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दिल्ली में सम-विषम सूत्र की सफलता

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तमाम विरोधों का सामना करते हुए, विवादित, बहु चर्चित ‘ओड इवन फार्मूला’ आखिर घोषित अवधि (यानी १ जनवरी से १५ जनवरी) तक सफलतापूर्वक अपना अभियान पूरा कर चुका है. दिल्ली की हवा के प्रदूषण में थोड़ा सुधार भी दर्ज किया गया है. अब घोषित अवधि पूरा कर लेने के बाद मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल की दिल्ली की जनता से अपील की गयी है कि इस नियम को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें, अर्थात इसको आगे भी जारी रक्खें. अब जुर्माना नहीं देना पड़ेगा पर खुद से इसका पालन करेंगे तो दिल्ली की हवा कम प्रदूषित होगी. बच्चों और बुजुर्गों का स्वास्थ्य बेहतर होगा. सांस और फेफड़ों की बिमारियों से मुक्ति पा सकेंगे. आंकड़ों के अनुसार इन १५ दिनों के अभियान में 156 करोड़ का पेट्रोल भी बचा . ऑड-ईवन लागू होने से पहले और लागू होने के दौरान इस फॉर्मूले का जो पोस्टमार्टम हुआ है, वह इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है। यह योजना शुरू होने से पहले दिल्ली सरकार भी उस तरह से आश्वस्त नहीं थी। इसलिए दिल्ली सरकार को भी लग रहा था कि कहीं यह नियम उनके खिलाफ नकारात्मक माहौल न बना दे। शायद यही वजह थी कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी नियम लागू होने से पहले ही कह दिया कि सिर्फ 15 जनवरी तक… अगर लोगों को पसंद नहीं आया तो स्कीम वापस ले लेंगे। दिल्ली सरकार ने विज्ञापनों का अभियान चलाया बल्कि खुद मुख्यमंत्री केजरीवाल ने विज्ञापन में आने का बड़ा ही ऑड तरीका निकाल लिया। इस विज्ञापन में उनका चेहरा नहीं दिख रहा था मगर आवाज आ रही थी। वे फोन पर बात करते हुए अपना संदेश लोगों तक ले गए। अब रोहतक, अहमदाबाद, मुंबई और बेंगलुरु में भी इसे आजमाने की बात चल रही है।
15 तारीख को मुख्यमंत्री केजरीवाल और परिवहन मंत्री गोपाल राय ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर दिल्ली की जनता को बधाई दी। अरविंद केजरीवाल ने कहा कि लोगों ने 2000 रुपये के जुर्माने के भय से ऑड-ईवन नहीं अपनाया। मात्र 9,144 लोग ऐसे थे जो गलत नंबर की कार लेकर निकले और सरकार को जुर्माने के तौर पर 1 करोड़ 82 लाख से अधिक की रकम दे आए। ऑड-ईवन की कामयाबी में इन फाइन देने वालों का भी योगदान सराहनीय है। लोगों को डर था कि ऑड-ईवन के दौरान ऑटो वाले काफी वसूली करेंगे लेकिन गोपाल राय ने बताया कि सिर्फ 917 चालकों की शिकायतें आई हैं और पहले से ज्यादा अनुशासित तरीके से ऑटो वालों ने काम किया है।
मुख्यमंत्री केजरीवाल ने बताया कि स्कीम लागू होने से पहले 47 लाख लोग दिल्ली की बसों में सफर करते थे, स्कीम लागू होने के बाद हर दिन औसतन 53 लाख लोगों ने बसों में सफर किया। यानी बसों में 6 लाख अधिक लोग सफर करने लगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली की बसों के फेरे भी बढ़ गए हैं। मुख्यमंत्री ने बताया कि जिन बसों को एक दिन में 200 किलोमीटर चलना होता था वे ट्रैफिक के कारण 160 किलोमीटर ही चल पाती थीं। लेकिन ऑड-ईवन के लागू होने के बाद वे एक दिन में 220 किलोमीटर की दूरी तय करने लगीं। एक बस ने 60 किलोमीटर अधिक यात्रा की। इस वजह से दिल्ली की 6000 बसों ने 9000 बसों का काम किया। यह एक दिलचस्प आंकड़ा है। इसकी विश्वसनीयता का ठीक से अध्ययन होना चाहिए। क्या इसका यह मतलब है कि दिल्ली में नई बसों की जरूरत नहीं होगी। अगर ट्रैफिक कम हो तो क्या मौजूदा बसों से ही दिल्ली की जरूरत पूरी की जा सकती है। योजना लागू होने से पहले दिल्ली सरकार ने कहा था कि 3000 अतिरिक्त बसें चलाई जाएंगी। नई बसों के खरीदे जाने की भी बात हुई थी, इस मामले में सरकार को ठोस रूप से भरोसा देना होगा।
इस अवधि में उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी साइकिल चलाते नजर आए और साइकिल ट्रैक बनाने की बात करने लगे। पिछले बीस साल से दिल्ली में साइकिल ट्रैक की बात हो रही है। दिल्ली में एक अनुमान के मुताबिक बीस लाख से ज्यादा लोग साइकिल से काम पर जाते हैं। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दिल्ली के लोगों से कहा है कि वे ऑड-ईवन को अपने स्तर पर जारी रखें। क्या वे और उनके मंत्री भी आगे ऑड और ईवन को जारी रखेंगे। कार पूल करेंगे या साइकिल से दफ्तर जाते रहेंगे। क्या वे मिसाल पेश करने के लिए तैयार हैं। कई लोगों को इस योजना से बाहर रखा गया लेकिन हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई जजों ने भी इस योजना को अपनाया। वे या तो कार पूल में गए या फिर पैदल भी। अदालत का रुख भी ऑड-ईवन के प्रति सकारात्मक होने लगा और वह इसकी शुरुआती कामयाबी से संतुष्ट होने लगी। यहां तक कि अदालत ने खास श्रेणी की नई डीज़ल कारों के पंजीकरण पर रोक लगा दी। उसे अभी तक नहीं हटाया गया है।
इस अभियान में डॉक्टर नरेश त्रेहान की ट्वीट की हुई उस तस्वीर ने भी बड़ा असर किया था जिसमें दिल्ली और हिमाचल के मरीज के फेफड़े की तुलना की गई थी। दिल्ली के मरीज का फेफड़ा बुरी तरह काला हो चुका था। बाद में दिल्ली सरकार ने भी लोगों के फेफड़ों की जांच शुरू की, अब पता नहीं वह जांच जारी है या नहीं लेकिन फेफड़ों की जांच के नतीजों ने कई लोगों को बुरी तरह हैरान कर दिया। प्रदूषण की वजह से अब साक़िब जैसे 28 साल के युवा का फेफड़ा 20% कम काम कर रहा है। हर तीन में एक दिल्ली वाले का फेफड़ा कमजोर हो गया है। चलिए अब प्रदूषण की बात कर लें। क्योंकि इस मुहिम का असली मकसद प्रदूषण कम करना ही माना जा रहा है। पहले दिन सरकार ने दावा किया कि प्रदूषण का स्तर कम हुआ है। लेकिन विपक्ष ने कहा कि कोई असर नहीं पड़ा है।
दिल्ली सरकार ने प्रदूषण पर अपने आंकड़े रखे हैं। सरकार का दावा है कि दिसंबर में PM 2.5 का स्तर 600 से ज्यादा था। ऑड-ईवन के दौरान PM 2.5 का स्तर 400 से ज्यादा रहा। ऑड-ईवन के दौरान बॉर्डर के इलाकों में प्रदूषण ज्यादा रहा, शहर के अंदर प्रदूषण करीब 20-25% तक कम हुआ है। अगर ऑड-ईवन न होता तो PM 2.5 का स्तर 600 से ज्यादा होता। इन आकंड़ों को अलग-अलग तरीके से देखा जा रहा है। सवाल उठ रहा है कि दुपहिया वाहनों से 30 फीसदी से ज्यादा प्रदूषण होता है। धूल से 56 फीसदी प्रदूषण होता है जबकि गाड़ियों से सिर्फ 9 फीसदी प्रदूषण होता है। तो क्या धूल रोकने के लिए भी सरकार कोई अभियान चलाएगी। कोई सिस्टम कायम करेगी। दिल्ली सरकार ने इन मामलों में एक कार्ययोजना अदालत के सामने रखी है। एनडीटीवी ने अपनी तरफ से एक एंबुलेंस चलाया यह देखने के लिए, एक खास दूरी के बीच एंबुलेंस को कितना समय लगता है। पाया कि पहले दस किमी की दूरी तय करने में जिस एंबुलेंस को 35 मिनट लगते थे अब वह एंबुलेंस 18 मिनट में पहुंच गया। यानी 17 मिनट की बचत हुई। क्या यह वक्त कीमती नहीं है। चार साल से एंबुलेंस चला रहे संजय सिंह ने बताया कि पिछले दो हफ्तों में काफी राहत महसूस हुई है। हमारी गाड़ी जाम में नहीं फंसी है। अन्य लोगों ने भी बताया कि उन्हें भी घर से दफ्तर के बीच फेरे लगाने में पंद्रह से बीस मिनट की बचत हुई है।
ऑड-ईवन स्कीम के खिलाफ हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक याचिका दाखिल की गई। लेकिन हाईकोर्ट ने ऑड-ईवन के नोटिफिकेशन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि साथ में यह निर्देश भी दिया कि अगली बार सरकार उन सवालों पर भी जरूर विचार करे जो इस दौरान उठाए गए हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की। देश के चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा कि लोग प्रदूषण की वजह से मर रहे हैं और आप इस योजना को चुनौती दे रहे हैं। यहां तक कि खराब हालत के चलते सुप्रीम कोर्ट के जज भी कार पूल कर रहे हैं। तो दिल्ली में ऑड-ईवन प्रयोग का पहला दौर समाप्त हो गया…। कई लोग खुश हो रहे होंगे, नियमों से राहत भी महसूस कर रहे होंगे…लेकिन शायद इसकी सफलता से लग रहा है कि यह जल्दी खत्म हो गया। पिछले 15 दिनों से सड़कों पर भीड़ कम मिलती थी, ट्रैफिक जाम नहीं मिलता था, घर जल्दी पहुंचा जा सकता था। बस में सफर करने वाले भी खुश थे क्योंकि बैठने की जगह मिल जाती थी। प्रदूषण भी कुछ कम हुआ होगा। लेकिन शायद इसमें सबसे खास बात रही कि दिल्ली वासी एकजुट हुए। शहरियों ने भी परेशानियों के बावजूद नियम का पालन किया। दिल्ली पुलिस के लिए भी खासी चुनौती नहीं थी क्योंकि लोग स्वेच्छा से नियम पालन करते हुए दिखे।
एक रिपोर्ट के अनुसार – दिल्ली का बीता पखवाड़ा – एम्बुलेंस का रिस्पांस टाइम सुधरा क्योंकि लालबत्तियों पर 5 से 10 मिनट कम रुकना पड़ा। गाड़ी चलाने वाले खुश थे क्योंकि सड़कों पर कम वाहनों के कारण आधा घंटे जल्दी पहुंच सके। सीएनजी पर अच्छा माइलेज मिला क्योंकि ट्रैफिक कम था। पेट्रोल डीजल की बिक्री में 30 प्रतिशत कमी हुई। बस ड्राइवरों को ज्यादा ट्रिप लगाने का अवसर मिला क्योंकि ट्रैफिक कम था। पार्किंग लॉट 15 से 20 प्रतिशत खाली रहे। एक ऑनलाइन पोल के अनुसार 67 प्रतिशत दिल्ली वासियों ने इस प्रयोग का स्वागत किया है। तो अब जब दिल्ली के प्रदूषण पर थोड़ा बहुत असर भी पड़ा है तो और क्या किया जा सकता है जिससे हवा सुधरे? हालांकि दिल्ली में शहरीकरण देश में सबसे ज्यादा 98 प्रतिशत है लेकिन सार्वजनिक परिवहन सबसे देरी में विकसित हुआ। मुंबई में लोकल ट्रेन 1853 से दौड़ रही है, कोलकाता में मेट्रो 1984 में आ गई थी, जबकि दिल्ली में तो 2002 तक बस सर्विस ही होती थी।
सार्वजनिक परिवहन के विकास से समस्या का निदान संभव – एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में दोपहिया वाहनों से 33 प्रतिशत और ट्रकों से 46 प्रतिशत प्रदूषण होता है। इसके अलावा दिल्ली में गाड़ियों की तादाद अन्य बडे़ शहरों के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। दिल्ली में प्रत्येक 1000 व्यक्तियों में से 451 के पास गाड़ी है। ग्रेटर मुंबई में इस अनुपात में 102, कोलकाता में 110 वाहन हैं। सिर्फ बेंगलुरु ही ऐसा शहर है जहां प्रति हजार व्यक्ति पर दिल्ली से ज्यादा 489 वाहन हैं। अगर हमारा पब्लिक ट्रांसपोर्ट दुरुस्त होगा तो लोग निजी वाहन खरीदने की जरूरत महसूस नहीं करेंगे।
तात्पर्य यह है कि जब समस्या गंभीर हो तो सरकार के साथ जन भागीदारी की भी जरूरत होती है. बिना जन भागीदारी के किसी भी योजना को पूरी तरह सफल नहीं बनाया जा सकता है. स्वच्छता अभियान की भी पूर्णरूपेण सफलता तभी प्राप्त होगी जब उसमे जन भागीदारी होगी और कुछ नियमानुसार फाइन लगाने की भी ब्यवस्था होनी चाहिए.
उधर १७ जनवरी को अरविन्द केजरीवाल जनता को धन्यवाद देने और शायद इसका राजनीतिक लाभ लेने के लिए ही छत्रशाल स्टेडियम में लोगों के बीच बोल रहे थे, तभी भावना नामकी एक युवती ने उनपर स्याही फेंक कर रंग में भंग डालने की कोशिश कर दी. अब केजरीवाल की सुरक्षा को लेकर दिल्ली पुलिस पर जहाँ सवाल उठाने लगे वहीं आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भाजपा की साजिश करार दे दिया. अब यह सब तो आजकल की राजनीति का हिस्सा बन गया है. जनता ही सही मूल्यांकन करती है,जब अपना फैसला सुनाती है.
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

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