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केंद्र की भाजपा सरकार को क्या विपक्ष की जरूरत है?

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पहले शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का साईं और राम विवाद, हिन्दू धर्म को बांटने की कोशिश, फिर प्रवीण तोगड़िया का मुस्लिमों को चेतावनी देनेवाला विवादास्पद बयान, महाराष्ट्र सदन में शिवसेना के सांसद द्वारा एक मुस्लिम रोजेदार के मुंह में रोटी ठूँसने की कोशिश और उसके बाद माफी. सानिया मिर्जा को तेलंगाना का ब्रांड अम्बेसडर बनाये जाने पर भाजपा और शिवसेना का विरोध. गोवा के विधायक/मंत्री का हिन्दू राष्ट्र की तमन्ना का प्रकटीकरण. उसके बाद २४ तारीख को लोकसभा में भाजपा के ही सांसद निशिकांत दुबे द्वारा उनके जीवन में स्विस बैंक से पैसा वापस नहीं ला सकने वाला बयान. महंगाई को रोकने के लिए कारगर कदम न उठाना, ऊपर से कड़वे घूँट पिलाने की कोशिश, रेल के भाड़े में बढ़ोत्तरी पर सुरक्षा और सुविधा में घोर लापरवाही. उत्तर प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में महिलाओं के साथ वीभत्स दुष्कर्म के साथ हत्या, उसपर गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह की चुप्पी. प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी की भी इन सभी मामले पर नीरव चुप्पी … क्या इन सबके बावजूद भाजपा को एक सशक्त विपक्ष पार्टी की आवश्यकता है? उत्तर प्रदेश में कानून ब्यवस्था की दिन पर दिन ख़राब होती स्थिति, सहारनपुर के दंगे …क्या यह सब ऐसे ही चलता रहेगा?
आवश्यक सांसद संख्या बल न होने के कारण कांग्रेस को विपक्ष के नेता का पद नहीं मिला, वैसे भी कांग्रेस के पास कहने को कुछ नहीं है. कांग्रेस के अधिकांश नेता राहुल को कोसने में लगे हैं, और कुछ मोदी की स्तुति गान में लगे हैं. शशि थरूर जैसे मोदी विरोधी नेता अब मोदी की स्तुति करने लगे हैं (सुनंदा पुष्कर हत्या केस से अपनी जान छुड़ाने की कोशिश तो नहीं?) उच्चतम न्यायालय के लिए जजों की नियुक्ति में उत्पन्न विवाद और अब मद्रास हाई कोर्ट के जज के सम्बन्ध में मार्कंडेय काटजू का बयान, न्यायपालिका की न्याय प्रणाली पर उंगली तो उठाता ही है.
भारतीय जनता ने महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी और कांग्रेस की भ्रष्ट सरकार को हटाने के लिए मोदी के आह्वान पर अभूतपूर्व बहुमत देकर उन्हें जिताया तो आशाएं तो यही थी कि मोदी सरकार के बनते ही सभी मुश्किलें दूर हो जायेंगी. पर आम जनता तो वैसे ही परेशान है. अब मोदी के परम भक्त और समर्थक भी उनके विरोध में बोलने/लिखने लगे हैं. मोदी जी कुछ सुन रहे हैं?
अब UPSC परीक्षा में अंग्रेजी हिंदी विवाद भी तूल पकड़ रहा है.
तात्पर्य यही है कि मोदी जी खुद बहुत सारे वादे कर सत्ता में आये. जनता में उनसे काफी उम्मीदें हैं, यह बात सही है कि उन्हें अभी समय दिया जाना चाहिए. पर जो कुछ दिख रहा है उन ज्वलंत मुद्दे को ही देखें.
१. महंगाई मुख्य मुद्दा था. पर महंगाई को नियंत्रण करने के कोई भी प्रयास नहीं दीख रहे. आवश्यक वस्तुओं की कीमत में लगातार बढ़ रही है. खाने पीने की वस्तुओं में आलू प्याज के साथ टमाटर नित नयी ऊंचाई छू रहा है. रेल भाड़े में बृद्धि हुई पर सुविधा और सुरक्षा पर कोई काम नहीं किया जा रहा है, फलस्वरूप ट्रेनों में डकैती, लूट पाट, छेड़-छाड़, खान पान के गुणवत्ता में लगातार गिरावट, और ट्रेनों की दुर्घटना में लगातार इजाफा हो रहा है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली को बेहतर बनाने के वादे का क्या हुआ? FCI के गोदामों से अनाज बाहर निकला क्या ? सब्जियों और फलों के ट्रांसपोर्टेशन में कुछ भी सुधार हुआ क्या? ( अब १० अगस्त की डेड लाइन दी गयी है ..इंतजार करना चाहिए…)
२. भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर कोई पहल दीखती नहीं. हर ऑफिस में भ्रष्टाचार वैसे ही ब्याप्त है. आम आदमी को कोई राहत नहीं मिल रही. भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े मुद्दे ठंढे बस्ते में चले गए. कोयले की कमी से कई बिजली घरों में उत्पादन प्रभावित हुए हैं.
३. अब तो राहुल गाँधी भी कहने लगे हैं कि महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बनी सरकार ने अब तक ऐसी कोई पहल नहीं की है, जिससे इसपर अंकुश लगे और इसका प्रभाव जनता पर दिखे. (सॉलिड एक्सन नहीं दीखता)
४. धर्म और भाषा के मुद्दे को बेवजह तूल दिया जा रहा है. बीच बीच में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना से संबधित बयान, वो भी गोवा से आ रहे हैं. गोवा के मंत्री/उप मुख्य मंत्री/मुख्य मंत्री लगातार विवादास्पद बयान देकर मामले को हवा देने की कोशिश कर रहे हैं.
५. हिंदी, संस्कृत, तमिल, इंग्लिश, मराठी, उत्तर पूर्व में भाषा का विवाद उभरता रहता है. ऐसे मुद्दे विकास में बाधक ही कहे जा सकते हैं.
६. विदेशों से काला धन वापस लाने के मामले में भाजपा के वित्त मंत्री और भाजपा के ही सांसद निशिकांत दुबे के बयान विरोधाभाष पैदा करते हैं. बाबा रामदेव भी अभी चुप है, और सबसे बड़ी बात मोदी जी बिल्कुल ही चुप हैं.
७. उत्तर प्रदेश की PGI में कार्यरत महिला की क्रूरतम हत्या के बाद भी गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह की चुप्पी और UP सरकार की तरफ से मामले को रफा-दफा करने की कोशिश. महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई विशेष कदम न उठाया जाना और देश भर में महिलाओं पर होनेवाले जुर्म में बेतहाशा बृद्धि कानून ब्यवस्था पर सवाल खड़े करता है.
८. पाकिस्तान और चीन की सीमाओं पर सैनिकों की घुसपैठ और गोलाबारी शांति के प्रयासों पर प्रश्न चिह्न खड़ा करता है. (यहाँ भी शिव सेना नेता संजय राउत की टिप्पणी शाल और साड़ी टिप्पणी सुनते हैं मोदी जी को नागवार लगी है ..यह प्रश्न माँ की माता के साथ जुड़ा है जिसे राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए).
९. कारगिल विजय की गाथा स्तुत्य है, पर यह तो बाजपेयी सरकार की उपलब्धि है.
१०. BRIKS सम्मलेन में भारत की उपस्थिति महत्वपूर्ण कही जा सकती है, पर इसके अपेक्षित परिणाम आने अभी बाकी हैं.
११. विश्व बैंक से ऋण मिलना सकारात्मक है, बशर्ते कि इसका सही उपयोग हो.
इधर झाड़खंड सरकार के मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती अपनी सक्रियता दिखलाते हुए नक्सलियों के हौसले पस्त करते नजर आ रहे हैं, पर उनके द्वारा प्रेस कांफ्रेंस में यह बयान कि “नक्सलियों को कुछ सफेदपोश नेता और उद्योगपति संरक्षण प्रदान करते हैं” – न तो किसी नेता को पसंद आया न ही उद्योगपति को. सजल चक्रवर्ती इधर झाड़खंड के नायक बनकर उभरे हैं. ऐसे अफसर बहुत कम पाए जाते हैं और तथाकथित सफेदपोश नेतागण इन्हें कभी पसंद नहीं करते… और अब सजल चक्रवर्ती पर इस्तीफे का दबाव पड़ने लगा है….मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन भी उनके प्रेस कांफ्रेंस से नाराज हैं..
मोदी जी से आम जन को बहुत आकांक्षाएं हैं और अगर मोदी जी उनपर खड़े नहीं उतरते हैं तो एक बार जनता के हाथ निराशा ही लगेगी. आम आदमी पार्टी आपसी कलह में ही ज्यादा ब्यस्त हैं. उन्हें बदनाम करने का कोई भी मौका कांग्रेस या भाजपा छोड़ना नहीं चाहती. यहाँ पर ये दोनों राष्ट्रीय पार्टियाँ एक हो जाती है. अरविन्द केजरीवाल के पास समर्पित कार्यकर्ताओं की कमी है. धन का अभाव भी उसके प्रचार प्रसार में बाधा ही उत्पन्न कर रही है. हरियाणा में आम आदमी पार्टी का चुनाव लड़ने से इनकार करना आम जनता को निराश ही करता है. आशा की क्षीण किरण की भी आशा जनता कैसे करे.
अनुमान के विपरीत मॉनसून अपनी उपस्थिति लगभग हर क्षेत्रों में दिखला रही है. सूखे जैसी स्थिति नहीं है, पर उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की स्थिति बदतर हुई है. जिम्मेवार कौन?
मोदी जी कुछ करिए, अन्यथा १५ अगस्त को इस बार आप क्या बोलेंगे? पैसे पेड़ों पर फलते हैं? खेतों में उगते हैं? कारखानों में पैदा होते हैं? महंगाई को कैसे कम की जाती है?
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

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