Menu
blogid : 3428 postid : 756915

महंगाई को काबू में रखना सबसे बड़ी चुनौती

jls
jls
  • 457 Posts
  • 7538 Comments

महंगाई, भ्रष्टाचार, अनाचार आदि मुद्दों पर चुनाव जीतकर आयी भाजपा की मोदी सरकार के लिए महंगाई से लड़ना ही अभी सबसे बड़ी चुनौती होने वाली है. कमजोर मॉनसून की भविष्यवाणी, सम्बंधित विभागों के मंत्रियों के साथ प्रधान मंत्री की बैठक, इराक संकट से उपजे कच्चे तेलों की कीमत में बृद्धि, ऊपर से श्री मुकेश अम्बानी की घोषणा कि तेल की कीमतों में बृद्धि अनिवार्य रूप से करनी होगी, जिसका असर महंगाई बढ़ानेवाला होगा…. और अब रेल के यात्री किराये में बजट से पहले १४.२ प्रतिशत और माल भाड़े में ६.५ % की बढ़ोत्तरी से क्या महंगाई काबू में आने वाली है? कड़े फैसले का पहला कड़वा घूँट?
अब खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री श्री रामविलास पासवान कह रहे हैं कि आवश्यक खाद्य पदार्थों की देश कोई कमी नहीं है, उपलब्धता को यथानुसार आपूर्ति में बदलने की चुनौती तो है. हरेक राज्यों को कहा गया है कि जमाखोरों के खिलाफ कड़े कदम उठायें जाएँ… पर ऐसा हो रहा है क्या. वित्त मंत्री भी चिंतित हैं- आम उपभोक्ता क्या करे?
प्रधान मंत्री, वित्त मंत्री, खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री के हवाले से दिए गए बयानों के बाद भी महंगाई बढ़ती जा रही है. फल एवं सब्जियों के कम पैदावार और जमाखोरी रोकने के उचित कार्रवाई किये बिना इनके दामों की बढ़ोत्तरी रोकना संभव भी नहीं है. राज्य सरकारें आजतक जमाखोरों पर नियंत्रण तो नहीं कर सकी है, क्योंकि चुनाव खर्च के लिए चन्दा भी तो वही लोग देते हैं. अब बहाना भी आसान है-इराक संकट. पिछली सरकारें भी तो अंतराष्ट्रीय संकट का हवाला देती रही हैं. वैसे अब मोदी सरकार में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने ६ महीने का वक्त मांग लिया है. यानी ६ महीने तक महंगाई बढ़ेगी उसके बाद घटेगी(?) …तब तक टी वी और सडकों पर नूरा-कुश्ती देखते रहें.
वैसे भी मॉनसून की शुरुआत में फल,सब्जियों के पैदावार और उसके संग्रहण, संरक्षण में भी खासी दिक्कत होती है, इसका फायदा ब्यापारी वर्ग उठाते ही हैं. यह कोई नई बात भी नहीं है. पर विपक्ष क्या बैठा रहेगा? इस मुद्दे पर वह कत्तई चुप नहीं बैठ सकता. ऊपर से प्रधान मंत्री द्वारा कड़े फैसले के संकेत, बजट में नए टैक्स बढ़ोत्तरी के संकेत, रेल भाड़े में बृद्धि की योजना ये सभी कदम महंगाई को बढ़ानेवाले ही साबित होंगे. अबतक रोजगार सृजन के लिए भी कोई मजबूत कदम नहीं उठाये गए हैं. लोगों की आमदनी नहीं बढ़ेगी तो खरीददारी कहाँ से करेगा और संकट बरकरार रहने की ही संभावना बनी हुई है. ऐसे में मोदी सरकार के उपयुक्त कदमों का सबको इन्तजार है.
मुख्य मुद्रास्फीति साल दर साल आधार पर अप्रैल के 5.2 फीसदी के मुकाबले मई में 6 फीसदी हो गई। दिसंबर के बाद से यह इसका उच्चतम स्तर है।
इसके दोषी को खोज निकालना बहुत मुश्किल नहीं है। खाद्य मुद्रास्फीति पिछले कई सालों से वृहद आर्थिक प्रबंधन की धुरी रही है। जैसे-जैसे इसमें उछाल या गिरावट आती है वैसा ही हमें मुख्य मुद्रास्फीति में भी देखने को मिलता है। अप्रैल से मई के दौरान इसमें एक फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली। चावल की कीमतों की इसमें अहम भूमिका रही। पिछले कुछ माह के दौरान इसमें साल दर साल आधार पर 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि यह इससे पहले के कुछ महीनों के मुकाबले कम ही है। उस वक्त यह बढ़ोतरी 17 फीसदी की दर से हो रही थी। दूध, अंडे, मछली तथा मांस कुछ अन्य खाद्य पदार्थ हैं, जिन्होंने महंगाई पर असर डाला है।
यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जानी चाहिए कि बगैर खाद्य कीमतों को नियंत्रित किए महंगाई के विरुद्घ जंग नहीं जीती जा सकती है। सरकार ने इस प्राथमिकता को भली भांति समझा है। यह बात संसद के आरंभिक सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण से भी स्पष्ट हुई। अब जरूरी यह है कि सरकार जल्दी से नीति बनाकर इस दिशा में तत्काल कदम उठाए। विनिर्मित वस्तुओं के क्षेत्र में आ रही महंगाई को समझा पाना थोड़ा मुश्किल है। अगर मांग कमजोर बनी हुई है तो इसका अर्थ यही है कि उत्पादक अब कीमतों के मामले में एकदम निचले स्तर पर हैं और अब वे कच्चे माल के रूप में पडऩे वाली किसी भी लागत को उपभोक्ताओं पर डालने के लिए मजबूर हैं। यह कम कीमतों के बीच मांग बढ़ाने के लिए अच्छे संकेत तो कतई नहीं हैं।
खाद्य महंगाई को लेकर कोई भी प्रतिक्रिया देने की जिम्मेदारी अब सरकार पर है। जैसा कि यह समाचार पत्र कहता रहा है, मध्यम अवधि में सरकार को चावल की खुले बाजार में बिक्री करनी चाहिए। इससे कम से कम एक महत्त्वपूर्ण जिंस में महंगाई से पार पाने में मदद मिलेगी। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने ऐसा करने में जो अनिच्छा दिखाई उससे कई लोग चकित हुए। मौजूदा सरकार की निष्क्रियता हालात को और खराब कर सकती है। लंबी अवधि में कृषि जिंसों को लेकर समूची प्रोत्साहन व्यवस्था को नए ढंग से तय करना होगा। उसे चावल और गेहूं तथा उन सभी उत्पादों से दूर करना होगा जो खाद्य महंगाई के मूल में हैं। यह लक्ष्य रातोरात हासिल नहीं होगा, लेकिन एक विश्वसनीय नीति बनाकर इस दबाव से निपटने की दिशा में काम करना चाहिए।
जनता को उम्मीद थी कि मोदी सरकार के गठन होने के बाद महंगाई की मार से वो बच सकेगी, लेकिन देश की आर्थिक स्थिति ऐसी है कि अभी इसकी कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। पूंजी की कमी, इराक में बढ़ता तनाव, काला धन और देश की अनिश्चित अर्थव्यवस्था जैसे कारण महंगाई को लगातार बढ़ा रहे हैं। अगर बात महंगाई को काबू करने की करें तो जमाखोरी पर तत्काल लगाम लगाने, देश के डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम से भ्रष्टाचार को दूर करने और डीजल के दाम को कैटेगराइज करने से कुछ बात बन सकती है।
क्यों नहीं कम हो रही महंगाई?
1.भारतीय अर्थव्यवस्था में इस समय मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ माइनस 2 फीसदी चल रही है। अब जब आरबीआई दीर्घकालिक उपाय के रूप में ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहा है तो इससे मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ और धीमी हो जा रही है। ऐसे में एक तरफ जहां पूंजी की कमी हो रही है, वहीं प्रोडक्शन भी नहीं बढ़ पा रहा है।
2.सरकार के दीर्घकालिक उपाय बैंक के माध्यम से बाजार में रोटेट होने वाली पूंजी को कम करते हैं, लेकिन देश में काला धन इतनी प्रचुर मात्रा में है कि आरबीआई की कोशिशों के बावजूद दीर्घकालिक उपाय नाकाफी साबित हो रहे हैं। जिस व्यक्ति के पास काला धन है, वह कम प्रोडक्शन में भी अधिक पैसा देकर चीजों को खरीद रहा है।
3.भारतीय अर्थव्यवस्था में तेल का अहम योगदान है। इराक के संकट ने इसे और बढ़ा दिया है। पिछले कुछ दिनों में तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरेल से 110 डॉलर प्रति बैरेल तक पहुंच गई है। यह हमारे देश में माल उत्पादन से लेकर माल की ढुलाई तक को प्रभावित कर रहा है। इराकी संकट यदि लंबे समय तक बना रहा तो वस्तुओं के दाम और बढ़ जाएंगे।
4.देश में आर्थिक अनिश्चितता का माहौल खत्म नहीं हुआ है। इराक संकट और सरकार के भविष्य में कड़े कदम उठाने के बयान इसको और बढ़ा रहे हैं। रेल का माल भाड़ा बढऩे जैसी खबरें आग में घी का काम कर रही हैं। जमाखोर सोच रहे हैं कि भाड़ा बढ़े या तेल महंगा हो उससे पहले माल जमा कर लो।
क्या उपाय करती है सरकार
सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के माध्यम से महंगाई को रोकने के लिए दीर्घकालिक उपाय करती है। आरबीआई देश में महंगाई को रोकने के लिए देशभर के कमर्शियल बैंकों के द्वारा रुपए का सर्कुलेशन इस तरह से बनाकर रखता है कि महंगाई पर लगाम लगाई जा सके। जब भी बाजार में पूंजी की तरलता व अवेलेबिलिटी बढऩे लगती है तो आरबीआई निम्न उपाय करती है।
1.सीआरआर : महंगाई बढऩे पर आरबीआई को लगता है कि बाजार में पैसे की सप्लाई कम की जाए तो वह सीआरआर बढ़ा देता है।
2.एसएलआर : एसएलआर यानी स्टैच्युटरी लिक्विडिटी रेशो का मतलब होता है कि बैंक को अपने कुल डिपॉजिट का कुछ हिस्सा आरबीआई एवं सरकार द्वारा जारी सिक्युरिटीज में निवेश करना होता है। जब महंगाई चरम पर होती है तो आरबीआई इसे बढ़ा देती है। इससे बाजार में पूंजी की तरलता कम हो जाती है।
3.रेपो एंड रिवर्स रेपो रेट : रेपो रेट वह रेट है जिस पर आरबीआई कमर्शियल बैंकों को लोन देता है। महंगाई बढ़ती है तो रेपो रेट को बढ़ा दिया जाता है, जिससे बैंकों को अधिक ब्याज दर पर लोन मिलता है। इससे कमर्शियल बैंक भी लोन पर ग्राहकों से इंटरेस्ट रेट अधिक लेते हैं और आम आदमी लोन लेना कम कर देता है। इससे पूंजी की सप्लाई रुक जाती है।
उपर्युक्त सभी सैधांतिक बाते हैं जिन्हें पिछली सरकारें भी करती रही हैं, नतीजा??? वैसे श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किये जा रहे उपायों से इनकार नहीं किया जा सकता है, बशर्ते कि इसका परिणाम आम जनता तक पहुंचे और कृषि और पशुधन उत्पादकों को भी समुचित सुविधा-लाभ मिले. पिछले कई साल मॉनसून अच्छे रहे हैं, खाद्य उत्पादन भी अच्छा हुआ है साथ ही सरकारी आंकड़ों के अनुसार स्टॉक की भी कमी नहीं है. जरूरत है उन्हें समयानुसार अमल में लाने की, जिसमे राज्य सरकारों और ब्यापारियों का भी सहयोग अपेक्षित है. जब पूर्ण बहुमत प्राप्त सरकार है तो कड़े फैसले और उसके परिणाम का इंतज़ार तो करना ही पड़ेगा.
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh