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अरुण शौरी के मन्तब्य और उसके मायने

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अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में विनिवेश, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी आदि विभाग को सम्हालने वाले प्रभावशाली मंत्री रह चुके और मोदी के प्रधान मंत्री बनाने में बड़ी भूमिका निभाने वाले अरुण शौरी अब बागी रुख अपना रहे हैं.मोदी सरकार की पहली सालगिरह के मौके पर शौरी ने ‘हेडलाइंस टुडे’ को एक्सक्लूसिव इंटरव्यू दिया जिसके चलते फ़िलहाल अभी चर्चा में हैं. एक अच्छे अर्थविश्लेषक भारतीय जनसंघ और भाजपा के प्रबल समर्थक रहे हैं. कई लोग इसे सही भी मान रहे हैं. तो कुछ लोग उनके मंत्री या प्रमुख पद न दिए जाने के चलते नाराज होकर इस तरह के इंटरव्यू की आलोचना कर रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ़ इण्डिया के पूर्व संपादक रह चुके है. कोल् ब्लॉक और स्पेक्ट्रम पर भी उनके बयान मोदी जी के परिप्रेक्ष्य में विरोधाभाषी है अब वे क्यों ऐसा बोल रहे हैं उसकी चर्चा जरूरी है. क्या मोदी सरकार के पहले सालगिरह के मौके पर ऐसे बयान देकर वे भी मार्गदर्शक मंडल में अपना जगह तलाश रहे हैं.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे अरुण शौरी ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है। शौरी ने कहा है कि बीजेपी को मोदी,शाह और जेटली की त्रिमूर्ति चला रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते हुए शौरी ने कहा कि देश के आर्थिक हालात को संभालने में मोदीनॉमिक्स फेल होती दिखाई दे रही है। इसके अलावा उन्होंने अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों पर प्रधानमंत्री द्वारा आंखें मूंद लेने का आरोप भी लगाया। अरुण शौरी ने ये बातें एक अंग्रेजी चैनल से बातचीत में कही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री और विनिवेश मंत्री रहे शौरी आर्थिक सुधारों के दिशा में प्रमुखता से आवाज उठाते रहे हैं। वाजपेयी सरकार में पार्टी के कद्दावर नेताओं में गिने जाने वाले शौरी मोदी सरकार में फिलहाल हाशिए पर हैं। उनकले अनुसार सिर्फ हेडलाइंस में बने रहने के लिए काम कर रही है सरकार
मोदी सरकार ने आर्थिक विकास की दर के 8 फीसदी और बहुत जल्द इसके 10 फीसदी के करीब होने के दावे पर भी शौरी बरसे। उन्होंने कहा कि ये सरकार के बड़बोलेपन को दिखाता है। उन्होंने कहा कि ऐसे दावे कुछ देर के लिए हेडलाइंस तो बन सकते हैं, लेकिन हकीकत में ऐसा संभव नहीं है। उन्होंने दावा किया कि मोदीनॉमिक्स दिशाहीन तरीके से काम कर रही है। शौरी ने कहा कि सरकार के पास दावे हैं लेकिन आर्थिक योजनाओं का कोई खाका नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसा दिखाई देता है कि सरकार सिर्फ हेडलाइंस में बने रहने के लिए काम कर रही है ताकि उसकी योजनाओं को मीडिया में जगह मिलती रहे।

मोदी सरकार की उपलब्धियों की सूची को खारिज करते हुए शौरी ने कहा कि महंगाई, फिस्कल डेफिसिट, एफडीआई, कोल ब्लॉक और स्पेक्ट्रम नीलामी जैसे मुद्दों पर शौरी ने कहा कि इन चीजों के नतीजे कुछ ऐसे ही आने थे। इसमें सरकार ने कुछ नहीं किया है। मसलन- तेल और गैस की कीमतों में कमी का मसला अंतरराष्ट्रीय मामला है इसमें सरकार ने कुछ नहीं किया। और अब तेल के दाम फिर बढ़ने भी लगे हैं.

शौरी से जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के दिल्ली दौरे के दौरान पहने गए मोदी के महंगे सूट को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, ”मैं खुद नहीं समझ पा रहा हूं कि उन्हें ऐसा करने और दिखाने की क्या जरूरत थी।” शौरी ने आरोप लगाया कि आप लाखों का सूट पहन कर गांधीजी का नाम नहीं ले सकते।
अट‍ल बिहारी वाजपेयी की सरकार में अहम भूमिका निभाने वाले अरुण शौरी ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला. मोदी सरकार की पहली सालगिरह के मौके पर शौरी ने ‘हेडलाइंस टुडे’ को एक्सक्लूसिव इंटरव्यू दिया. जानिए अरुण शौरी के इंटरव्यू की 10 खास बातें…
1. सरकार अपनी सोच को लेकर स्पष्ट नहीं है. सरकार के पास आइडिया अच्छे हैं, लेकिन उन्हें लागू करने में वो पीछे है. समझ और वायदों तथा प्रोजेक्शन और परफॉर्मेंस में बड़ा गैप है. सरकार को पूरी तरह लो प्रोफाइल रहना चाहिए.

2. मोदी की आर्थिक नीति दिशाहीन है. आर्थिक नीति को लेकर कोई बड़ी तस्वीर नहीं है. आर्थिक नीति पर मोदी का फोकस एक मुख्यमंत्री की तरह है. उन्हें परियोजनाओं की बजाय नीतियों पर ज्यादा फोकस करना चाहिए.

3. मोदी की विदेश नीति सफल है, लेकिन मोदी को नीतियों को जल्दी-जल्दी लागू करना चाहिए. चीन भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. मोदी को और तेज होना पड़ेगा. कोई हमारे लिए इंतजार नहीं करेगा. अमेरिका पहले ही इस बेसब्री को महसूस कर रहा है.

4. पाकिस्तान को लेकर सरकार स्पष्ट नहीं है. हमें पाकिस्तान की तरफ स्थिरता से नजर रखनी चाहिए.

5. निवेश नहीं बढ़ रहा. सरकार इंडिया इंक की चेतावनियों को नजरअंदाज नहीं कर सकती. सरकार को जागने की जरूरत है. निवेशकों को अभी भी उम्मीद है, लेकिन इंडस्ट्रियल सेक्टर मजबूत कदमों का इंतजार कर रहा है. विकास दर के दावे सिर्फ हेडलाइंस में आने के लिए किए जाते हैं और सरकार सिर्फ हेडलाइंस में आने की कोशि‍श करती है.

6. टैक्स व्यवस्था को लेकर कन्फ्यूजन है. सरकार के फैसलों से निवेशक छिटक रहे हैं.

7. भारत को मजदूर व्यवस्था को लेकर सुधार करने की जरूरत है. लैंड बिल पर विवाद नहीं होने देना चाहिए था. बीजेपी ने अपने सहयोगियों को भरोसे में नहीं लिया. मोदी को विपक्ष को भरोसे में जरूर लेना चाहिए था. विपक्ष के सपोर्ट के बिना कोई भी सुधार नहीं किया जा सकता. विपक्ष मोदी के खि‍लाफ एकजुट हो गया है.

8. जरूरी पदों पर वैकेंसी को लेकर हालात भयावह हैं. समझ नहीं आता कि इन पदों को भरा क्यों नहीं गया. इससे महत्वपूर्ण संगठनों को मुसीबत झेलनी पड़ रही है.

9. सरकार को अल्पसंख्यकों का डर दूर करना चाहिए. सरकार अल्पसंख्यकों को भरोसा दिलाने में नाकाम रही है. ईसाई बहुत नाराज हैं. प्रधानमंत्री को सबसे बात करनी चाहिए. मोदी को इन जटिल मुद्दों पर जरूर बोलना चाहिए. उनकी चुप्पी से नैतिक सवाल खड़े होते हैं.

10. मोदी को मोनोग्राम वाला सूट नहीं पहनना चाहिए था. मैं समझ नहीं पाया कि मोदी ने वो सूट क्यों स्वीकार किया. आप गांधी का नाम लेकर ऐसी चीजें नहीं पहन सकते.
अब प्रश्न यहाँ पर यही उठाया जा रहा है कि अरुण शौरी के इस साक्षात्कार का मकसद क्या है. क्या वे कोई महत्वपूर्ण पद न मिलने से नाराज हैं या उनके द्वारा उठाई गयी बातें उचित है. अगर सही अर्थों में देखा जाय तो उनके द्वारा उठाये गए प्रश्न वाजिब हैं. पर मोदी सरकार की आलोचना तो वाजिब नहीं है. आलोचना करने वाले विरोधी हो सकते हैं या फिर बागी. केजरीवाल से मात खा चुकी मोदी सरकार पर अब राहुल गांधी भी हमलावर हो गए हैं. लगभग दो महीनों की छुट्टी के बाद किसानों की समस्या औए भूमि अधिग्रहण बिल का सार्वजनिक रूप से विरोध कर रहे हैं. वे किसानों से मिल भी रहे हैं. अब वे बिल्डरों के खिलाफ भी आवाज उठाने में मिडिल क्लास के साथ मिल गए हैं. कुछ कुछ केजरीवाल की तर्ज पर लोगों से आम आदमी की तरह मिलने लगे हैं. जनता परिवार का विलय बिहार के चुनाओं में भाजपा को चुनौती मिलने की आशंका है. पश्चिम बंगाल के नगर निकाय चुनावों में एक भी सीट न जीत पाना अमित शाह के चाणक्यगिरी पर भी सवाल खड़े करता है. दिल्ली में अमित शाह और मोदी पहले ही फेल हो चुके हैं. शिव सेना और आर एस एस भी मोदी जी की नीतियों का समय समय पर विरोध करती रही है.ऐसे में मोदी जी की लोकप्रियता का ग्राफ गिरने भी लगा है. एक साल के अंदर चमत्कारिक परिवर्तन नहीं देखने से जनता भी अपने आप को ठगी महसूस कर रही है ऊपर से किसानों की आत्म हत्या, बेरोजगारी, महंगाई, महिलाओं पर बढ़ाते अपराध पर अभी तक कोई नियंत्रण नहीं हो सका है. दफ्तरों में, पुलिसिया तंत्र में भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है ऐसा भी नहीं कहा जा सकता. ऊपर से पूर्ती ग्रुप जो नितिन गडकरी की कंपनी को दिए गए कर्ज पर नियमों की अनदेखी का सवाल कैग रिपोर्ट उठा चूका है. विदेशों में भारत की छवि अच्छी जरूर हुई है, पर विदेशों में भारत के पूर्ववर्ती सरकारों की शिकायत पर बहुतो ने विरोध किया है. प्रधान मंत्री के विदेशी दौरे, दौरे के दरमियान वस्त्र परिवर्तन और मीडिया हाइप पर भी विपक्ष निशाना साध चुका है अभी तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कोई खास प्रगति भी नहीं दीख रही भूमि अधिग्रहण बिल पर हंगामा ही मचा हुआ है. फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमान खरीद पर सुब्रमण्यम स्वामी पहले ही आवाज उठा चुके हैं. पाकिस्तान और चीन के साथ संबंधों में कोई खास सुधार नहीं हुआ है. अत: देखना यही होगा कि मोदी सरकार की तिकड़ी अपना अगला रुख क्या अख्तियार करती है. इधर मोदी सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ भी लगातार गिर रहा है. मेरे ख्याल से तो इसे सकारात्मक रूप में लिया जाना चाहिए और सुधार की कोशिश की जानी चाहिए. जनता बड़ी उम्मीद लगाये बैठी है वर्तमान सरकार से!
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

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