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अच्छे दिन की शुरुआत

jls
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मॉनसून की कमी से निपटने के लिए किसानों को किस तरह की सहायता दी जाए? अनाज का वितरण कैसे मजबूत किया जाए ताकि महंगाई सिर न उठा सके? मार्केट में सप्लाई चेन कैसे मजबूत हो? पीएम नरेंद्र मोदी ने इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए शुक्रवार को अपने आवास पर कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह, जल संसाधन मंत्री उमा भारती, रसायन और उर्वरक मंत्री अनंत कुमार और खाद्य मंत्री राम विलास पासवान के साथ बैठक की। बैठक के सुझावों पर वित्त मंत्रालय के साथ फैसला लिया जाएगा। मोदी ने बैठक के बाद इस चर्चा को नतीजे देने वाली बताया। उन्होंने कहा नए आइडिया से खेती और किसानों को कैसे मजबूती दी जाए, इस पर बात हुई।
मंत्र-1: डीजल-बीज पर सब्सिडी
कृषि मंत्रालय ने स्थिति से निपटने के लिए के प्रेजेंटेशन दिया, जिसमें 500 जिलों का ब्लूप्रिंट था। मंत्री बोले, डीजल और बीज खरीद पर सब्सिडी दी जाए, लेकिन इसका फायदा तभी मिलेगा जब सब्सिडी सीधे किसानों तक पहुंचे।
मंत्र-2: जमाखोरों की हर हफ्ते मॉनिटरिंग
बैठक में यह सुझाव भी आया कि मौजूदा कृषि उत्पादों को सही तरीके से भंडार में रखा जाए। सबकी यही राय थी कि राज्यों से कहा जाए कि वे जमाखोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें और इस बारे में अपनी रिपोर्ट हर सप्ताह भेजें।
मंत्र-3: थोक-खुदरा मूल्यों का अंतर घटे
मंत्रियों की आम राय थी कि मार्केट में डिमांड और सप्लाई के बीच एक चेक सिस्टम विकसित किया जाए। इससे खाद्य वस्तुओं की थोक और खुदरा कीमतों के बीच का अंतर को कम करने में सफलता मिलेगी।
मंत्र-4: एफसीआई का अनाज सस्ते दाम पर
अगर जरूरत पड़ी तो एफसीआई में चावल और गेहूं का जो भंडार है, उसको खुले बाजार में सस्ते दामों पर उतारा जाए। इससे जमाखोरी और कालाबाजारी पर अंकुश लगेगा।
खराब मॉनसून का यह होगा असर
कमजोर मॉनसून मक्का, धान, सोयाबीन और कपास जैसी खरीफ फसलों की उपज पर असर डालेगा। इससे खाद्य वस्तुओं की महंगाई बढ़ेगी। 2009 में ऐसे ही हालात होने पर दिसंबर की महंगाई दर 20 फीसदी तक पहुंच गई थी।
वेतन भोगी मध्यम वर्ग को टैक्स राहत
मोदी सरकार के बजट में इनकम टैक्स छूट सीमा में बढ़ोतरी तय है। मगर यह कितनी होगी, यह केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) की सिफारिशों पर निर्भर करता है। वित्त मंत्रालय ने सीबीटीसी से कहा है कि वह आकलन करके यह बताए कि इनकम टैक्स में कितनी छूट आम आदमी को दी जा सकती है। साथ ही कितनी छूट देने पर टैक्स कलेक्शन पर कितना असर होगा।
इसके अलावा वित्त मंत्रालय ने हेल्थ प्रीमियम और होम लोन टैक्स छूट पर भी सीबीडीटी से सुझाव मांगे हैं। इसका मतलब साफ है कि वित्त मंत्रालय छूट देने के मूड में है, मगर इससे पहले नफा-नुकसान का आंकलन कर लेना चाहता है। फिलहाल इनकम छूट सीमा 2 लाख रुपये है।
कितना नुकसान : यूपीए सरकार के समय यशवंत सिन्हा वाली संसदीय समिति ने इस बात की सिफारिश की थी कि इनकम छूट सीमा 5 लाख रुपये तक कर दी जाए। सीबीडीटी के सूत्रों के अनुसार अगर इस वक्त इनकम टैक्स छूट 5 लाख रुपये कर दी जाए, तो सरकार को सीधे 60,000 से 70,000 करोड़ रुपये का घाटा होगा। इतना ज्यादा नुकसान फिलहाल मोदी उठाने के पक्ष में नहीं है।
बीच का रास्ता : वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इस बारे में बीच का रास्ता निकालने पर विचार किया जा रहा है। इनकम टैक्स पर कुछ छूट देने पर सहमति बन रही है। साथ में हेल्थ प्रीमियम और होम लोन छूट को भी बढ़ाने की बात है। इससे आम आदमी को काफी राहत मिलेगी। पूर्व वित्त सचिव बी.डी. गुप्ता का कहना है कि जो परिस्थितियां हैं, उसमें किसी भी मद में ज्यादा राहत की गुंजाइश नहीं बनती है। सरकार को वित्तीय घाटे से लेकर व्यापार घाटे को ध्यान में रखते हुए फैसले लेने होंगे।
मोदी सरकार फिलहाल पूरा ध्यान बजट और महंगाई कंट्रोल करने पर लगाना चाहती है। लिहाजा एक जुलाई से नैचरल गैस के रेट बढ़ाने का फैसला टल सकता है। सूत्रों के अनुसार खुद मोदी चाहते हैं कि नैचरल गैस को 4.2 डॉलर प्रति यूनिट से बढाकर 8.4 डॉलर प्रति यूनिट करने की सिफारिशों का फिर आंकलन किया जाए और देखा जाए कि कितना बढ़ाना सही होगा।
ताकि ना हो विवाद
यदि नैचरल गैस की कीमत बढ़ी, तो इसका सीधा असर सीएनजी और पीएनजी पर ज्यादा पड़ेगा। साथ में कुछ असर एलपीजी पर भी पड़ सकता है। ऐसे में यदि सरकार को इनकी कीमतें बढ़ानी पड़ी तो महंगाई पर कंट्रोल करने का दावा और कोशिश बेकार साबित होगी।
दूसरा, बजट पेश होने से पहले यदि गैस की कीमतें बढ़ा दी गई तो विरोधियों को विवाद खड़ा करना आसान हो जाएगा। ऐसे में बजट में जितने राहत देने की प्लानिंग बनाई गई है, उस पर पानी फिर जाएगा। मोदी सरकार चाहती है कि बजट में जो राहत आम लोगों को दिया जाए, उसका पूरा क्रेडिट वह ले और लोगों को इस बात का अहसास हो कि यह सरकार कहती ही नहीं बल्कि करती भी है।
सहमति की कोशिश
गैस कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर आर्थिक मंत्रालयों में सहमति नहीं है। कॉमर्स, फूड एंड सप्लाई और पेट्रोलियम मिनिस्ट्री भी इसमें बढ़ोतरी नहीं चाहती है। यही कारण है कि पीएम ऑफिस चाहता है कि पहले इस पर मंत्रालयों के बीच सहमति बनाई जाए, ताकि बाद में इसके साइड अफेक्ट पर कोई राजनीति न हो। पीएमओ ने आर्थिक मंत्रालयों से कहा कि गैस कीमत बढ़ाने के मुद्दे पर मीटिंग कर सहमति बनाई जाए।
धीरे-धीरे बढ़े रेट
यूपीए सरकार ने गैस कीमत बढ़ाने के नाम पर रंगराजन कमिटी की इस सिफारिश को मान लिया था कि गैस की कीमत 4.2 डॉलर प्रति यूनिट से बढ़कर 8.4 डॉलर प्रति यूनिट कर दी जाए। यदि पीएमओ को एकदम गैस की कीमत को दोगुना कर देना तर्कसंगत नहीं लग रहा है। उसका यह भी मानना है कि गैस की कीमत क्यों न चरणबद्ध तरीके से बढ़ाई जाए। पहले इसे 6 डॉलर किया जाए, ताकि इससे महंगाई पर जो निगेटिव अफेक्ट होगा, उसको सहने और कम करने का वक्त भी मिल जाएगा।
सितंबर तक राहत
पेट्रोलियम मिनिस्ट्री के एक उच्चाधिकारी का कहना है कि गैस की कीमत में बढोतरी पर फैसला सितंबर तक लिए जाने पर सहमति बन रही है। तब तक सरकार महंगाई पर सही तरीके से कंट्रोल भी कर लेगी और बजट का अफेक्ट भी मार्केट और आम आदमी पर साफ हो जाएगा।
इसमे कोई दो राय नहीं कि श्री नरेंद्र मोदी सकारात्मक कदम उठाने की और बढ़ रहे हैं. कीमतें फ़िलहाल काबू में तो दीखती हैं. कुछेक चीजों के दाम उपलब्धता और मांग के अनुसार बढ़ते-घटते हैं. पर इसका मतलब यह नहीं कि सरकार की तरफ से यह बयान आए कि सोना न खरीदें, चीनी-प्याज खाना बंद कर दें. आदि आदि… जमाखोरों पर नजर रखना उचित है … देखना है कि ये सभी तर्क धरातल पर कितने सही उतरते हैं. आम जनता तो इंतज़ार कर ही रही है.
वैसे देश की आर्थिक सेहत को ठीक रखने के लिए कुछ कड़वे घूँट तो पीने ही पड़ेंगे. हमेशा मीठा खाने से मधुमेह होने की संभावना रहती है. सब्सिडी अच्छी चीज नहीं होती
दूसरी तरफ पाकिस्तान और चीन के साथ कूटनीतिक रिश्तों की पहल के साथ अपनी सेना को मजबूत बनाये रखने का संकल्प भी सराहनीय ही कहा जायेगा. – हम किसी को आँख नहीं दिखाएंगे पर आँख झुकाएँगे भी नहीं. बल्कि आँख में आँख डाल कर, आँख मिलाकर बात करेंगे, जय हिन्द!
-जवाहर लाल सिंह

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