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भारत एक मैदान

jls
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मेरे घर के पास है, एक खुला मैदान,
चार दिशा में पेड़ हैं, देते छाया दान
करते क्रीड़ा युवा हैं, मनरंजन भरपूर
कर लेते आराम भी, थक हो जाते चूर
सब्जी वाले भी यहाँ, बेंचे सब्जी साज.
गोभी, पालक, मूलियाँ, सस्ती ले लो आज
कभी कभी नेता यहाँ, माइक पे चिल्लाय
सम्मुख बैठे भक्तजन, ताली खूब बजाय
हर आयु के लोग यहाँ, घूमे शुबहो शाम
स्वस्थ रहें संपन्न रहें, तभी मिले आराम
कभी कभी ही संतजन, अपना भजन सुनाय
जो सज्जन गंभीर हैं, उनको ये सब भाय
प्रीतिभोज के रश्म में. खाना जम कर खाय
सोने के भी वक्त में, हल्ला गीत बजाय
देता सबको ही शरण, यह छोटा मैदान
इसी लिए तो हम सभी, करते हैं गुणगान
यदाकदा स्वभाविक ही, होते हैं तकरार
फिर भी हम सहिष्णु रहें, करते कभी न वार
भारत यह मैदान है, भांति भांति के लोग.
कभी कभी होता घटित, कुछ अनिष्ट दुर्योग!
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

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