Menu
blogid : 3428 postid : 889911

दिल्ली की जंग केजरी के संग

jls
jls
  • 457 Posts
  • 7538 Comments

सबसे पहले मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मुझे कानून और संविधान की ख़ास जानकारी नहीं है, जो भी लिख रहा हूँ मीडिया रिपोर्ट और कुछ विशेषज्ञों की राय को आधार मान कर ही लिख रहा हूँ. जैसा कि पिछले लगभग एक सप्ताह से या कहें १० दिन से दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल और उपराजयपाल (लेफ्टिनेंट गवर्नर) नजीब जंग के बीच अधिकारों को लेकर जंग जारी है और यह ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही. दिल्ली के उच्च अधिकारियों, मुख्य सचिव आदि की नियुक्ति को लेकर जो काम आपसी सलाह मशविरा करके शांतिपूर्ण ढंग से किया जा सकता था वह दोनों के लिए अहम की लड़ाई बन गयी है. दोनों अपने अपने निर्णय पर अडिग नजर आते हैं. अब आइये इस जंग की समीक्षा करें.
राम जेठमलानी, सुब्रमण्यम स्वामी तो सीधे सीधे भाजपा के ही चेहरे हैं, राजीव धवन, के टी एस तुलसी तटस्थ तो फुल्का भी कभी भाजपा के ही थे. ये सभी आज देश के वरिष्ठ एवं सम्मानित वकील हैं. इन सबकी राय में उपराज्यपाल गलत हैं और दिल्ली सरकार सही है. संविधान तो इतना Vague (अस्पष्ट) है कि सभी अपनी सुविधा के अनुसार इसकी ब्याख्या करने लगते हैं, लेकिन प्रश्न है कि केंद्र सरकार लोकतंत्र की sanctity (शुचिता) खत्म करने पर तुली है.
दिल्ली में चल रही केजरीवाल और नज़ीब के बीच की जंग में केन्द्र सरकार ने उप-राज्यपाल नज़ीब जंग का साथ देते हुए कहा है कि अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का पहला अधिकार राज्यपाल को है. केन्द्र सरकार ने दिल्ली सरकार को नोटिफिकेशन भेजा है, जिसमें साफ तौर पर 239AA का हवाला देते हुए कहा गया है कि उप-राज्यपाल नज़ीब जंग का फैसला बिलकुल सही है. ट्रांसफर और पोस्टिंग उप-राज्यपाल के अधिकार के तहत आता है.
इस फैसले पर दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ट्वीट कर कहा है कि यह नोटिफिकेशन एक फतवा है, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने इसे बीजेपी की हार बताया है.
वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी का कहना है कि केंद्र सरकार का दिल्ली के बारे में नया नोटिफिकेशन सिर्फ एक “रद्दी का टुकड़ा” है. जाने माने वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम भी इस नोटीफिकेसन को गलत बता रहे हैं. अब केजरीवाल ने इस नोटिफिकेशन पर चर्चा के लिए दिल्ली विधान सभा का विशेष सत्र दो दिनों के लिए २६ और २७ मई को बुलाया है, देखते हैं इस चर्चा के क्या नतीजे निकालकर सामने आते हैं.
भारत की जनता ने पर्दे पर एक दिन के मुख्यमंत्री की ”नायक” वाली भूमिका में ”अनिल” को देखा है. उस ”नल-नील” की ताकत को भी आत्मसात किया है जिसकी ”कारीगरी” से तैरते पत्थरों वाला पुल पार कर के ”राम की सेना” ने ‘लंकापति रावण का मान-मर्दन’ किया था. उसी जनता ने रोमेश भंडारी जैसे ”महामहिम” की महिमा से मंडित ”एक दिन के मुख्यमंत्री” जगदंबिका पाल का ”मान-मर्दन” होते हुए भी देखा है. इसी जनता-जनार्दन ने ”उन्चास दिन वाले नायक” को ‘सड़सठ’ की ताकत देकर नल-नील वाली ‘इंजीनियरिंग’ शक्ति देने की कोशिश की. पर ”समुद्र” इतनी आसानी से रास्ता दे दे, ये संभव नहीं है…. जिसे हम ”समुद्र का अहंकार” समझ रहे हैं वो ”रावण का भय” भी हो सकता है. लोग इंतजार में हैं कि ”राम” कब ये कहने को विवश होते हैं…
”विनय न मानत जलधि जब, गये तीन दिन बीत
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीत।।”
मुख्यमंत्री और उप-राज्यपाल के ”दंगल” ने अब अपना अखाड़ा बदल लिया है. अब यह दंगल भाजपा और ‘आप’ के बीच शुरू हो गया है. ‘आप’ के नेताओं का मानना है कि उप-राज्यपाल नजीब जंग केंद्र सरकार के इशारे पर अरविन्द केजरीवाल सरकार को ठप्प करने पर उतारू हैं. वे न तो किसी अफसर की नियुक्ति और न ही तबादला करने दे रहे हैं. सभी महत्वपूर्ण विभागों की फाइलें सीधे अपने पास मंगा रहे हैं. अफसरों को वे ही निर्देश कर रहे हैं. वे दिल्ली की सरकार को उसी तरह चला रहे हैं, जैसे कि वे पिछले साल चला रहे थे, जब वहाँ कोई चुनी हुई सरकार नहीं थी.
अरविन्द केजरीवाल ने मोदी जी को पत्र भी भेजा है. उनके आरोप केंद्र सरकार पर हैं कि सरकार के इशारे पर ही सब कुछ हो रहा है. कुछ हद तक ये सही हो सकता है, क्योंकि किसी भी उप-राज्यपाल की अपनी तो कोई हैसियत नहीं होती. वह जनता के द्वारा चुना नहीं जाता. वह तो केंद्र का नुमाइंदा होता है. राष्ट्रपति का प्रतिनिधि होता है और राष्ट्रपति केद्र सरकार की इच्छा के बिना अपनी उंगली भी नहीं हिला सकते. लेकिन नजीब जंग ने जो भी आदेश जारी किए हैं, उनके पीछे संवैधानिक प्रावधान हैं, ऐसा उनका कहना है.
संविधान वैसा ही होता है, जैसी उसकी व्याख्या की जाए. अलग-अलग संविधान-शास्त्रियों की राय भी दोनों तरफ झुकती दिखाई पड़ती है. ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति की राय सर्वोपरि होती है. राष्ट्रपति से नजीब और अरविन्द दोनों मिल चुके हैं लेकिन वो फिलहाल मौन हैं. दिल्ली सरकार का दंगल जारी है.
महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि प्रचंड और अपूर्व बहुमत से चुनी हुई सरकार उप-राज्यपाल की कठपुतली कैसे बनी रह सकती है? लेकिन क्या भारत की केन्द्रीय राजधानी दिल्ली में दो पूरी सरकारें एक साथ चल सकती हैं? इसीलिए दिल्ली को केंद्र-शासित क्षेत्र कहा जाता है. इस दुविधा का समाधान दंगल से नहीं, बातचीत से निकल सकता है. अब सीधी बातचीत मोदी सरकार और केजरीवाल सरकार के बीच होनी चाहिए. यदि यह दंगल इसी तरह चलता रहा तो दोनों सरकारों की छवि खराब होगी और पिसेगी दिल्ली की जनता जिसने वर्तमान दोनों को सरकारों को पदासीन किया है. फिलहाल के सर्वे बतला रहे हैं – दिल्ली में सौ दिन के काम काज से ५९% संतुष्ट हैं जबकि ४१ % असंतुष्ट हैं. अभी अगर चुनाव हुए तो आप को ५३% और भाजपा को ३७% मत मिलेंगे. केजरीवाल अभी भी दिल्ली के लोकप्रिय नेता बने हुए हैं. यंही जनता उनके साथ है फिर संविधान की आड़ में केजरीवाल के ‘पर’ कतरने की कोशिश कहीं से जायज नहीं दीखता. मोदी जी ने भी अपनी पसंद की टीम बनाई है सभी चुनी हुई सरकारें अपने पसंद की ट्रीम बनाती है फिर दिल्ली में राज्यपाल सर्वे सर्वा क्यों ? दिल्ली की जनता को सजा क्यों? यदि उप राज्यपाल ही सर्वेसर्वा है तो चुनाव का नाटक क्यों?

एक कथा – सन्दर्भ ‘पंच’
—-
एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये! हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ?? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं, यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा.भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे .
रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था.वह जोर से चिल्लाने लगा. हंसिनी ने हंस से कहा- ‘अरे! यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते. ये उल्लू चिल्ला रहा है’ हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??
ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही. पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था.सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ कर दो’ हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद! यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो.हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ?? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है. उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है. दोनों के बीच विवाद बढ़ गया. पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये. कई गावों की जनता बैठी. पंचायत बुलाई गयी. पंचलोग भी आ गये! बोले- भाई किस बात का विवाद है ?? लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है. लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे. हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है.इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है! यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया…उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली! रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई – ऐ मित्र हंस, रुको! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ?? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ? उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी! लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है!
मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है.यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं! साभार … मार्कण्डेय काटजू साहब की वाल से …
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh