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संविधान दिवस और संसद में बहस

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मोदी जी के पूर्ण बहुमत की सरकार में बहुत सारे काम पहली बार हुए हैं. इस पहली बार की श्रेणी में संविधान दिवस का मनाया जाना भी पहली बार ही हुआ है. संविधान बनने के ६५ साल बाद संविधान दिवस का मनाया जाना भी पहली बार ही हुआ. जहाँ संविधान को बने हुए ६५ साल हुए हैं, वहीं इसके निर्माताओं में अग्रणी भूमिका निभाने वाले बाबा साहब अम्बेडकर की १२५ वीं जयन्ती मनाई जा रही है. इन दोनों को सामनेरखकर २६ नवम्बर को संविधान दिवस मनाया गया और संसद के दोनों सदनों में इस पर चर्चा हुई. हरेक पार्टियों के काफी सदस्यों ने अपनी-अपनी राय रक्खी और २७ नवम्बर को प्रधान मंत्री श्री मोदी ने अपना समापन भाषण दिया जो सारगर्भित होने के साथ साथ मोदी जी की सबको साथ लेकर चलने की ईच्छा का भी परिचायक है. मोदी जी के विरोधियों का भी मानना है कि पहली बार उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि आज भारत का प्रधान मंत्री बोल रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में संविधान पर दो दिन चली चर्चा का शुक्रवार को जवाब दिया। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पहली बार खुलकर तारीफ की। उन्होंने कहा – लोहिया ने कुछ आंकड़ों का हवाला देकर नेहरू सरकार की आलोचना की थी, लेकिन यह नेहरू का बड़प्पन था कि उन्होंने लोहिया से कहा था कि मैं आपके आंकड़ों से इनकार नहीं कर सकता।
मोदी ने यह भी कहा कि इस सरकार का इकलौता धर्म है – इंडिया फर्स्ट। यह सरकार सिर्फ एक ही पवित्र किताब से चलती है, वह है – संविधान। इस देश में आम सहमति, बहुमत से ज्यादा मायने रखती है। आम सहमति ही हमें आगे ले जाएगी।
मोदी के बयान के मायने विशेषज्ञों की राय में
1. सरकार का धर्म- मोदी ने कहा – इस सरकार का इकलौता धर्म है – इंडिया फर्स्ट। यह सरकार सिर्फ एक ही पवित्र किताब से चलती है, वह है – संविधान। कोई भी संविधान नहीं बदल सकता है। इसे लेकर भ्रम जरूर फैलाया जा रहा है। बाबा साहब का दर्द संविधान में शब्द के रूप में उभरा। उन्होंने बहुत कुछ झेला, लेकिन संविधान बनाते समय देश के लिए सबसे अच्छी बातें शामिल कीं। उन्होंने अपमान का जहर पी लिया।
मायने : इन्टॉलरेंस पर देशभर में चल रही डिबेट को लेकर सरकार निशाने पर है। एक दिन पहले ही लोकसभा में कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी ने कहा था- संविधान में जिनकी आस्था नहीं, वे इसका नाम जप रहे हैं। वे इसकी आज बात कर रहे हैं। सोनिया का निशाना मोदी सरकार पर ही था। मोदी का जवाब सोनिया के बयान से ही जोड़कर देखा गया।
2. नेहरू को भी याद किया मोदी ने अपनी स्पीच में पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा- एक बार डॉ. लोहिया ने नेहरू से कहा था कि तथ्य बता रहे हैं कि आपकी नीतियां काम नहीं कर रही हैं तो नेहरू ने जवाब में कहा था कि हां, मैं आपके बताए तथ्यों से इनकार नहीं कर सकता। पंडित नेहरू ने अपने इस बयान से अपने व्यक्तित्व और इस संसद की ऊंचाई को दर्शाया। मायने : कांग्रेस यह आरोप लगाती रही है कि नेहरू की बनाई नीतियां मोदी सरकार के निशाने पर रही हैं। कांग्रेस ने मोदी पर नेहरू के सिद्धांतों की अनदेखी करने के आरोप लगाए हैं।
3. भारत में 12 धर्मों के उत्सव – मोदी ने कहा कि भारत में 12 धर्मों के तरह-तरह के उत्सव मनाए जाते हैं। यह इस देश की महानता है। दुनियाभर के धर्म यहां हैं और सद्भाव के साथ हैं। मायने : मोदी का यह बयान भी देश में कथित तौर पर बढ़ रहे इन्टॉलरेंस के संदर्भ में है। इन्टॉलरेंस को मुद्दा बनाकर कई लेखक, फिल्मकार और वैज्ञानिक अपने पुरस्कार लौटा चुके हैं।
मोदी ने आगे कहा – संविधान में बदलाव का एक भ्रम फैलाया जा रहा है। मैं मानता हूं कि कोई संविधान नहीं बदल सकता है। अगर कोई ऐसा करता है तो वह आत्महत्या होगी। समाज का पिछड़ा तबका आरक्षण के सहारे आगे बढ़ेगा तो देश मजबूत होगा। गांधी जी के एक बयान को याद करते हुए उन्हें कोट किया, ‘पूंजीपति, जमींदार और किसान अपने हित की बात करते हैं। अगर सभी अपने अधिकारों की बातें करें और कर्तव्यों से मुंह मोड़ लें तो अराजकता का माहौल बन जाएगा। अगर सभी अपने कर्तव्यों का पालन करें तो कानून का राज कायम हो जाएगा। राजाओं को राज करने का कोई दैवीय अधिकार नहीं है। किसानों और मजदूरों को अपने आकाओं का हुक्म मानने की जरूरत नहीं है।’ राजनेता ही खुद पर बंदिशें लगाते हैं। चुनाव में खर्च की सीमा जैसी तमाम चीजों के लिए नेता आगे आए। राजनेताओं को यह सोचना होगा कि लोग हमारे में बारे में राय बदलें। नरसिंह मेहता, महात्मा गांधी, ज्योतिबा फुले और आंबेडकर जैसे लोगों ने समाज को बेहतर बनाने का काम किया। जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई। हमारा समाज हजारों साल पुराना है। हमारे यहां भी बुराइयां आई हैं। लेकिन उसी समाज से निकले महापुरुषों ने बड़े काम किए। पीएम ने ईश्वर चंद विद्यासागर, राजा राममोहनरॉय को याद किया। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिर गई थी। यह इस बात का उदाहरण है कि संविधान की ताकत क्या होती है और जब वह सही हाथों में होता है तो क्या होता है।
लोकतंत्र में असली ताकत तब आती है जब सहमति बनती है। लेकिन जब सब फेल हो जाए तो अल्पमत और बहुमत की बात आती है। भारत में सिर्फ संविधान ही सर्वोच्च है। यही विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को उनकी शक्तियां देता है। इस बात को बार-बार उजागर किया जाना चाहिए। सरकार का काम सिर्फ संस्थाएं बनाना ही नहीं, उनकी सीमाएं भी तय करना है। सरल भाषा में कहूं तो हमारे संविधान का मूल भाव डिग्निटी फॉर इंडियन और यूनिटी फॉर इंडियन है। कई लोगों का नाम इतना बड़ा है कि कोई उनका नाम ले या नहीं, उनका नाम मिट नहीं सकता। संविधान निर्माण में भी सभी की भूमिका रही है। इस संविधान की जितनी सराहना करें, कम है। लाल किले पर से बोल चुका हूं कि इस देश में सभी सरकारों ने काम किया है। किसी ने उम्मीद से थोड़ा कम किया होगा। इस देश को राजाओं ने नहीं बनाया है। इसे गरीबों, शिक्षकों, मजदूरों और किसानों ने बनाया है। यह बात सही है कि हम 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाते हैं। लेकिन 26 नवंबर भी ऐतिहासिक दिन है। इस बात को भी उजागर करना अहम है। 26 जनवरी की ताकत 26 नवंबर में निहित है। संविधान के भाषण की ताकत ‘मैं’ या ‘आप’ नहीं बल्कि ‘हम’ है.
अंत में प्रधान मंत्री ने अपने भाषण में संस्कृत श्लोकों की झड़ी लगा दी. आइडिया ऑफ इंडिया है – पौधे में भी परमात्मा होता है, नर करनी करे तो नारायण हो जाए, नारी तुम नारायणी, वसुधैव कुटुंबकम, अहिंसा परमो धर्म:, एकं सत्य विप्रा: बहुदा वदन्ति, वसुधैव कुतुम्कम, सर्वपंथ समभाव, सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया, वैष्णव जन तो तेने कहिये जो पीर पराई जाने रे, यत्र नार्या पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी.
मोदी की स्पीच की अहमियत- मोदी की स्पीच इसलिए मायने रखती है क्योंकि सोमवार से लोकसभा में रेगुलर कामकाज शुरू होगा और राज्यसभा में संविधान पर चर्चा का आखिरी दिन होगा। मोदी की स्पीच यह तय करने में अहम भूमिका अदा करेगी कि आने वाले दिनों में इन्टॉलरेंस और जीएसटी जैसे मुद्दों पर सरकार को अपोजिशन से कितना साथ मिलता है। अपोजिशन से बातचीत की कोशिश के तहत ही मोदी ने शुक्रवार शाम कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को चाय पर चर्चा की जिसके सकारात्मक परिणाम की उम्मीद की जा रही है.
मोदी से पहले संविधान पर इन नेताओं ने रखी अपनी बात
लोकसभा : केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को चर्चा की शुरुआत की थी। उनके बाद कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी, लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे और केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत आदि ने स्पीच दी थी।
राज्यसभा : अपर हाउस में संविधान पर चर्चा शुक्रवार को शुरू हुई। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शुरुआती स्पीच दी। उनके अलावा समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव, जेडीयू प्रेसिडेंट शरद यादव जैसे नेताओं ने स्पीच दी।
शरांश यही है कि संविधान दिवस के अवसर पर चली दो दिन की लगातार भाषण का लब्बो- लुआब यही कहा जा सकता है कि बाबा साहब आंबेडकर का गुणगान सभी वक्ताओं ने किया और अपनी-अपनी पार्टी की राजनीति भी चमकाई. जहाँ राजनाथ सिंह ने सेक्युलर शब्द का मतलब धर्म निरपेक्षता की जगह पंथ निरपेक्षता बताया. दोनों में कितना सूक्ष्म अंतर है यह भी बहस चल रही है. सोनिया गाँधी ने बाबा साहब को कांग्रेसी बताया तो अन्य दलों ने भी बाबा साहेब को दलितों-पिछड़ों का मसीहा कहा. प्रधान मंत्री श्री मोदी ने बड़े ही विनम्र भाव से अपनी बात रक्खी और विपक्ष के साथ देश में उठ रहे अनेक प्रकार के सवालों का भी विनम्रता से जवाब दे दिया. उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे संसद की कार्रवाई सही ढंग से चले और और जरूरी बिल पास हों. विकास को गति मिले. अनिश्चितता का माहौल ख़त्म हो.
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

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