मेरे एक मित्र ने विरोध किया तो उस पार्टी में शराब नहीं परोसी गयी.
मेरे कई मित्र ऐसे हैं जिन्होंने अपनी पत्नी और बेटी के विरोध के चलते शराब और सिगरेट पीना छोड़ दिया.
मैं अपने सहकर्मियों को सिगरेट पीने पर टोकता रहता हूँ और उन्हें स्मोकिंग जोनमें ही जाकर सिगरेट पीने को कहता हों या मैं खुद वहां से हट जाता हूँ.
पिकनिक के बाद कई मित्रों को मैंने खुद उनके घर पहुँचाया है और उनकी पत्नी के सामने उन्हें समझने का प्रयास किया है. मैं यह नहीं कहता की मैं सबको सुधर पाया हूँ, पर कुछ तो ऐसे हैं जिन्हे अहसास हुआ है. कई कैंसर पीड़ित को भी इलाज में मदद करने का अवसर प्राप्त हुआ है. मैंने इंकार नहीं किया है बल्कि उनकी आँखों को पढने की कोशिश की है.
एक बुजुर्ग बहुत अच्छी अच्छी बातें करते थे. मैं उनसे वार्तालाप करता था. वे युवाओं सिगरेट पीते देखते तो उनपर गुस्सा करते ..पर कई बार उन्हें देखा शाम के वक्त उनके पास गांजा पीने वालों का जमावड़ा लगता और वे मुंह ऊपर कर धुंवां उड़ाते. डैम लगाने से पहले भोले बाबा का जाप करते …मैंने उनके पास बैठना छोड़ दिया…
मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि मैंने कितनों को सुधारा है, पर प्रयास जारी है. शराब, सिगरेट पीने वाले सहकर्मी से शराब. सिगरेट पीते वक्त और कुछ देर तक उनसे दूरी बनाकर रखता हूँ. उनकी वे जाने मैं अपना कर्तव्य समझ निभाता हूँ.
आपसब से यही निवेदन होगा कि आप भी इस सद्प्रयास में अपना एक कदम आगे बढ़ाएं ..कम से कम आत्म-संतुष्टि तो मिलेगी ही जो कि लिखने से मिलती है…सादर!
– जवाहर
Read Comments