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कहा एक ने- हम १५ लाख रुपये
तुम्हारे खातों में जमा करा देंगे-
खाता तो खोलो.
सबने खाते खुलवा लिए
रही सही घर की पूंजी सरकार को चढ़ा गए.
तभी दूसरे अनारी जैसे नए खिलाड़ी ने कहा-
हमारे पास पैसे नहीं हैं भाई
पर तुम्हारे झुग्गी के ऊपर बना के देंगे घर पक्का
बिजली पानी मुफ्त बात समझ में आई?
घर हो जाएगा पक्का!
तो वोट भी हुआ पक्का!
उम्मीद से भी ज्यादा सीटें आई.
यह था नवसिखुआ नेता
जिसने किया वादा
हम लाएंगे राम का युग त्रेता.
कुछ ही दिनों में इनकी
आपस में हो गयी लड़ाई ….
कहाँ गया हमारा हिस्सा
ऐसे तो नहीं होती मिताई…
अब बहुत पहले जुदा हुए लोगों की
हुई फिर से मिताई
जो भी मिलेगी ‘माया’
मिल बांटकर खाएंगे भाया
तभी एक क्षेत्रीय दल में चेतना जागी,
शहर के बीचो बीच उसने टेंट लगा दी
वाह! टेंट भी क्या शानदार !
स्वर्ग से सुन्दर लगे,
इसके अंदर का घर-बार!
बेचारे गरीब बनवासी देखकर चकराए
स्वर्ग भी क्या इससे सुन्दर होता है?
इन्हे समझ न आए
बड़े सरदार ने अपने लम्बे बाल लहराए,
मूछों पर दिया ताव
इस बार पूरे प्रदेश को हम ऐसा ही बनाएंगे
मुझे जिताओ हम वन प्रदेश को भी
स्वर्ग से भी सुन्दर बनाएंगे …
भोली जनता फूली नहीं समाती है
उधर मजदूर किसान की बदहाली पर
घड़ियाली आँसू बहाई जाती है.
घड़ियाली आँसू बहाई जाती है.
– जवाहर लाल सिंह २१.०४.२०१५
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