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सामयिक दोहे

jls
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मानसून की देर से, खेतहि फटे दरार,
ताके किसना मेघ को, आपस में हो रार.
***
कुदरत की माया गजब, बारिश हो घनघोर
उजड़ा घर अरु खेत सब, पीड़ित जन चहु ओर
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वर्षा जल की धार से, वन गिरि भी थर्राय
नर पशु पानी में बहे, किसको कौन बचाय .
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उथल पुथल भइ जिंदगी, कहते जिसे विकास.
मिलना मुश्किल हो गया, आम हो गया ख़ास
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राग द्वेष का जोर है, प्रीती नहीं सुहाय,
भाई से भाई लड़े, संचित धन भी जाय..
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फैशन की अब होड़ है, फैशन डूबे लोग.
फैशन में पोषण घटे, कैसे रहे निरोग.
– जवाहर लाल सिंह

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