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प्रधान सेवक का आह्वान!

jls
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लाल किले के प्राचीर से भारत के प्रधान सेवक का सम्बोधन, जनता के दिलों में जगह बनानेवाला था. बिना बुलेट फ्रूफ पोडियम के, बिना छाता के खुले वातावरण में जनता को सम्बोधन, वह भी बिना लिखे हुए स्क्रिप्ट के, लगभग एक घंटा धाराप्रवाह बोलना …यह मोदी जी के ही बस की बात है. आत्मविश्वास से भरे प्रधान मंत्री ने जिस तरह लालन कॉलेज से लाल किले तक का सफर पूरा किया, यह अपने आप में चमत्कार से कम नहीं नहीं है. पिछले साल चुनाव प्रचार के दौरान छत्तीसगढ़ में लालक़िलानुमा बने मंच से जब सम्बोधन किया था, तो सबने यही कहा था, यह व्यक्ति नकली लालकिला से ही भाषण दे सकता है, वहां तक पहुँच नहीं सकता. पर आत्मविश्वास की ऐसी धमक शायद उन स्वतंत्रता सैनानियों की याद दिलाता है, जब वे पहली बार तिरंगा फहराने का साहस कर पाये थे. उद्यम कार्य साधक: के तर्ज पर, जिस प्रकार से स्वतंत्रता सेनानियों के अथक प्रयास से देश को आजादी मिली, उसी प्रकार से मोदी जी के अथक परिश्रम का ही यह फल है कि उन्होंने लालकिले के प्राचीर से देश को सम्बोधित करने वाले वैसे प्रधान मंत्री का दर्जा प्राप्त कर लिया, जिसका जन्म आजादी के बाद हुआ है. गरीब परिवार में पैदा हुआ, छोटे शहर में, ट्रेन में चाय बेचने तक के काम से परहेज नहीं किया. कुछ तो बात है मोदी जी में… जो वे सोचते हैं, सपना देखते हैं, उसे पूरा करने में जी जान से लगा जाते हैं.
उन्होंने कहा – सफाई का काम वे अपने ऑफिस से शुरू कर दिए हैं. सबको सफाई पर ध्यान देना है. यह ठीक वही बात हुई कि दूसरों को कहने से पहले स्वयं को उदाहरण बनाकर पेश करना. दफ्तर में अधिकारियों के समय से पहुँचना चालू हो गया है. रिश्वत लेना-देना बंद-सा हो गया है, न खाऊंगा न खाने दूंगा. महिला सुरक्षा की बात उन्होंने की और हर माता पिता को चेताया कि वे अपनी बेटियों पर ही नहीं, बेटों पर भी नजर रक्खें. शौचालय और आदर्श गांव की अवधारणा निश्चित ही सराहनीय है. इसे धरातल पर उतारना चाहिए क्योंकि योजनाएं तो पहले से भी बहुत हैं
प्रधान मंत्री का सम्बोधन एक आम जनता से आह्वान था, एकतरफा घोषणा नहीं. सफाई हर आदमी के लिए आवश्यक है. सामाजिक परिवर्तन जन भागीदारी से ही सम्भव है. जन-धन योजना से बहुतों को लाभ होगा, बैंकों की नयी शाखाएँ खुलेंगी, रूपया बैंक में रहेगा या बैंक में जाएगा. पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा, बशर्ते यहाँ भी सरकारी अधिकारी और कर्मचारी को अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर काम करना होगा. डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम वहां पर लाभप्रद होगा. यह योजना भी पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम की सोच थी. यह अलग बात है कि इसे दूसरे ढंग से प्रचारित किया जा रहा है. सांसदों और कॉर्पोरेट घरानों से शौचालय पर खर्च करने की योजना जरूर नयी-नयी लगती है, हालाँकि पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश भी इस पर बयान दे चुके हैं.
स्कूली बच्चों और उनकी शिक्षिकाओं से मिलने की उनकी पहल बच्चों में उत्साह का संचार पैदा करती है. चाचा नेहरू भी बच्चों को प्यार करते थे, इसीलिये उनके जन्म दिन पर बाल दिवस मनाया जाता है. हमारे नौनिहाल देश के भविष्य है. देश-प्रेम का बीजारोपण वहीं से करना जरूरी है.
प्रधान मंत्री के रूप में उन्होंने किसी को आदेश नहीं दिया है, वरन सबको आह्वान किया है. मेरा क्या, मुझे क्या से अलग हटकर काम करने का मन्त्र फूंका आतंकियों, उग्रवादियों, पड़ोसियों सबको शांतिपूर्ण ढंग से समस्या को सुलझाने की बात की. सबका साथ, सबका विकास.
अर्थात मैं यही कहूँगा कि प्रधान मंत्री के आह्वान को पहले उनके अधीनस्थ सुनेंगे, अपनाएंगे, तब यह सन्देश जन-जन में पहुंचेगा. एक कदम आगे मतलब सवा सौ करोड़ कदम आगे. बातें वही है जो वे विभिन्न मंचों से पहले भी बोलते रहे हैं. पर उनमे आत्मविश्वास बढ़ा है, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि स्थिति में सुधार हो रहा है, धीरे धीरे… तभी वे १० साल की योजना बना रहे हैं. उन्हें यह भी अहसास है कि अगली बार भी वे ही प्रधान मंत्री बनेंगे, उनकी ही सरकार बनेगी. जनता अगर संतुष्ट होगी, अवश्य उन्हें दुबारा मौका देगी जैसा कि मनमोहन सिंह को मिला था. पर मनमोहन सिंह स्थिति पर नियंत्रण करने में विफल रहे..उनके बस में बहुत कुछ नहीं था, पर आज की बहुमत वाली सरकार के मुखिया के पास पूरा नियंत्रण है.
एक और बात मैं जो कहना चाहता हूँ, वह यह कि भगवान राम ने पहले तीन दिन समुद्र की प्रार्थना की थी, रास्ता देने के लिए. अंत में अग्निबाण उठाया था, तब समुद्र ने उन्हें उपाय बताया था. मेरी समझ से अभी मोदी जी भी प्रार्थना कर रहे हैं प्रेम से. सबको समझाने का प्रयास कर रहे हैं.
मोदी जी के अनुसार सरकार के अन्दर दर्जनों सरकारें चल रही है, विभिन्न विभागों में तालमेल नहीं है. इसे दूर करना होगा. प्रमाण स्वरुप आर एस एस और आडवाणी जी ने तुरंत कह दिया की यह जीत मोदी की जीत नहीं थी, बल्कि जनता कांग्रेस से त्रस्त थी और उसके पास फिलहाल दूसरा विकल्प नहीं था. अपुष्ट सूत्रों से यह भी सुना गया है कि गृह मंत्री राजनाथ सिंह की भी अब नहीं चलती. यानी डोर की कमान सिर्फ एक हाथ में या रिमोट (?)
मोदी जी काबिल वक्ता हैं, जनमानस को मोहने की अजीब शक्ति है उनमे. स्वानुशासन इतना की दूसरे को पसीना छूट जाय! वे आम जनता, कार्यकर्त्ता, अधिकारी कर्मचारी सबको उसकी भागीदारी और जिम्मेदारी का अहसास कराते हैं. अगर अधिकांश लोग स्वयं सही हो जाएँ तो देश अपने आप सुधर जायेगा. पर यह देश अनुशासनहीनता का पर्याय बन चुका है इसके भी जिम्मेदार हमारे नेता और नीति निर्धारक ही हैं. योजना आयोग की छुट्टी आवश्यक थी क्योंकि ये १५ लाख रुपये अपने टॉयलेट को चमकाने में खर्च करते हैं और आम लोगों को २६ रुपये या बत्तीस रुपये खर्च करने पर अमीर बता देते हैं. इन्हें धरातल का ज्ञान ही नहीं है. वातानुकूलित कमरे से बाहर निकलते हुए इन्हें कष्ट होता है.
फिर भी कुछ ज्वलंत मुद्दों पर वे खामोश दिखे. महंगाई पर मौन, भ्रष्टाचार पर चुप, और सीमा सुरक्षा पर भी नसीहत ही देते नजर आये जबकि पिछले साल ये पाकिस्तान को ललकार रहे थे. एफ डी आई के विरोधी विदेशियों को दिल खोलकर निमंत्रण देने लगे हैं.
कार्यकुशलता बढ़ाने की बात कही है, जो कि जायज है, पर उसके लिए संसाधन मुहैया तो करने पड़ेंगे. मानव संशाधन मंत्री बार बार विवादों में घिर जाती हैं. वरुण के तो पर क़तर दिए गए. यानी अब नेहरू-गांधी परिवार रहित, कांग्रेस रहित भारत होगा. मोदी नाम केवलम से अन्दर खाने में असंतुष्टि बढ़ सकती है. निदान मोदी जी की प्रवीणता से साबित होगी. अमित शाह (मैन ऑफ़ द मैच) से उन्हें बहुत आशाएं हैं, पर जनता तो परिणामों का आकलन करेगी. गरीबी, बेरोजगारी कितनी दूर हुई? आकलन तो होगा ही. अभी नहीं; पर एक समय तो आयेगा, जब जनता (जिसकी आकांक्षाएं असीम होती है) असंतुष्ट होगी. देश विदेश में पड़े काले धन का क्या होगा? हिन्दू राष्ट्र का क्या होगा? राम मंदिर और धारा ३७०, सामान नागरिक संहिता आदि भाजपा के स्वपोषित मुद्दे तो बीच बीच में उठते ही रहेंगे.
मोदी जी ने सभी पूर्व प्रधान मंत्रियों की बड़ाई की क्योंकि अब वे प्रधान मंत्री हैं और उनके आगे भी कोई बनेगा जो इनका भी आदर करे. भाषा बदल गयी है यह पद की गरिमा का मामला है. मोदी जी इस मामले में खासे चतुर हैं. अंत में शुभकामनायें आने वाले अच्छे दिनों की. जय हिन्द!
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

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